चिराग दो तरह के ही होते हैं। एक वो जो सुलगते – सुलगते दहकने लगते हैं और एक दिन शोला बन जाते हैं। यह शोला या तो पूरी तरह बर्बाद कर देता है या फिर इसकी रोशनी में खानदान और तेजी से आगे बढ़ने लगता है। दूसरे तरह का चिराग सुलगने पहले ही बुझ जाता है और तमाम कोशिशों के बावजूद ज्वाला नहीं बन पाता है लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक पूर्व केन्द्रीय मंत्री और लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश करने वाले स्वर्गीय राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान, दूसरी तरह के चिराग की श्रेणी में ही शामिल किये जा सकते हैं।
चिराग पासवान मॉडल बनना चाहते थे नहीं बन सके , फिल्मों में हीरों की तरह चमकना चाहते थे, लेकिन चिराग की रोशनी ही नहीं जल सकी। उनके साथ जिस महिला ने फिल्मों में कदम रखा था वो आज कहाँ से कहाँ पहुच गई लेकिन चिराग पासवान वहीं के वहीं नहीं रह गए बल्कि और पिछड़ गए। चिराग ने कंगना रानौत के साथ अभिनय के क्षेत्र में पहला कदम रखा था , वो कंगना आज बालीवुड में अपनी अलग पहचान के साथ खड़ी है लेकिन चिराग पूरी तरह बेदखल कर दिए गए हैं। कंगना से कुछ मुद्दों पर असहमति हो सकती है लेकिन कला के प्रति उनके दृष्टिकोण, उनकी अभिनय प्रतिभा और क्षमता को लेकर किसी तरह की उंगली उन पर नहीं उठाई जा सकती।
इसके विपरीत चिराग इस धरातल पर कहीं भी टिके नहीं रह सके। नेता पुत्र की इस योग्यता को उनके पिता ने समय पर ही पहचान लिया था इसलिए अपने आकस्मिक निधन से करीब दो दशक पहले ही पिता राम विलास पासवान ने बेटे चिराग पासवान को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बना दिया था और अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले ही चिराग को लोक जनशक्ति पार्टी का अध्यक्ष भी बना दिया था। चिराग ऐसा होनहार बिरवान( पासवान ) निकला कि पिता के निधन के डेढ़ – दो साल बाद ही लोकसभा में 6 सांसदों वाली इस क्षेत्रीय पार्टी के पांच सांसद चिराग से अलग हो गए।
नियम के अनुसार अब चिराग पासवान लोकसभा में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता नहीं रह गए हैं। उनके स्थान पर उनके चाचा पशुपति पारस को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला ने सोमवार 14 जून 2021 को पार्टी के नए नेता के रूप में मान्यता भी दे दी। चिराग अपने गृह राज्य बिहार में तो कुछ दम ख़म नहीं दिखा पाए थे लेकिन वो कंगना रानौत की मदद से सीमान्त पहाडी राज्य हिमचल में लोकजनशक्ति पार्टी का आधार स्थापित करने की कोशिशों में जरूर लगे हुए थे। कहा नहीं जा सकता कि उन्हें अब इन प्रयासों में कितनी सफलता मिल पाएगी ? वैसे संभावनाएं तो शून्य ही हैं क्योंकि अब उनका पूरा समय तकनीकी और संवैधानिक मर्यादाओं के अनुरूप पार्टी को मजबूती प्रदान करने के साथ ही उसमें अपनी पैठ बनाने में ही निकल जाएगा। किसी भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए इससे ज्यादा हैरानी वाली बात और क्या हो सकती है कि उसकी पार्टी में बगावत भी उसका चाचा करे और अपने साथ पार्टी के चार और लोकसभा सदस्यों को पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ खड़ा कर दे।
