इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना के 134 वर्ष पर जश्न की जगह मायूसी और शोक का माहौल है, विश्विद्यालय में ऐसे माहौल को बनाने का श्रेय जाता है लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आई सरकारों को जो छात्रों के बढ़ी फीस को वापस लेने की मांग को शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने पर अलोकतांत्रिक हो गई है। संविधान में दिए अधिकारों का खुलेआम हनन और दमन जारी है। पहले ही छात्रसंघ को बर्खास्त किया जा चुका है ताकि छात्रों को आवाज उठाने से रोका जाये। दूसरा पक्ष ये भी है कि छात्र आंदोलनों से निकले नेताओं ने समाज में समय-समय पर अपना योगदान दिया है। छात्र आंदोलनों से निकले नेता और समाज सुधारकों की एक लंबी फेरहिस्त है। जिनकी चर्चा फिर कभी। छात्रों को कुचलने के ये दौर ज्यादा पुराना नहीं मजह 8 साल का हैं। जिसकी शुरुआत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से होती हुई अब पूर्वांचल और देश के हर कोनों तक आ पहुंची है। नई शिक्षा नीति को लागू करने की जल्दबाजी और बिना तैयारी आर्थिक बोझ से लादने की तैयारी से गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों की कमर बिलकुल टूट चुकी है। पहले ही बेरोजगारी से लड़ रहा मध्यम वर्ग और बेरोजगारी से त्रस्त था। ऐसे में अपने बच्चों को बड़ी मुश्किल से पढ़ा पा रहा था। ऐसे में अगर छात्र बढ़ी फीस को वापस लेने की मांग कर रहे है तो इसमें दमन और तानाशाही की जगह सरकार को बैठ कर बातचीत से हल निकालना चाहिए।
इसी संदर्भ में आज के हालात पर विश्विद्यालय के पूर्व छात्रों के द्वारा लिखी पोस्ट सोशल मीडिया साइट्स पर तेजी से लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रही है, जिसमें लोकतंत्र और संविधान बचाने की बात कही जा रही है-
अपने अस्तित्व के एक सौ चौतीसवें पायदान पर खड़ा हमारा विश्वविद्यालय वायलिन पर बजते किसी शोक गीत को सर झुकाए सुन रहा है । खामोश खड़ा विजयनगरम हाल का गुम्बद , चुप्पी साधे पत्थरों की ऊंची ऊंची दीवारें देख रही हैं कि आज इसके इतिहास का पहला स्थापना दिवस है जिसमे कैंपस में विद्यार्थियों के कई गुना ज्यादा पुलिस हैं ।
आतंक से सब कुछ सहमा हुआ है-
आज हमारे हज़ारों छात्र छात्राये नई शिक्षा नीति , शिक्षा पर कारपोरेट कंट्रोल और केंद्र सरकार का सबसे क्रूर हमला झेल रहे हैं । पिछले दो हफ्ते से ज्यादा हो गया जब दो सौ फीसदी फीस वृद्धि के खिलाफ सारे छात्र एक अभूतपूर्व आंदोलन और जुझारू संघर्ष में मोर्चा लगाए हुए हैं । कदम कदम पर खाकी वर्दी से छात्रावासों और डेलीगेसी के लड़ाकों से मुठभेड़ें हो रही हैं । जिसका वीडियो आप सब तक पहुंचता ही होगा । अनिश्चित काल तक भूख हड़ताल पर बैठे छात्र बारी बारी से गिरफ्तार हो अत्यंत कमजोर शारिरिक स्थिति में अस्पताल जा रहे हैं । आत्मदाह करने का प्रयास करने वाले छात्रों को बचाने के बजाय उनपर लाठियां बरसायी जा रही है ।
अज़ान से परेशान हो जाने वाली हमारी माननीया कुलपति महोदया शायद इस बात से अनजान हैं कि पुलिस की लाठियां जिन नौजवानों के छाती का लहू चाट रही है , उन्हें यह पता हो गया है कि कुर्बानी की किसी भी कीमत पर अगर यह लड़ाई नही जीती गयी तो गरीब , मध्यमवर्गीय , ग्रामीण , कस्बाई परिवारों के बच्चों का यह आखिरी शैक्षणिक सत्र होगा । कुलपति महोदया इस यूनिवर्सिटी की चाभी अडानी अम्बानी को सौप देंगी ।
इसकी तैयारी पहले से चल रही थी । पहले छात्र संघ को भंग किया गया । लाल पद्मधर के शहादत की उस विरासत पर ताला जड़ दिया गया । अध्यापक संघ को छोटी छोटी भीख देकर दलाल और चरण चाटक चाटुकार बना दिया गया । अध्यापन और अनुसंधान से विरक्त लार टपकाने वाले , अ जूतियां उठाने वाले अध्यापकों का एक ऐसा समूह तैयार किया गया है , जो ग्रे हाउंड और गेस्टापो के काम मे लगा दिए गए ।
पूरे विश्वविद्यालय को हिटलर के कंसंट्रेशन कैम्प में बदलने की मंशा सामने आने लगी ।
जिस विश्विद्यालय ने पाँच पाँच प्रधानमंत्री दिए उसके छात्रों का मुकाबला एक ऐसे प्रधानमंत्री से है जिसने कभी किसी यूनिवर्सिटी का मुँह नहीं देखा । जेएनयू एएमयू जामिया और जादवपुर ने उसके मनसूबे को मटियामेट कर दिया । अब नया मोर्चा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी हैं । चार सौ फीसदी फीस बढ़ोतरी हमे शिक्षा के अधिकार से वंचित करने का कुचक्र है । किसान कानूनों के जरिये जिस तरह खेती की जमीनों को कारपोरेट को सौंपने जा रहे थे वैसे अब शिक्षा को , यूनिवर्सिटीज को बड़े घरानो के बिजनेस प्रोजेक्ट का हिस्सा बना देंगे ।
यह लड़ाई आर पार की लड़ाई है । यह संविधान और लोकतंत्र के बुनियाद को बचाने की लड़ाई है । आज छात्र संघ के सभी पूर्व पदाधिकारियो , अध्यापकों , लेखकों , पत्रकारों , नागरिक संगठनों , अधिवक्ता संघो को इस लड़ाई के साथ खड़ा होना चाहिये।