महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में पिछले कुछ दिनों से हंगामा बरपा हुआ है, वजह है एक अतिथि शिक्षक का नवरात्रों में व्रत रखने की जगह भारत का संविधान और हिन्दू कोड बिल को अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स से महिलाओं को पढ़ने की सलाह देना क्या गलत है ! एक शिक्षक होने के अलावा मिथिलेश समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से भी आते है और राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर होने के नाते अगर ऐसा कोई कमेंट हुआ भी तो ये क्या उनको बर्खास्त किये जाने और कैंपस में घुसने से रोक लगाये जाने की वजह बन सकती है ?
ये बात बड़ी अजीब है कि एक तरफ मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जहाँ महिलाओं को स्वावलंबी और कानून के लिए जागरूक होने के लिए तमाम उपाय कर रहे है। महिलाओं के लिए कानून बनाने के अलावा सरकारी कार्यक्रम की घोषणाएं हो रही है ऐसे में ये अगर मिथिलेश ने हिन्दू महिलायों को संविधान पढ़ने और हिन्दू कोड बिल पढ़ने की सलाह दी तो इसमें नागवार लगने की कौन सी बात है। समाज के कुछ हिस्सों में महिलाएँ बड़ी जिल्लत भरी जिंदगी और आर्थिक रूप से पैतृक संपत्ति से वंचित रहने का दंश इसलिए झेल रही है क्योंकि उनको कानून की जानकारी नहीं है। भारत के संविधान पर कम लोग ही बात करते है आजकल के दौर में अगर आस्था पर पढ़ाई और जानकारी की कोई बात कही गई इस तरह का ABVP के द्वारा दबाव बनवाना और तुगलकी फरमान निकलवाना क्यों जरूरी हो गया ?
दरअसल ये हालात इसलिए पैदा हुये है क्योंकि सुस्त पड़ी अखिल विद्यार्थी परिषद को संजीवनी देने का काम पूर्व कुलपति त्रिलोकी नाथ सिंह के जमाने से हुआ। छात्र राजनीति के नाम पर जड़ें जमाये इस संगठन को पढ़ने वाले बच्चें से ज्यादा राजनीति में जाकर चमकने की हसरत रखें लोगों की पहली पसंद समझा जाता है। कुलपति बनकर आते ही TN सिंह ने विश्विद्यालय को जाति और सवर्णों के साथ संघ और उसके समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को यहां जड़ें मजबूत करने की खुली छूट दे दी, या यूं कहें आज के जलते कैंपस में जो आग लगी है उसकी तीली TN सिंह ने जलाई और उसी के तहत लंबे समय से दलित शिक्षकों को विश्विद्यालय कैंपस में निशाना बनाया जा रहा है।
दलित लेक्चरर की बर्खास्तगी देश के संविधान और समरसता की संस्कृति के खिलाफ है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में जहाँ एक तरफ कुलपति महोदय शिक्षा का स्तर सुधारने की कवायद में जुटे है वहीं दूसरी तरफ रजिस्ट्रार भ्रष्टाचार और लापरवाही की गर्द में डूबी हुई है। इसलिए आये दिन छात्र हंगामा और गुंडागर्दी करते नजर आते है। क्योंकि रजिस्ट्रार एक खास वर्ग के लोगों और राजदरबारियों से घिरी हुई है। कायदे से तो संवैधानिक पोस्ट को मैडम रजिस्ट्रार ही संभालती है ऐसे में संघ के यस और नो वाली टीम जो चाहती है उसकी ही पैरवी हो रही हैं। रजिस्ट्रार के पति संघ के साथ लंबे समय से सक्रिय है और वर्तमान में सकलडीहा में एक कॉलेज में तैनात है।
