जेल में बंद गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी की गुरुवार देर रात उत्तर प्रदेश के बांदा में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। जेल अधिकारियों ने कहा कि 60 वर्षीय राजनेता की रमजान का उपवास तोड़ने के बाद उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ गई। उत्तर प्रदेश के मऊ से पांच बार विधायक रहे मुख्तार अंसारी के खिलाफ 60 से अधिक मामले लंबित थे और वह बांदा जिला जेल में बंद थे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गहरी जड़ें रखने वाले परिवार में जन्मे अंसारी का अंडरवर्ल्ड में प्रवेश उनके शानदार परिवार से एक बिलकुल अलग प्रस्थान था।
30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के यूसुफपुर में जन्मे मुख्तार अंसारी का अपराध की गलियों से सत्ता के गलियारों तक का सफर जितना विवादास्पद था उतना ही मनोरम भी। उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक परिदृश्य में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध था। उनके दादा, मुख्तार अहमद अंसारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख व्यक्ति थे और 1927 में इसके अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे।
अलगाववादी एजेंडे के कारण खुद को अलग करने से पहले मुख्तार अहमद अंसारी मुस्लिम लीग से भी जुड़े थे। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया के चांसलर के रूप में भी कार्य किया। इस पद पर वे 1936 में अपनी मृत्यु तक बने रहे।
मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भारतीय सेना में एक सम्मानित अधिकारी थे। उन्होंने 1948 में पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौरान जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में सर्वोच्च बलिदान दिया और मरणोपरांत महावीर चक्र अर्जित किया।
मुख्तार अंसारी का अपराध जगत में एंट्री का रास्ता ये रहा-
महान विरासत के बावजूद मुख्तार अंसारी ने बिल्कुल अलग रास्ता चुना। उनका आपराधिक करियर 1980 के दशक में पूर्वांचल की अराजकता के बीच शुरू हुआ, जो सरकारी ठेकों के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले आपराधिक गिरोहों के लिए कुख्यात क्षेत्र था। मुख्तार अंसारी का नाम पूरे उत्तर प्रदेश में आतंक का पर्याय बन गया। हत्या, हत्या का प्रयास, सशस्त्र दंगे और धोखाधड़ी सहित कई आपराधिक गतिविधियों में उनकी संलिप्तता के कारण उन्हें कई मामलों में दोषी ठहराया गया।
गंभीर अपराध से अंसारी का पहला परिचय 1988 में ग़ाज़ीपुर में भूमि विवाद को लेकर सच्चिदानंद राय की हत्या से जुड़ा था। इसने एक लंबी और अंधकारमय यात्रा की शुरुआत की। वह विशेष रूप से प्रतिद्वंद्वी माफिया ब्रिजेश सिंह के खिलाफ गिरोह युद्धों में उलझा हुआ था। अंसारी का नाम अप्रैल 2009 में कपिल देव सिंह, अगस्त 2009 में ठेकेदार अजय प्रकाश सिंह और राम सिंह मौर्य की हत्या में भी आया।
सियासी अदावत से ही मुख्तार अंसारी का नाम बड़ा हुआ और वो साल था 2002 जिसने मुख्तार की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। इसी साल बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय ने अंसारी परिवार के पास साल 1985 से रही गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट छीन ली। कृष्णानंद राय विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और तीन साल बाद यानी साल 2005 में उनकी हत्या कर दी गई।
कृष्णानंद राय एक कार्यक्रम का उद्घाटन करके लौट रहे थे तभी उनकी गाड़ी को चारों तरफ से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग की गई। हमला ऐसी सड़क पर हुआ. जहां से गाड़ी को दाएं-बाएं मोड़ने का कोई रास्ता नहीं था। हमलावरों ने AK-47 से तकरीबन 500 गोलियां चलाईं और कृष्णानंद राय समेत गाड़ी में मौजूद सभी सातों लोग मारे गए।
अपनी कुख्याति के बावजूद 1996 में BSP के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले मुख़्तार अंसारी ने 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की। इनमें से आखिरी 3 चुनाव उसने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े और जीते।
अंसारी का राजनीतिक करियर द्वंद्व की विशेषता वाला रहा। जबकि कुछ लोगों ने उसे रॉबिन हुड की छवि के रूप में देखा, वहीं अन्य ने उसे उसकी आपराधिक गतिविधियों के चश्मे से देखा।
राजनीति में उनके कार्यकाल में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ जुड़ाव शामिल था, जहां उन्हें गरीबों के मसीहा के रूप में चित्रित किया गया था, और बाद में, बीएसपी से निकाले जाने के बाद उन्होंने अपने भाइयों के साथ कौमी एकता दल (क्यूईडी) का गठन किया।
मुख्तार अंसारी का कार्यकाल सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और व्यक्तिगत लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं का शोषण करने के आरोपों से भी घिरा रहा। जेल में रहने के बावजूद, अंसारी की छाया पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति पर मंडरा रही थी। उनके बेटे अब्बास अंसारी सहित उनके परिवार के सदस्यों ने उनकी राजनीतिक विरासत को जारी रखा।