भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सोमवार को वाराणसी जिला न्यायालय के समक्ष ज्ञानवापी मस्जिद पर अपनी सीलबंद वैज्ञानिक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की। पिछले हफ्ते कोर्ट ने एएसआई को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की वैज्ञानिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करने के लिए एक हफ्ते की मोहलत दी थी। रिपोर्ट दाखिल करने के बारे में हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव ने कहा, ‘एएसआई ने आज वाराणसी जिला न्यायालय के समक्ष अपनी वैज्ञानिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की।’
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ज्ञानवापी मुद्दे से संबंधित सुनवाई पर हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, “एएसआई ने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट अदालत में पेश की जो अपने आप में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। इसके अलावा, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने अदालत से अनुरोध किया है कि रिपोर्ट के निष्कर्षों को जनता के सामने न रखा जाए। इससे संबंधित सुनवाई 21 दिसंबर को होगी।”
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इससे पहले मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में याचिका देते हुए मांग की थी कि रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाए। मुस्लिम पक्ष ने यह भी मांग की थी कि साथ ही बिना हलफनामे के किसी को भी रिपोर्ट सार्वजनिक करने की इजाजत ना दी जाए। दोपहर में ही जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में रिपोर्ट दाखिल की गई। रिपोर्ट पेश होते समय कोर्ट में हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन सहित सभी पक्ष मौजूद थे। इसमें शृंगार गौरी की वादिनी महिलाएं भी शामिल थीं।
विशेष रूप से एएसआई काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर रहा था, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि 17 वीं शताब्दी की मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर किया गया था या नहीं।
सर्वेक्षण तब शुरू हुआ था जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी जिला अदालत के आदेश को बरकरार रखा और फैसला सुनाया कि यह कदम “न्याय के हित में आवश्यक” था और इससे विवाद में हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को फायदा होगा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी समिति आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। शीर्ष अदालत ने 4 अगस्त को एएसआई सर्वेक्षण पर उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
अपने आदेश में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एएसआई से सर्वेक्षण के दौरान कोई आक्रामक कार्य नहीं करने को कहा था। कोर्ट ने किसी भी खुदाई को भी खारिज कर दिया, जिसे वाराणसी अदालत ने कहा था कि यदि आवश्यक हो तो आयोजित किया जा सकता है।