मिथिलेश गौतम के सोशल मीडिया पर लिखें गये कमेंट-
”महिलाएं नवरात्रि के दौरान नौ दिन व्रत रखने के बजाय संविधान और हिंदू कोड बिल पढ़ें तो उनका ज़्यादा भला होगा। उनकी ज़िंदगी गुलामी और डर से आज़ाद हो जाएगी। जय भीम।”
फेसबुक पर संविधान को आस्था के ऊपर रखना अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को नागवार गुजरा। छात्रों ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ परिसर में बखेड़ा खड़ा कर दिया। परिषद से जुड़े स्टूडेंट्स ने घंटों उपद्रव किया। नारेबाजी और प्रदर्शन करने के बाद धार्मिक भावना आहात होने का मुद्दा लेकर वो कुलपति प्रो. आनंद के त्यागी से मिलने जा पहुंचे उन्हें ज्ञापन सौंपा उसके बाद विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय ने इस दलित शिक्षक को न सिर्फ बर्खास्त किया है, बल्कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में उनके प्रवेश पर पाबंदी भी लगा दी। ये भी जांच करने की जहमत नहीं समझी की जो पोस्ट के स्क्रीन शॉट को लेकर हंगामा किया जा रहा है वो किया भी गया है ना नहीं कहीं एडिटिंग के द्वारा तो कैंपस के माहौल खराब करने की कोशिश तो नहीं कि जा रही हैं।
गणेश राय की शेयर पोस्ट का स्क्रीन शॉट –
डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ही छात्र रहे है और वर्ष 2021 सितंबर में अतिथि शिक्षक के तौर पर छात्रों को पढ़ा रहे है। सोशल मीडिया पर मिथिलेश के कमेंट को लेकर बवाल काट रहे एक छात्र गणेश राय पर पहले भी एक शिक्षक के साथ 2021 मे बदतमीजी करने का आरोप है यहाँ तक कि एक छात्रा ने उसके विरुद्ध FIR भी करवा रखी है। क्या विडंबना है जिसके खिलाफ विश्वविद्यालय को कारवाई करनी चाहिए थी उसके कहने पर एक शिक्षक को प्रताड़ित किया जा रहा है। आखिर गणेश के पुराने रिकार्ड्स को देखते हुये उसको भी छोड़ दिया गया उसके ऊपर कोई कारवाई क्यों नहीं हुई।
मिथिलेश के नाम पर वायरल पोस्ट जो दावा है एडिटेड है-
पूरे देश में पिछले कुछ सालों में शिक्षकों और प्रबुद्धजनों के खिलाफ इस तरह की कारवाई की घटना में तेज़ी देखने को मिली है। लेकिन ऐसी घटनाओं को बल देने का काम करने करने में सत्ता भी पीछे नहीं। इस घटना के बाद बनारस के प्रबुद्धजन डॉ.मिथिलेश के साथ खड़े हैं। प्रगतिशील तबके के लोगों का कहना है ”शिक्षक का काम ही वैज्ञानिक चेतना फैलाना है। डॉ. गौतम ने संविधान को आस्था से ऊपर रखा है और ऐसा करना कोई गुनाह नहीं है। दलित शिक्षक के खिलाफ कुलपति और कुलसचिव द्वारा की गई इस कार्रवाई न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि इसकी जितनी कड़ी भर्त्सना की जाए वह कम है।”
मामले ने क्यों पकड़ा तूल?
