शिक्षा का स्तर और मंत्रालय के कार्यप्रणाली पर एक बड़ा सवाल है आजकल होने वाली ज्यादातर नियुक्ति को लेकर जिनको हरी झंडी के बाद कुलपति बनाया गया है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी से लेकर प्रदेश तक के विश्विद्यालयों में किसी का चयन होने तक उसके सारे दाग खंगाले जाते है कि वो दाग अच्छे है या बुरे। उसके बाद ही यूनिवर्सिटी की कमान सौंपी जाती हैं।
लेकिन हालिया मंत्रिमंडल और शिक्षा मंत्रालय लगता है दागियों को ज्यादा पसंद आने लगा है ऐसा कहने की सॉलिड वजह है, दिल्ली विश्वविद्यालय में 26 जुलाई को सम्पन्न हुई चयन प्रक्रिया को देखकर कोई संदेह बाकी नहीं है। मामला दिलचस्प है-
2016 में दिल्ली विश्विद्यालय में 22वें कुलपति के तौर पर प्रोफेसर योगेश त्यागी को कुलपति बनाया गया था। तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की सहमति से। लेकिन अचानक 2020 में राष्ट्रपति महोदय को प्रोफेसर त्यागी को सस्पेंड करना पड़ा, वजह पॉवर का टकराव और दिल्ली यूनिवर्सिटी में त्यागी के द्वारा आरएसएस के नियुक्तियों की सिफारिश पर टकराव मुख्य वजह बनी इसकी पुख्ता जानकारी उपलब्ध है अंदरखाने में बातें भी है पर खुलकर कभी ना तो मंत्रालय ने कुछ कहा और ना ही प्रोफेसर योगेश त्यागी ने।
त्यागी को हटाने में शिक्षा मंत्रालय की सिफारिश थी, जिस पर राष्ट्रपति ने मुहर लगाई, ऐसा दिल्ली यूनिवर्सिटी के तो क्या किसी भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। ये इसलिए भी किया गया, क्योंकि प्रधानमंत्री की डिग्री और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री को लेकर विवाद गहरा गया था। और मीडिया में रोज़ नकली डिग्री पर बवाल हावी था।
त्यागी को हटाने के बाद PC जोशी को कार्यवाहक कुलपति बनाया गया, लेकिन स्थायी कुलपति की तलाश चल रही थीं, हज़ारों आवेदन के बाद बॉयोडाटा शार्ट लिस्ट करने के बाद कुल 1 दर्जन भर से ज्यादा व्यक्तियों को 26 तारीखन 2021 को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। अब इन सभी नामों में से कुल 4 नाम चयन समिति के द्वारा चुनने के बाद शिक्षा मंत्रालय के जरिये राष्ट्रपति को भेजा जा चुका होगा या जायेगाचुकी होगी कुलपति के नाम पर मुहर लगाने के लिए।
इस इंटरव्यू में मौजूदा 4 कुलपतियों के साथ अन्य लोगों को शामिल किया गया है, दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति PC जोशी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति एम जगदीश, अटल बिहारी वाजपेयी छत्तीसगढ़ के कुलपति एडीएन वाजपेयी, और डीटीयू के कुलपति डॉ योगेश सिंह शामिल हैं।
IIT दिल्ली से एमपी गुप्ता, JNU से ही अजय दुबे, IIT खड़गपुर से एके गुप्ता, श्री-श्री रविशंकर विश्विद्यालय से अजय कुमार, जीवाजी विश्विद्यालय से संगीता शुक्ला, भिवानी यूनिवर्सिटी से राजकुमार, उस्मानिया से शोराजी के अलावा IIT BHU से त्रिलोकीनाथ सिंह है।
गौरतलब है कि त्रिलोकीनाथ सिंह का नाम IACCS IAF Scam 7900 में पहले ही सुर्खियों में है इसके बावजूद दिल्ली यूनिवर्सिटी के ये महाशय BHU के लिए भी शॉर्ट लिस्टेड हुए है। मतलब देश और सेना के साथ गद्दारी का परिणाम कुलपति बनने के लिए मुफीद है मंत्रालय के हिसाब से। जितने दाग दामन में उतने अच्छे और योग्य व्यक्ति शिक्षा मंत्रालय की नजर में।
हमारे मंत्रालय के विश्वसनीय सूत्रों और आरएसएस के हवाले से योगेश सिंह के नाम पर सहमति बन चुकी है बस घोषणा होना बाकी है।
अब देखिए चयन कमेटी में कौन-कौन है-
दिल्ली विश्वविद्यालय कुलपति चयन के लिए बनी सिलेक्शन कमेटी में जिन लोगों को शामिल किया गया था उनमें से तीन नाम हमारे हाथ लगे-
योगेंद्र नारायण सेवानिवृत्त IAS
प्रो राजकुमार वीसी, पंजाब
प्रो. तिरुपति राव
गौरतलब है कि रिटायर्ड आईएएस योगेंद्र नारायण की योगेश सिंह के साथ बेहद घनिष्ठता है। इंटरव्यू के सही मायनों में बिना बेईमानी सम्भव है-
