मध्यप्रदेश के बाद अब ऊत्तरप्रदेश में भी राज्यपाल आनंदीबेन पटेल अपनी मनमानी पर उतारू है जिसका साक्ष्य प्रदेश में होने वाले भ्रष्ट और सेना रक्षा सौदों में लिप्त TN Singh महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी का कुलपति और ये नई नियुक्ति जिसमें गलत तरीके से शोधपत्रों में हेरफेर के साथ UGC अधिनियम 1973 एक्ट के सुझाये गये नियमों को दरकिनार करके मनमानी करने वाले को कुलपति बनाने की पहल राजभवन से चल रही है। हालिया उदाहरण छत्रपति शाहू जी महाराज के नवेले नियुक्त कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक का मामला इसका जीता जागता उदाहरण है, ये आनंदी बेन पटेल की मनमानी उजागर करने के लिए सबसे उपयुक्त उदाहरण है। क्यों एक के बाद एक यूनिवर्सिटी विनय कुमार पाठक को सौंपी जा रही हैं। इस संदर्भ में राजभवन में तक्षकपोस्ट की तरफ से 9 अप्रैल को संपर्क किया गया था OSD शिक्षा पंकज जानी को पर हमें जबाव नहीं दिया गया जो हमारे दावे की पुष्टि करता है कि नियमों के घोर उलंघन के बाद ये नई नियुक्तियां की गई। जिसमें भयंकर अनियमितता है।
विनय पाठक के खिलाफ 2018 में UGC और शिक्षा मंत्रालय को लिखित में शिकायत की गई थी जिसकी कॉपी हमारे पास है, पिछले महीने की जो UGC की तरफ से एक RTI के जबाव में दिया गया है जिसपर 3 मार्च 2021 की तारीख है , जाहिर है उसकी एक कॉपी राजभवन को भी भेजी गई होगी इस पत्र में आप साफ तौर पर देख सकते है कि शिक्षा मंत्रालय के सचिव ने माना है कि विनय पाठक की शोध में गड़बड़ी है और शोध में प्रस्तुत किये गए विवरण चोरी के है। ये बड़ा सवाल है विनय कुमार पाठक की नियुक्ति पर।
2014 के बाद जोरशोर से कुलपतियों की नियुक्ति में धांधली शुरू हुई है , पहले भी कांग्रेस के राज में कुलपतियों की नियुक्ति पूरी तरह चमचागीरी और निजी स्वार्थों पर होती थी पर फोर भी बाकी पैमानो का ध्यान रखा जाता था पर 2014 के बाद इस पद के लिए एक पैमाना और जुड़ गया है कि कुलपति बनने वाले व्यक्ति पर कोर्ट में मुकदमा हो, मक्कारी से चोरी करके डिग्री या बॉयोडाटा में गलत सूचना जितनी ज्यादा होगी वो उतना ही मजबूत दावेदार माना जायेगा। हमारे दावों में अगर कोई त्रुटि है तो राज भवन को खुला न्यौता है हमारे दावों को गलत साबित कर दे।
आज तक्षकपोस्ट लेकर आया इस गोरखधंधे का एक बड़ा खुलासा प्रोफेसर विनय कुमार पाठक को लेकर। मामला कोई नया नहीं पर अपने रसूख और पहुंच का फायदा लेकर इसे भरपूर दबाने की कोशिश की गई है। मामला इतना संगीन है कि देश के सर्वोच्च सदन, राज्यसभा में भी विनय कुमार पाठक का मामला उछला, पर कहावत है ना “सैया भये कोतवाल तो क्या होगा” ऊत्तरप्रदेश में अभी पिछले दिनों राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने छत्रपति शाहू जी महाराज विश्विद्यालय के कुलपति की नियुक्ति की है जो अगले 3 साल तक प्रभावी रहेगी। इसके अलावा प्रोफेसर विनय पाठक के पास ए पी जे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय लखनऊ के कार्यभार भी है।
जिस व्यक्ति को जेल में होना चाहिए था , जिसके खिलाफ कोर्ट ने गैर जमानती वारंट जारी कर रखे है, जिसके खिलाफ MHRD जिसे अब नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है, RTI के लिखित जबाव जो सरकारी दस्तावेज है पर क्यों ध्यान नहीं दिया गया।
यूजीसी की गाइडलाइंस 1973 क्या कहती है
कुलपति बनने के लिए शैक्षणिक रिकॉर्ड में श्रेष्ठ पैमाना और कम से कम 10 साल का अनुभव होना जरूरी है।
विनय कुमार पाठक की पीएचडी 2004 में UP टेक्निकल यूनिवर्सिटी से हुई जहाँ उनके गाइड थे, संजय धांडे डायरेक्टर IIT कानपुर। राजनाथसिंह के पुरोहित और भाजपा के नेता सुधांशु त्रिवेदी ने विनय कुमार पाठक के साथ अपनी पीएचडी पूरी की है। साफ तौर पर ये पीएचडी राजनीति से प्रभावित होगी इससे इनकार नहीं किया जा सकता। बाद में उसी विश्विद्यालय में VC बना कर भेजा जाता है, शिकायत उठने के बाद पाठक अपनी पीएचडी की कॉपी मनुपुलेट कर के गायब कर देते है, जबकि त्रिवेदी की पीएचडी अभी भी वहाँ उपलब्ध है। अगले पार्ट में थीसिस में कहा- कहा चोरी है तक्षकपोस्ट उपलब्ध करवायेगा।
बिना 10 साल के कसौटी के कैसे विनय पाठक को कुलपति बनने के लिए उपयुक्त पाया गया राज भवन के द्वारा और पिछले तीन साल से लगातार राज भवन को चिट्ठी और साक्ष्य उपलब्ध करवाये जा रहे उन पर कारवाई क्यों नहीं हुई।
विनय कुमार पाठक के पिता किस जमाने में देश के रक्षा मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री ऊत्तरप्रदेश राजनाथ सिंह के पुरोहित रहे है, सुधांशु त्रिवेदी की जैसे आजकल उनके ज्योतिष सलाहकार है। अगले पार्ट में आपको बता चलेगा कि कैसे मजेदार ढंग से चयन समिति बनती है और कैसे खेल होता है। विनय कुमार पाठक के कुलपति बनने के पीछे बड़ा खेल और कमाई का है। खुलासा अगले अंक में…