28 सितंबर 2022 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के दलित शिक्षक डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम ने अपने फेसबुक वाल पर संविधान पढ़ने के बाबत चंद लाइने क्या लिखी तो राष्ट्रीय सेवक संघ और बीजेपी समर्थित अखिल विद्यार्थी परिषद को आगे करके ये खेल खेला गया। मिथिलेश को उनके पोस्ट के कमेंट सेक्शन में गालियां लिखी और अभद्र कमेंट्स किए गये। भद्दे चित्र भी पोस्ट किए गए। सूत्रों ने बताया की 29 सितंबर को एबीवीपी से जुड़े कुछ स्टूडेंट्स उग्र प्रदर्शन करने लगे जिनका प्रतिनिधि गणेश राय कर रहा था। फिर मिथिलेश के पोस्ट के साथ छेड़छाड़ करने के बाद कैंपस में वायरल किया गया।
विश्वविद्यालय में दुष्प्रचार शुरू कर दिया गया। प्रदर्शनकारियों का ग्रुप विश्वविद्यालय परिसर में घूम-घूमकर ”जय श्रीराम और जय माता दी” के नारा लगाने लगा। डा.गौतम राजनीति शास्त्र के गेस्ट लेक्चरर थे। उनकी फैकल्टी के बाहर भी नारेबाजी की गई। आंदोलन करने वालों में वो लोग भी शामिल थे जिन्होंने बीते सालों में दलित शिक्षक प्रो. सुशील गौतम (फिजिकल एजुकेशन के डीन) और ओबीसी शिक्षक केएन जायसवाल (वाणिज्य संकाय के डीन हैं) की पिटाई की थी।
किसने दिया बर्खास्तगी का आदेश?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दलित शिक्षक पर मुकदमा दर्ज कराने के लिए एबीवीपी से जुड़े स्टूडेंट्स सबसे पहले सिगरा थाने पहुंचे और पुलिस पर दबाव डाला। पुलिस ने फेसबुक पोस्ट के आधार पर कोई भी मामला दर्ज करने से साफ इनकार कर दिया। वहां उनकी दाल नहीं गली तो शिक्षक की बर्खास्तगी की मांग को लेकर विश्वविद्यालय परिसर में नारेबाजी और प्रदर्शन करने लगे। बाद में ये ग्रुप कुलपति दफ्तर पर पहुंचा और वहां भी प्रदर्शन करना शुरू किया। उसके बाद वो कुलपति प्रो.आनंद त्यागी के दफ्तर में घुस गए। आनंद त्यागी के छात्रों के उग्र रूप को देखकर मिथिलेश की सुरक्षा की दृष्टि से उनको कैंपस से बाहर रखना चाहते थे। ताकि कोई अप्रिय स्थिति ना बने ये, लेकिन जो सूचना मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखी जा रही वो गलत है मिथिलेश की सुरक्षा हमारे लिए महत्वपूर्ण है। ये जानकारी कुलपति से हुई बातचीत के आधार पर लिखी जा रही हैं।
बर्खास्त शिक्षक डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम कहते हैं, ”महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति” के ऊपर हमारी बर्खास्तगी के लिए इस कदर दबाव बनाया गया कि उन्हें आरएसएस और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आगे नतमस्तक होना पड़ा। कुलपति प्रो. आनंद त्यागी ने आनन-फानन में रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय बुलाया और उन्हें मेरी बर्खास्तगी का आदेश जारी करने का निर्देश दिया। कुलपति एबीवीपी के दबाव में इस कदर आ गए कि शिकायत मिलने के कुछ ही घंटों में उन्होंने हमें न सिर्फ बर्खास्त करा दिया, बल्कि विश्वविद्यालय परिसर में घुसने पर भी पाबंदी लगाने का हुक्म भी जारी कर दिया।” मजेदार बात ये है कि लेटर भी 28 सितंबर को जारी कर दिया गया।