अब आते है इस खेल के असल फर्ज़ीवाड़े पर दरअसल 23 जुलाई को एक मेल, ऊत्तरप्रदेश की राज्यपाल के साथ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्रालय को भेजा जाता है जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी के नये चुने जाने वाले कुलपति की रेस में शामिल योगेश सिंह को लेकर बेहद गंभीर आरोप संग्लन है। इस मेल में उनके डिग्री को लेकर खुलासे है और साहित्यिक चोरी का आरोप है रिसर्च पेपर पर। इसके अलावा 2019 में तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों के नियुक्तियों से लेकर जबरन हटाये जाने को लेकर जांच की सिफारिश है दिल्ली पुलिस में दर्ज FIR के अलावा, उनके ख़िलाफ़ CBI जांच की बात खुद भाजपा के एक वर्तमान ऊत्तर प्रदेश के विधायक ने की है। सबूतों की कॉपी तक्षकपोस्ट के पास मौजूद है-
पर राज्यपाल महोदया के कानों पर सिक्कों की खनक के अलावा और कुछ रेंगता नहीं तो कुछ होगा ऐसी उम्मीद भविष्य पर छोड़ना ठीक है। क्योंकि इसी गैंग से विनय पाठक को राज्यपाल आनंदीबेन ने कानपुर यूनिवर्सिटी का कुलपति नियुक्त किया है।
अब देखिए शिक्षा माफ़ियाओं की बात हमनें की ऐसा क्यों कहा क्योंकि कुलपति बनने और बनाने के पीछे एक गैंग है जो खुद सिलेक्शन कमेटी भी बनाता है, और कुलपति भी बनता है। इसमें मजेदार वाक्या ये है कि इस कमेटी में सारे भ्रष्टाचारी और नकली डिग्री और दूसरों की मेहनत पर अपना नाम छापने वाले बैठे है। जब किसी यूनिवर्सिटी के लिए कुलपति का चुनाव होने की नौबत आती है जो दुधारू गाय जैसी मोटी बजट वाली यूनिवर्सिटी होती है तो इसी ग्रुप में से आवेदन होते है और बचे लोगों की चयनकर्ता कमेटी बन जाती है जो अपने दूसरे साथी को चुनकर डेकोरम पूरा करते है और असली योग्यता के मुंह पर दरवाजा बंद करके खुद कुर्सी पर बैठ जाते है। इसी में डॉ योगेश सिंह, विनय पाठक, जेके सैनी, योगेंद्र नारायण सेवानिवृत्त IAS शामिल है।
ये योगेश सिंह भी उसी गैंग से है, इनके गुरु आजकल कानपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति बने बैठे विनय पाठक है। इनकी नियुक्ति और फ़र्ज़ी रिसर्च पेपर और डिग्री को लेकर विवाद का खुलासा भी तक्षकपोस्ट ने किया था। योगेश सिंह के खिलाफ डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्विद्यालय में अकैडमिक कमेटी में शिकायत है। दिल्ली में GGSIPU में शिकायत दर्ज है। जिनमें रिसर्च पेपर चोरी का आरोप है।
इसके अलावा डॉ योगेश सिंह पूना विश्वविद्यालय से संबद्ध निजी कॉलेज से स्नातक हैं। वह 4 साल के निर्धारित समय में अपनी स्नातक की डिग्री पूरी नहीं कर सके। यही कारण है कि उन्होंने कभी भी अपनी किसी भी वेब साइट में इसका उल्लेख नहीं किया। इसके अलावा उन्होंने स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए कभी भी गेट पास नहीं किया। विडंबना यह है कि अब ऐसे लोगों को प्रतिष्ठित प्रशासनिक पद सौंपे जाते हैं। परिणाम स्पष्ट रूप से कई घोटाले, रिसर्च चोरी और अकादमिक अराजकता होंगे। फर्ज़ीवाड़े और भविष्य में क्या पीढ़ी निकली ये तो देखने वाली बात होगी।
योगेश सिंह के शैक्षणिक योग्यता पर सवाल और कुलपति के लिए तय मानक की क्या शिक्षा मंत्रालय ने जांच ठीक से की, क्या मंत्रालय ने 23 जुलाई और 2019 के मामलों का संज्ञान लिया। योगेश सिंह के नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली (अब नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी) में निदेशक की नियुक्ति
विश्वविद्यालय दिल्ली) और वर्ष 2017 में संदर्भित संस्थान में निदेशक के रूप में डॉ जे पी सैनी की नियुक्ति की मनमाने तरीके से नियुक्ति में सहयोग।
यही जेपी सैनी अब लखनऊ यूनिवर्सिटी के लिए चयनित होना है, इसलिए योगेश सिंह की गोटी दिल्ली यूनिवर्सिटी में बिठाई गई है। योगेश सिंह और विनय पाठक लखनऊ यूनिवर्सिटी के लिए सर्च कमेटी का हिस्सा है।
मतलब कुलपति बनने बनाने में इतना बड़ा फर्जीवाड़ा, शिक्षा मंत्रालय कैसे बॉयोडाटा शार्ट लिस्टेड करता है जहाँ एक से बढ़कर एक आरोपी और रिसर्च की चोरी में लिप्त व्यक्तियों को फाइनल किया जाता है। दिल्ली विश्वविद्यालय की एक साख है आज भी विश्व मे नाम है क्या ऐसे लोगों का कुलपति बनना जायज़ है एकेडमिक में सुधार प्रधानमंत्री मोदी लाने की बात करते है, नये नवेले शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी यही बात तोते की तरह दोहरा रहे है। पर सफाई और छटाई के साथ योग्यता कैसे मिलेगी।
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