कोरोना महामारी की दो लहरों से पैदा हुई सवास्थ्य की समस्याओं को दूर करने और तीसरी लहर से बचाव के रास्तों पर विचार करने की गरज से संसद की सथाई समिति की बैठक बुलाने की मांग विपक्ष ने की है। देश के प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के प्रवक्ता और संसदीय राज्य सभा टेलीविजन चैनल के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी गुरुदीप सिंह सप्पल ने भी इसी सन्दर्भ में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध किया है कि देश में टीकाकरण की जो रफ़्तार है उससे निर्धारित अवधि में देश की पूरी जनता के टीकाकरण के लक्ष्य को हासिल करना नामुमकिन है।
इसी सन्दर्भ में कांग्रेस प्रवक्ता ने प्रधान मंत्री से टीकाकरण की रफ़्तार को बढ़ाने का अनुरोध किया हैं। मुख्य विपक्षी दल का मानना है कि देश में टीकाकरण का लक्ष्य निर्धारित समय में या उससे पहले तब ही प्राप्त किया जा सकता है जब प्रतिदिन कम से कम एक करोड़ लोगों का टीकाकरण किया जाए। अभी एक दिन को छोड़ कर प्रतिदिन 50 से 60 लाख के करीब ही लोगों का टीकाकरण हो पाता है। हाल में केवल एक दिन 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर ही देश में अधिकतम 80 लाख लोगों का टीकाकरण हो पाया था। इस एक दिन के विशेष टीकाकरण अभियान के लिए भी कई दिन पहले बड़े पैमाने पर प्रचार किया गया था। इसके बाद भी उस दिन लक्ष्य के मुताबिक़ एक करोड़ लोगों का टीकाकरण नहीं हो सका था।
कोरोना के वेक्सीनेशन की रफ़्तार में आयी कमी के साथ
ही कोरोना से जुडी अन्य अनेक समस्याएं भी हैं जिन पर
संसद की बैठकों का आयोजन बहुत जरूरी है। संसद के
सत्र का आयोजन करने में कोरोना की वजह से व्यावहारिक दिक्कतें हैं लेकिन नीति गत मुद्दों पर स्वास्थ्य मंत्रालय से
सम्बद्ध संसद की स्थायी समिति की वर्चुअल बैठक तो
बुलाई ही जा सकती है। इसीलिए विपक्ष ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडलाऔर राज्य सभा के सभापति वेंक्या नायडू से संसदीय स्थायी समितियों की वर्चुअल बैठक बुलाने का
1अनुरोध एक बार फिर किया है . इससे पहले भी कुछ महीने पहले विपक्ष के सांसदों ने इस आशय की मांग की थी जिसे संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों – लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति ने तकनीकी कारणों से नकार दिया था .विपक्ष की यह मांग ठुकराते हुए दोनों ही सदनों के पीठासीन अधिकारियों का तर्क यह था कि देश के संविधान में संसदीय समितियों की वर्चुअल बैठक का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए संसदीय समितियों की वर्चुअल बैठक फिलहाल संभव नहीं है। ऐसे कोई भी बैठक संविधान में संशोधन के बाद ही हो सकती है और संविधान में संशोधन तभी हो सकता है जब राष्ट्रपति के आदेश से संसद के सत्र का आयोजन हो और दोनों सदनों से इस आशय का विधेयक पारित होकर राष्ट्रपति के पास जाए और वो उस पर हस्ताक्षर कर क़ानून का स्वरुप प्रदान करें। मौजूदा दौर में तो यह संभव नहीं है।
गौरतलब है कि कुछ माह पहले ही राज्य सभा सचिवालय से जारी इस आशय की जानकारी से संसद के उच्च सदन में नेता विपक्ष की भूमिका का निर्वाह कर रहे कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे को सूचित किया था कि संवैधानिक बाध्यताओं के चलते स्थायी समिति की वर्चुअल बैठक कराना संभव नहीं होगा । इसी तरह की सूचना से लोकसभा सचिवालय ने भी सदन में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका का निर्वाह कर रही कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी अवगत करा दिया गया था। पीठासीन अधिकारियों के इस फैसले का मतलब यही हुआ कि जब तक दोनों सदन संसद सत्र के दौरान होने वाली खुली बैठकों में अपने-अपने हिस्से की सदनीय नियमावली में इस आशय का संशोधन कर नए नियम का प्रावधान नहीं कर लेते तब तक संसद की किसी भी समिति की वर्चुअल बैठक नहीं हो सकती। ऐसा तब तक नहीं हो सकता जब तक राष्ट्रपति की तरफ से संसद के सत्र का आह्वान न किया जाए और संसद सत्र में इस आशय का कोई संविधान संशोधन विधेयक पारित न कर दिया जाए। ऐसा करना इसलिए जरूरी होगा क्योंकि हमारे संविधान में आपात स्थिति में संसद के किसी सदन अथवा संसद की किसी भी समिति की वर्चुअल या डिजिटल बैठक कराने का कोई प्रावधान नहीं है।
गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले साल मार्च के महीने से लेकर इस साल मई के इतने दिनों के बीच की करीब सवा साल की अवधि में संसद की स्थायी समितियों की एक भी बैठक नहीं हो सकी है। संसद के दोनों सदनों के विपक्षी नेताओं ने केंद्र सरकार के साथ ही लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति से संसदीय समितियों की वर्चुअल बैठक कराने का अनुरोध करीब एक महीने पहले किया था। उसी के जवाब में लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति के कार्यालयों से यह जानकारी दोनों सदनों के विपक्षी नेताओं को उपलब्ध कराई गई थी ..प्रसंगवश एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति ने तो यह कह कर पल्ला झाड लिया कि संविधान में इस तरह से संसदीय समिति की बैठक कराने का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए जब तक इसके लिए नियमों में बदलाव नहीं किया जाता तब तक ऐसा करना संभव नहीं होगा। इसके साथ ही दोनों पीठासीन अधिकारियों ने गोपनीयता के नियमों का सहारा लेते हुए भी संसदीय समितियों की वर्चुअल बैठक कराने में असमर्थता व्यक्त की है। इस समबन्ध में दो बातों पर गौर करने की जरूरत है। पहली बात यह है कि जब देश के संविधान का निर्माण हो रहा था तब ऐसी असंख्य मान्यताओं को इसका हिस्सा नहीं बनाया जा सका था क्योंकि तब संविधान निर्माताओं को नहीं लगता था कि इनकी कभी भविष्य में जरूरत हो भी सकती है।