गणेश को इस हंगामे के ईनाम स्वरूप सहमंत्री बनाया गया है। वजह साफ है गंदी राजनीति की पहली पायदान का काम दलित शिक्षक को बर्खास्त करवाने के बदले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने आज जारी हुई कार्यकारिणी में स्थान दिया है।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ दलित शिक्षक के फेसबुक पोस्ट के बाद हुई कार्रवाई को लेकर देश भर में बवाल मचा हुआ है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने शिक्षक के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस मामले में विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय कहती हैं, ”डॉ गौतम के कृत्य से छात्र नाराज थे। इनके पोस्ट से परिसर में शांति व्यवस्था भंग हो रही थी। इससे विश्वविद्यालय की परीक्षाओं पर असर पड़ सकता था। ऐसे में मुझे विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से राजनीति विज्ञान विभाग के गेस्ट लेक्चरर डॉ मिथिलेश कुमार गौतम को हटाने का निर्देश मिला तो तो हमने आदेश जारी कर दिया। विश्वविद्यालय नियमावली के तहत मिथिलेश कुमार गौतम को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करते हुए परिसर में प्रवेश करने पर प्रतिबंधित कर दिया गया है। डॉ. गौतम अब विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी दशा में नहीं घुस सकते हैं।”
सवाल ये है कि ये कौन है जो विश्विद्यालय के माहौल को खराब करना चाहता है ? बवाल काटने वाले छात्रों पर अनुशासन भंग करने पर क्यों कोई कारवाई नहीं हुई। ये छात्र कौन है जिन्हें सनातन संस्कृति की इतनी चिंता है लेकिन इन नवरात्रों में बलात्कार की घटनाओं पर मुँह सिलकर बैठ जाते है। खुद रजिस्ट्रार के दफ्तर में एक कर्मचारी NRI महिला से बलात्कार के मामलों में मुचलके पर है। ऐसे तमाम विषय है जिनपर रजिस्ट्रार को एक्शन लेने का अधिकार है लेकिन वो चुप्पी ओढ़े बैठी है। सूत्रों के द्वारा मिले खबरों पर यकीन करें तो एक मामलें में रजिस्ट्रार को जेल जाने की भी नौबत है। लेकिन इन मुद्दों से इतर आज मिथिलेश का मुद्दा बेहद संवेदनशील है।
‘‘तक्षकपोस्ट” से बातचीत में डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम कहते हैं, ”इस घटना ने हमारे सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर वॉर किया है। मैंने यहीं से पढ़ाई की है फिर यही शिक्षक बना। इनको इस बात की दिक्कत है कि मैं कैसे यहां पढ़ा रहा हूं। मेरा आर्थिक संबल होना भी इनको अच्छा नहीं लग रहा इनकी समस्या ये भी है की मैं कैसे बुलेट पर सवारी कर रहा हूं। क्या एक दलित को कोई अधिकार नहीं अपने सामाजिक रहन-सहन को सुधारें। मुझे एक स्टूडेंट होने दौरान से शिक्षक बनके के बाद सम्मानित भी किया जाता रहा है। इससे पहले भी यही छात्र मेरे खिलाफ कुलपति महोदय से अनर्गल बातों को लेकर शिकायत दर्ज कर चुके है। लेकिन बात-चीत के बाद मामला खत्म हो गया था। इस बार संविधान के बहाने मुझे टारगेट किया जा रहा है। मैंने संविधान की बात कही है, कोई अनर्गल बात नहीं की है जिसे तूल दिया जाए। आरएसएस और सत्तारूढ़ दल के लोग सरकारी मशीनरी पर दबाव बनाकर मेरे खिलाफ फर्जी मामला दर्ज कराना चाहते हैं।
देश भर में मचा बवाल-
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में दलित शिक्षक की बर्खास्तगी को लेकर कई दलित संगठन विरोध में खड़े हो गए हैं। भीम आर्मी की महिला विंग ने डॉ. गौतम का समर्थन करते हुए कहा है, ” विश्वविद्यालय को अपने अधिकार का दुरुपयोग कर रहा है। क्या महिलाओं को हिन्दू कोड बिल और संविधान पढ़ने की सलाह देना अपराध है? ” दलित शिक्षक के खिलाफ हुई कार्रवाई को लेकर काशी विद्यापीठ की बहुजन इकाई के स्टूडेंट्स बेहद गुस्से में हैं। उन्होंने कुलपति को जवाबी ज्ञापन सौपा है और कहा है कि अगर निर्दोष शिक्षक की बर्खास्तगी वापस नहीं ली गई तो देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू किया जाएगा।”
