एलोपैथिक दवाओं को निशाना बनाकर भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को कड़ी फटकार लगाई है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने पतंजलि को चेतावनी दी कि अगर यह गलत दावा किया गया कि उनके उत्पाद कुछ बीमारियों को ठीक कर सकते हैं तो उन पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।
अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को निर्देश दिया कि वह भविष्य में ऐसे किसी भी भ्रामक विज्ञापन का प्रकाशन बंद करे। अदालत ने कहा कि पतंजलि को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह प्रेस में आकस्मिक बयान देने से बचे।
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इसके बाद, पतंजलि आयुर्वेद के वकील ने आश्वासन दिया कि वे भविष्य में ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेंगे, और यह भी सुनिश्चित करेंगे कि प्रेस में आकस्मिक बयान न दिए जाएं। इस अंडरटेकिंग को कोर्ट ने अपने आदेश में दर्ज किया।
कोर्ट ने यह निर्देश इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका पर दिया। याचिका में कहा गया था कि पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन से एलोपैथी दवाइयों की उपेक्षा हो रही है। आईएमए ने कहा था कि पतंजलि के दावों की पुष्टि नहीं हुई है और ये ड्रग्स एंड अदर मैजिक रेडेमीड एक्ट 1954 और कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 जैसे कानूनों का सीधा उल्लंघन है।
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस मुद्दे को “एलोपैथी बनाम आयुर्वेद” की बहस नहीं बनाना चाहती बल्कि भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों की समस्या का वास्तविक समाधान ढूंढना चाहती है।
यह कहते हुए कि वह इस मुद्दे की गंभीरता से जांच कर रही है, पीठ ने भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि केंद्र सरकार को समस्या से निपटने के लिए एक व्यवहार्य समाधान ढूंढना होगा। अदालत ने केंद्र सरकार से इस संबंध में व्यावहारिक सिफारिशें पेश करने को कहा। इस मामले की अगली सुनवाई अब पांच फरवरी 2024 को होगी।
पिछले साल आईएमए की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने एलोपैथी जैसी आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ बयान देने के लिए बाबा रामदेव की खिंचाई की थी।
आईएमए द्वारा एलोपैथी और चिकित्सा की आधुनिक प्रणाली के बारे में “गलत सूचना के निरंतर, व्यवस्थित और बेरोकटोक प्रसार” पर चिंता जताते हुए रिट याचिका दायर की गई थी। याचिका में दावा किया गया था कि पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन एलोपैथी की निंदा करते हैं और कुछ बीमारियों के इलाज के बारे में झूठे दावे करते हैं।