सबको आगाह करने वाली आवाज़ आज खामोश थी, आस-पास ख़तरा हो या फिर इंसानी आहट वो सबको चौकन्ना कर देती मगर आज शाम उसने मुझे चौंका दिया। मेरी आँखों ने जब एक के बाद एक दो स्थान पर टिटिहरी (Red-wattled lapwing) को मृत हालत में देखा तो एक बारगी यक़ीन करना मुश्किल था, लेकिन क़रीब पहुंचने पर उस हकीकत को स्वीकार करना पड़ा जिसे आँखें देख रहीं थी। ये मौत सामान्य थी, कोई बदमाशी हुई या फिर किसी की सोची समझी करतूत ? कई सवाल। मन में एक ख्याल ये भी आया कि टिटिहरी (Red-wattled lapwing) कहीं गर्मीं के प्रकोप का शिकार तो नहीं हुई, फिर ख्याल आया इतनी प्रचंड गर्मी भी नहीं है जिससे उनकी मौत हो जाये । ऐसे कईयों सवाल मन में उठते रहे, कुछ के जवाब भी खुद सोचता रहा । मन विचलित हुआ, इस दृश्य को देख थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि एक बगुला (Little egret) जमीन पर पड़ा दिखा। उसके करीब जाते ही माज़रा कुछ-कुछ समझ आ गया। तालाब के एक ही किनारे पर महज 25 मीटर की दूरी के अंतर में तीन पक्षियों की मौत आज हमसे सवाल पूछ रही थी, आखिर हमारा कसूर क्या था ?
दरअसल गनियारी का शिवसागर जलाशय इस साल प्रवासी और स्थानीय पक्षियों की सबसे पसंदीदा जगह बना रहा। अगर हम सिर्फ साल 2024 का ही जिक्र करें तो माह जनवरी से आज 12 मई 2024 तक शिवसागर जलाशय में Bar-headed goose, Whiskered tern, Spotted Redshank, Greater sand plover, Ruddy shelduck, Common Greenshank और Little tern जैसे कई प्रवासी पक्षियों ने अपना समय व्यतीत किया है कुछ अभी रुके हुए हैं।
बिलासपुर जिले में कईयों ऐसे स्थान हैं जहाँ देशी-विदेशी परिंदों की आमदगी दर्ज की जाती रही है, प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के संरक्षण, सुरक्षा के लिए हमने कई बार वन महकमें के जिम्मेदार अफसरों से बातचीत की है। अफ़सोस वन महकमें के अधिकाँश अफसरों को पर-परिन्दों के संकटग्रस्त होने से ख़ास फर्क नहीं पड़ा। पक्षियों का शिकार कोई नया खेल नहीं, कोटा के घोंघा जलाशय से लेकर मोहनभाठा तक और गनियारी के शिवसागर जलाशय से लेकर कोपरा तक शिकारी सक्रिय हैं। मुझे यकीन है कि आज शिवसागर तालाब में जो मंज़र आँखों के सामने था उसकी पटकथा किसी शिकारी ने लिखी होगी। मेरा अनुमान ये भी है कि सम्भवतः तालाब के कुछ हिस्सों के पानी में शिकारियों ने कोई जहरीली वस्तु मिलाई हो, क्यूंकि मौके से मृत परिन्दों की ली गई तस्वीरें इस बात की तस्दीक करती हैं।
शिवसागर तालाब और उसके आस -पास की सैकड़ों एकड़ भांठा भूमि मुरुम के अवैध उत्खनन की खदान है। मुरुम माफिया के हौंसले और बेतहाशा तरीके से होते उत्खनन को देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें प्रशासनिक और राजनैतिक संरक्षण हासिल है। एक अनुमान के मुताबिक़ शिवसागर तालाब के इर्द-गिर्द पक्षी प्रेमियों की लगातार बढ़ती भीड़ देखकर अवैध कारोबार में शामिल माफियाओं को किसी तरह की आशंका हो। इन तमाम मसलों के बीच सवाल अब भी वही बना हुआ है, आखिर यहां परिन्दों को कब से और कौन मार रहा है ?
इस संबंध में मैंने छत्तीसगढ़ राज्य के पक्षी विशेषज्ञ श्री मोहित जी साहू से बात की, पूरा वाक्या बताने के बाद उनका भी यही मानना है कि तालाब के कुछ हिस्से में यूरिया जैसी जहरीली वस्तु मिलाई गई होगी। चूँकि यूरिया ठोस होता है लिहाजा जिस जगह डाला गया होगा उसके कुछ दूर तक का पानी दूषित होगा। सम्भवतः मृत पक्षियों ने उसी हिस्से का पानी पीया हो जिसके चलते उनकी मौत हुई।
इस पूरे मामले में अब देखने वाली बात ये है कि जिला प्रशासन और वन विभाग की नींद अब भी उड़ती है या फिर शिवसागर तालाब में आने वाले विदेशी परिंदों के साथ-साथ स्थानीय पक्षियों की मौत का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है।