विश्वविद्यालय प्रशासन को ज्ञापन सौंपने के बाद छात्र नेता अरविंद कुमार ने कहा, ” महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ प्रशासन ने पीड़ित टीचर डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम को बिना नोटिस दिए ही पद से बेदखल कर दिया। आखिरकार, वो किसी के फेसबुक पोस्ट के आधार पर कार्रवाई कैसे कर सकता है। यह विश्वविद्यालय का अधिकार नहीं है कि वह साइबर सेल का काम करे। डॉ.गौतम ने अगर विश्वविद्यालय परिसर अथवा क्लास रूम में किसी की आस्था को ठेस पहुंचाई होती, तो एक मामला बनता। सोशल मीडिया पर राइट टू फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन के तहत कोई अपनी बात रख रहा है, तो उसे निलंबित किया जाना कानूनी तौर पर गलत और संविधान विरोधी है। दलित शिक्षरक की बर्खास्तगीपूरी तरह अन्यायपूर्ण है। विश्वविद्यालय प्रशासन का यह रवैया तानाशाही वाला है।” ज्ञापन देने वालों में अरविंद कुमार, पिंटू कुमार जैश, पंकज कुमार निगम शामिल थे।
इस बीच देश के जाने-माने पत्रकार दिलीप मंडल ने ट्वीट कर इस मुद्दे को गरमा दिया है। उन्होंने कहा है की दलित शिक्षक की बर्खास्तगी के मामले पर बहुजन समाज के लोग ट्वीट कर अपना गुस्सा जता रहे हैं। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है, ”एक पोस्ट को लिखने के कारण यूपी में एक टीचर को नौकरी से हटा दिया गया है।
गौर करें तो 2014 से भाजपा के सत्ता में आने के बाद से दलितों का उत्पीड़न बढ़ा है। देश को राष्ट्रभक्ति की राह पर चलाने के लिए सिनेमा घरों में फ़िल्म शुरू होने से पहले बजने वाले राष्ट्रगान के समय खड़े होना अनिवार्य किया गया। कई लोगों ने राष्ट्रगान बजने के वक़्त अपनी सीट से उठने से इनकार किया तो उनकी पिटाई के वाक़ये भी सामने आए, हालांकि बाद में इसे अनिवार्य से स्वैच्छिक कर दिया गया। बाद में लोगों के खान-पान पर बहस शुरू हुई और बीफ़ खाने के शक में पीट-पीटकर जान भी ले ली गई। बनारस में जब से ज्ञानवापी का बवाल खड़ा हुआ है तब से यह भी सवाल उठाया जाने लगा है कि बनारसियों को क्या लिखना चाहिए और क्या नहीं लिखना चाहिए? स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि संविधान और मानवता अब संकीर्णता के आगे बौनी पड़ने लगी है।
विवि प्रशासन के निशाने पर दलित-
कुलपति और रजिस्ट्रार को अगर देखें तो कुलपति सुलझे हुये सौम्य व्यक्ति है अनुभवी है लेकिन दूसरी तरफ रजिस्ट्रार का कम अनुभव और सत्ता के अलावा संघ की तरफ से मिलने वाला दबाव कुल मिलाकर कैंपस में शिक्षा का स्तर गिराने में लगे है। क्योंकि अनुशासन का सही होना बहुत जरूरी है, जिसका इस समय अभाव है विद्यापीठ में, शिक्षकों का और छात्रों का अपनी पहचान उजागर ना करते हुये ये कहना ”यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है” डॉ.मिथिलेश गौतम की बर्खास्तगी गैरकानूनी और असंवैधानिक है। उनके वक्तव्य में किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने जैसी कोई बात नहीं है। काशी विद्यापीठ प्रशासन को एकतरफा कार्रवाई से बचना चाहिए था। अच्छा होगा कि डॉ.गौतम के खिलाफ कार्रवाई रोकी जाए और कुलपति अपना निर्णय वापस लेते हुए उन्हें बहाल करें। इस तरह की कारवाई अच्छी नहीं मानी जा सकती। ये निरंकुश और संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। सिर्फ फेसबुक पर विचार रखने भर से ऐसी कार्रवाई से यह साफ प्रतीत होता है कि दलित समुदाय विश्वविद्यालय प्रशासन के निशाने पर है। दलित उनके आसान शिकार बन गए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन सांप्रदायिक और देश विरोधी तत्वों के दबाव में आकर काम कर रहा है।
