वधू पोलैंड की थी और वर फ्रांस के। वधू का नाम मारिया जिन्हें अब दुनिया मादाम क्यूरी नाम से जानती है। विवाह तय हुआ, लेकिन यह किस प्रकार से हो इस पर बहुत विवाद छिड़ गया । मारिया पूरी तरह बुद्धिवादी और विज्ञाननिष्ठ थीं। वर भी नवविचारवादी था। मियां-बीबी दोनो राजी, लेकिन ‘ काजी ‘ का
क्या ?
काजी यानी मरिया की होन वाली सास। वो बहुत शौकीन और उत्सवप्रिय थीं, उपर से वर पक्ष की होने से उनके क्या कहने। मारिया ने विनयशील दृढ़ता से कहा: विवाह तो रजिस्ट्री से ही होगा । ठीक है, लेकिन अंगूठी ? मारिया की सास ने पूछा।
ना , ना , नो अंगूठी, नो दावत। बिल्कुल सादगी से विवाह होगा। ये मारिया का ‘ दूसरा विवाह ‘ था। सास ने कहा: ठीक है, ठीक है। लेकिन तुम्हारे लिए दुल्हन वाली पोशाक तो मै अपनी ही पसंद से लूंगी। खूब कीमती, जगमगाती, भारी पोशाक लेने वाली हूँ। कह देती हूँ।
मै कुछ कहूं क्या ? मारिया ने पूछा और फिर कह ही दिया’ यह भारी, कीमती पोशाक विवाह के बाद वैसे ही रखी रह जाती है। लेकिन खर्चा बहुत हो जाता है। सासू माँ, इससे अच्छा है कुछ और लेना। मै रोज प्रयोगशाला जाती हूँ। वहां मै रोज़ ही इस्तेमाल कर सकूं, ऐसा ही ड्रेस मे्रे लिए लेना, प्लीज़ !
सास को अंततः बहू की सारी बात माननी पड़ी। विवाह बड़ी सादगी से, लेकिन भावपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ। क्योंकि मारिया थीं ही ऐसी। ब्रह्माडंबरों की आवश्यकता नहीं थी उन्हे। यही वो मारिया थी जो बाद में मादाम क्यूरी नाम से सारी दुनिया में मशहूर हुई।
मादाम क्यूरी ने अपना पूरा जीवन रेडियम तत्व की खोज-बीन में लगाया था। वह पैंसठ वर्ष की आयु में भी 14 से 19 घंटे तक प्रयोगशाला में कार्य करती रहीं।
इस महान विज्ञान तपस्विनी ने प्रत्यक्ष युद्धभूमि में भी जाकर शांति के लिए प्रयास किया। वह दो बार नोबेल पुरस्कार जीतने वालीं दुनिया की एकमात्र महिला शास्त्रग्य हैं।
भौतिकविद एवं रसायनशास्त्री मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी यानि मादाम क्यूरी का जन्म 7 नवम्बर 1867 को पोलैंड के वारसा नगर में हुआ था। वैज्ञानिक मां की दोनों बेटियों मे से बड़ी, आइरीन ने केमिस्ट्री का 1935 में नोबेल पुरस्कार जीता और छोटी छोटी बिटिया , ईव ने 1965 में पति, हेनरीरिचर्डसन लेवोइस के साथ संयुक्त रूप से विश्व शांति के लिए नोबेल
पुरस्कार जीता था।
महिला होने के चलते मादाम क्यूरी को वारसॉ में सीमित शिक्षा ही मिल सकी। लेकिन उन्होंने छुप-छुपाकर उच्च शिक्षा हासिल कर ही ली। वह अपनी बड़ी बहन की आर्थिक सहायता से भौतिकी और गणित की शिक्षा के लिए पेरिस चली गईं जहां उन्होंने 1903 में डॉक्टरेट का शोध पूरा किया। वह पेरिस विश्वविद्यालय
में पहली महिला प्रोफ़ेसर बनीं। इसी विश्व विद्यालय मे उनका, पियरे क्यूरी से हुई जिनसे उन्होंने विवाह किया। दोनों ने मिलकर 1898 में पोलोनियम की और उसके बाद रेडियम की खोज की जिसका रोगों के उपचार के लिए चिकित्सा विज्ञान में बहुत बड़ी भूमिका है।
इस दंपत्ति को रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। मादाम क्यूरी को रेडियम के शुद्धीकरण के लिए 1911 में केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार मिला। उन्हें 1903 में डेवी मेडल, 1904 में मैट्यूची मेडल, 1907 में एकटोनियन पुरस्कार ,1909 में इलियट क्रेसन मेडल , 1910 में अल्बर्ट मेडल, 1921 में विलार्ड गिब्स अवार्ड और 1931 में एडिनबर्ग
विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान के लिए कैमरून पुरस्कार भी मिले। उनकी 66 बरस की उम्र में 4 जुलाई 1934 को फ्रांस के सांटोरियम में ‘अप्लास्टिक एनीमिया ‘ की वजह से मृत्यु हो गयी। लख लख सलाम विज्ञान तपस्विनी यानि मादाम क्यूरी को ।
·लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और बिहार के अपने गाँव में खेतीबाड़ी
करने, बच्चों के लिए स्कूल चलाने और किताबें लिखने के काम से अवकाश लेकर दिल्ली आए हुए है। उनकी 12 नई ई-किताबों का सेट लखनऊ के नॉटनल से इस बरस के अंत तक प्रकाशित होने की आशा है,
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