वाराणसी: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से संबंद्धता वाले कॉलेज डॉ विभूति नारायण गंगापुर कैंपस में एक अतिथि शिक्षिका डॉ वर्षा ( बदला हुआ नाम, पीड़ित की पहचान हम नहीं उजागर कर सकते है,) को कॉलेज के निदेशक डॉ योगेंद्र सिंह के चैंबर में बुलाया जाता है , और उनके साथ बदसलूकी के साथ भद्दे और (Derogatory ) अपमानजनक भाषा का कई लोगों की मौजूदगी में ना सिर्फ डॉ वर्षा के लिए प्रयोग किया जाता है, बल्कि उनको धमकी भी दी जाती है। डॉ योगेंद्र सिंह के द्वारा, धमकी और नौकरी से बाहर करके धमकाने के बहाने मंशा कुछ और ही थी, जिसका जिक्र पीड़िता ने अपनी लिखित शिकायत में किया है इसमें योगेंद्र सिंह के साथ-साथ उसी कैंपस में पढ़ाने वाले शिक्षक डॉ सर्वेश मिश्रा का भी हाथ है। दोनों के खिलाफ आज 10 दिन से ज्यादा बीतने के बाद भी कुलपति की तरफ से कोई कारवाई नहीं हुई।
ये घटना 10 मार्च 2021 को घटती है। घटना के बाद डॉ वर्षा रोते हुये कैंपस छोड़ देती है, और अपनी लिखित शिकायत महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति त्रिलोकी नाथ सिंह, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, और महिला आयोग को देती है। डॉ वर्षा के शिकायत के बाद सर्वेश तिवारी डॉ वर्षा के घर जाते है और उनके परिवार के समक्ष डॉ वर्षा के साथ फिर बद्तमीजी करते है और इस घटना को मनुपुलेट करके प्रभावित करने की कोशिश करते है। कुलपति के पास शिकायत आने के बाद FIR करवाने की जगह या कमेटी बनाने की जगह उनके द्वारा मामला दबाना भी संदेह के दायरे में है।
डॉ वर्षा को अपनी इज्जत और सम्मान के बदले अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है। घटना के लिए न्याय की उम्मीद में आज भी वो इंसाफ की राह देख रही है जो वाकई हमारे सभ्य समाज के मुंह पर एक बदनुमा दाग है, एक तरफ महिलाओं के अधिकार की बात की जाती है और दूसरी तरफ इस तरह की घटना में कोई कारवाई इस ख़बर को लिखे जाने तक विश्विद्यालय की तरफ से नहीं हुई है। इसका क्या मतलब निकाला जाये की कुलपति ऐसी घटनाओं में निर्णय लेने में अयोग्य और अक्षम है, ये सवाल आनंदी बेन पटेल से भी है वो खुद महिला है और ऐसे मामलों में संवेदनशील होने की जगह केवल कागज़ों पर बेटी बचाओ और बेटी पढाओं को बात हो रही है। ये तो ये अध्यापिका है जो हिम्मत करके सामने आई ना जाने ऐसी कितनी मासूम बच्चियों को डॉ योगेंद्र सिंह और सर्वेश मिश्रा ने अपनी गंदी नजरों का शिकार बनाया होगा। डॉ वर्षा के साथ ऐसा क्यों हुआ ! ये देखना भी जरूरी है-
डॉ वर्षा विगत 1-09-2020 से उस कैंपस में पढ़ा रही है, और उनके साथ लगातार किसी ना किसी बहाने डॉ सर्वेश मिश्रा नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश में लगा रहा, इस क्रम में उसने ना केवल डॉ वर्षा पर शारीरिक टिप्पणी की बल्कि गंदी मानसिकता को भी दर्शाया, बल्कि उनके साथ ऐसी बातें की जो कही से भी सही नहीं ठहराया जा सकता, डॉ वर्षा से बात करके उनके बहते आंसू में झलकी इस पीड़ा को ना सिर्फ महसूस किया जा सकता है बल्कि ये भी कयास लगाया जा सकता है कि आज जो महिला अपने घर से बाहर आकर काम करना चाहती है, या कर रही है उन्हें डॉ योगेंद्र सिंह और डॉ सर्वेश मिश्रा जैसे ना जाने कितने गिद्धों का सामना करना पड़ता है, जो ना सिर्फ एक महिला के शरीर को सिर्फ नोंचने के लिए तैयार रहते है, बल्कि इसके लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। तक्षकपोस्ट की टीम को ये भी पड़ताल में पता चला, सिर्फ डॉ वर्षा ही नहीं ऐसी कई अन्य महिला अध्यापिका है जो लोकलाज के कारण चुप रही, जिनके साथ उत्पीड़न हुआ है। उस कैंपस में डॉ योगेंद्र सिंह और डॉ सर्वेश के द्वारा, कुछ ऐसे महिलाओं की आपबीती हमारे पास है जिसे लिखने में हमें संकोच हो रहा है, देखा जाये तो ये कानून के दायरे में बलात्कार की कैटेगरी में आता है। डॉ वर्षा की मानसिक स्वास्थ्य का अंदाजा आप लगा सकते है।
घटना की शिकायत के बाद भी इन दोनों व्यक्तियों पर क्यों कोई कारवाई नहीं हुई-
मौजूदा कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह, डॉ योगेंद्र सिंह के साथ-साथ डॉ सर्वेश मिश्रा का हमप्याला वाला हिसाब है, तभी राष्ट्रीय महिला आयोग के द्वारा इस मामले को संज्ञान लेने के बाद अभी तक ना तो आरोपियों को POSH act 2013 के हिसाब से जांच होने तक इनके पद से हटाया गया है, ना ही कोई जांच कमेटी बनी है, विश्विद्यालय की मौजूदा और ऐसे गंभीर विषयों में जांच के लिए बनी कमेटी में भी कुलपति के खासमखास है जो मजे लूट रहे है, घटना की रिपोर्ट वाराणसी के अखबारों में अपराधियों के पक्ष में करवाई गई है ताकि इस मामले की गंभीरता को प्रभावित किया जा सकें। जो बेहद निराशाजनक है। कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह जानबूझ कर इस मामलें को दबाने की जुगत में है क्योंकि डॉ योगेंद्र सिंह विश्विद्यालय कैंपस में उनके भ्रष्टाचार में भी बराबर के भागीदार है। इस मामलें में जल्द से जल्द डॉ वर्षा को सम्मानजनक न्याय मिलना चाहिए और कमेटी बननी चाहिए जो निष्पक्ष जांच कर सकें।
क्या कहता है भारत का कानून-
Indian penal Court और (POSH act 2013 ) के अंदर ये मानसिक बलात्कार की श्रेणी में आता है, किसी भी कार्यस्थल पर ऐसी घटना को IPC 358, और 509 में शिकायत के बाद रजिस्टर्ड करवाना जरूरी है, विशाखा गाइडलाइंस और निर्भया कांड के बाद भी बहुत सारे बदलाव हुये है , जिसका पालन किसी भी कार्यस्थल पर जरूरी है। कुछ ऐसी बातें है जो कार्यस्थल पर अपराध की श्रेणी में आता है देखिये।
Throw them in jail