कैंपस में फैली गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार पर मैडम नतमस्तक है। ऐसे सैकड़ों मामलें है जिन पर कोई कारवाई नहीं कभी नहीं हुई जैसे गंगापुर कैंपस में महिला अतिथि शिक्षिका का यौन शोषण डॉ योगेंद्र सिंह अपने फ़र्ज़ी डिग्री के मामलें में आज भी मामलें का सामना कर रहे हैं लेकिन ढाक के तीन पात वाली कहावत यहां सटीक बैठती है। कुछ दिनों पहले ही रजिस्ट्रार मैडम का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें अपने दफ्तर के अंदर वो अपनी मांगों लेकर गये छात्रों का मोबाइल छीनते नजर आ रही हैं, फिर इस मामलें में रजिस्ट्रार ने क्यों एक तरफा फैसला ले लिया।
”संविधान पढ़ने की वकालत करना गुनाह कतई नहीं हो सकता। इससे न हिंसा फैलती है और न ही नफ़रत। जिन लोगों ने आस्था को आगे रखकर संविधान पर हमला बोला है कार्रवाई तो उनके खिलाफ होनी चाहिए। हमारा संविधान कहता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में असहमति ज़ाहिर करना शामिल है और यह बहुत अहम भी है। अपने मुल्क में अगर संविधान पर ही सवाल उठने लगेगा तो देश की जेलों में जगह ही नहीं बचेगी जाएगा।”
‘‘संविधान और हिन्दू कोड विधेयक के निर्माण में डॉ.भीमराव अंबेडकर की अहम भूमिका रही। जब हिन्दू कोड बिल लाया गया था उस समय आरएसएस के मुखिया एमएफ गोलवर्कर ने उसका विरोध किया था। आरएसएस की कल्पना थी कि हिन्दू राष्ट्र का समाज पुरुष सत्तामत्मक होगा और जाति प्रथा भी होगी। संघ और गोलवर्कर के दिखाये रास्तों पर चल रहे AVBP को क्या अपनी विचारधारा को बदलने की जरूरत नहीं है। सत्ता पाने के लिए दलितों के पैर धोने से लेकर थाली में परोसें भोजन को मीडिया के जरिये आम आदमी के घरों में भेजने वाले लोगों को सोचने से पढ़ने से लिखने से क्यों डर लगता है।
राष्ट्रीय आंदोलन के क्रम में गांधी जी की प्रेरणा से स्थापित इस शिक्षण संस्थान में दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है, जिससे देश भर में काशी का नाम कलंकित हुआ है। प्रगतिशील चिंतकों की बड़ी जमात काशी विद्यापीठ से ही निकली है। काशी विश्वनाथ मंदिर में दलित प्रवेश की मुहिम में इसी संस्था के प्रो.राजाराम शास्त्री, प्रो.दूधनाथ चतुर्वेदी, प्रो.कृष्णनाथ, प्रो.रमेश चंद्र तिवारी को आज भी याद किया जाता है।
बनारस के दलित चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. लेनिन रघुवंशी से तक्षकपोस्ट की बातचीत में अपना पक्ष रखते हुये। कहते हैं, ”संविधान अलग-अलग विचारों को रखने की आजादी देता है। सनातन संस्कृति में शास्त्रार्थ करने का अधिकार प्राप्त है। ईश्वर के अस्तित्व को न मानने वाले भी हैं। दलित लेक्चरर की बर्खास्तगी देश के संविधान और सनातक संस्कृति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। 8 अक्टूबर को मानवाधिकार जननिगरानी समिति इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराएगी।
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