सवाल यह भी है कि चाचा पशुपति कुमार पारस को ऐसा करने की नौबत क्यों आई, इसलिए कि भतीजे ने न तो परिवार की मर्यादा का ध्यान रखा और न पार्टी के अनुशासन का ही वह सम्मान रख पाए। उनके स्वर्गीय पिता राम विलास पासवान जो अपने परिवार मेंसबसे बड़े होकर भी पार्टी के संचालन में परिवार के सभी सदस्यों की इच्छा और राय का भरपूर ख्याल रखते थे लेकिन उनके बेटे ने न परिवार के बुजुर्गों की इज्जत का ध्यान रखा और न ही पार्टी के बड़ों का। एक हद तक सभी ने बर्दाश्त भी किया लेकिन जब सब कुछ बर्दाश्त के बाहर हो गया तो पार्टी और परिवार के इन उपेक्षित बड़े – बुजुर्गों ने चिराग को सबक सिखाना ही उचित समझा , इसी का नतीजा है कि अब संसद में चिराग लोकसभा के सदस्य तो जरूर हैं लेकिन पार्टी नेता के रूप में उनकी कोई हैसियत नहीं है।
बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान उनके बड़बोलेपन ने उनको एनडीए के दो प्रमुख घटक दलों – भाजपा और जदयू दोनों से ही अलग कर दिया था। अब उनको, उनकी ही अपनी पार्टी लोजपा से अलग – थलग करने में इन दोनों दलों के प्रमुख नेताओं ख़ास कर जदयू नेता और बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने जबरदस्त भूमिका निभाई है।
कहा तो यह भी जा रहा है कि लोजपा में बगावत तो राम विलास पासवान के निधन के तुरंत बाद ही हो गई थी, लेकिन लोक लाज की वजह से विभाजन की इस योजना को कुछ समय के लिए रोक कर रखा गया था। सोमवार 14 जून को उपयुक्त मौका देख कर लोकसभा अध्यक्ष को सूचना देने के साथ ही योजना को लागू भी कर दिया गया। पार्टी में बगावत का बिगुल फूंकने वाले चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस का यह कहना है कि उन्होंने पार्टी को बचाने के लिए यह सब किया है क्योंकि पार्टी में असामाजिक तत्वों की भरमार हो गई थी उससे बचने के लिए ऐसा करना जरूरी हो गया था। उनके अनुसार अब चाहें तो चिराग पार्टी में रह सकते हैं अथवा वो अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र हैं .. इस बाबत लोकसभा अध्यक्ष को लिखी गई चिट्ठी में पशुपति कुमार पारस के साथ ही राम विलास पासवान के चचेरे भाई प्रिंस राज ,चन्दन सिंह , वीणा देवी और महबूब केसर अली के नाम भी शामिल हैं। गौरतलब बात है कि पार्टी के 6 में से पांच लोकसभा सांसद तो इस तरह चिराग से अलग हो गए और विधान सभा के चुनाव में महिटानी क्षेत्र से राम कुमार शर्मा नामक पार्टी का जो अकेला विधायक चुन कर आया था उसे भी पार्टी संभाल कर नहीं रख सकी वो पहले ही नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल हो गया था।
इसके बाद तो चिराग के पास कुछ बचता ही नहीं है। बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की अध्यक्षता में लोजपा ने कितना अच्छा प्रदर्शन किया था उसकी मिसाल इसी तथ्य से मिल जाती है कि लोजपा ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे एक सीट जीतने में सफलता मिल पाई थी। एनडीए से अलग लड़ कर लोजपा ने अपना तो नुकसान किया ही था , जदयू उम्मीदवारों को हराने में भी बड़ी मदद की थी इसका नतीजा यह हुआ कि विपक्षी गठबंधन की सीटें तो ज्यादा कम नहीं हुईं पर एक सामान विचारधारा वाले वोटों के विभाजन से भाजपा के मुकाबले जदयू की सीटें काफी कम हो गई थीं।
लोकसभा में लोजपा के नेता पद से हटाये जाने के बाद अब चिराग पासवान को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने की तैयारियां भी शुरू हो गयीं है। इसके लिए पार्टी की उच्च स्तरीय बैठकों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। बैठकों का यह सिलसिला इसी तरह जारी रहा और चिराग पासवान को अध्यक्ष पद से हटाये जाने के सवाल पर सहमति बनी तो यह काम भी जल्दी हो जाएगा। इस सम्बन्ध में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस इस पूरे मामले में अपने भतीजे चिराग से न तो मिलना चाहते हैं और न ही इस बाबत कोई बात उनसे करना चाहते हैं।
यही वजह है कि सोमवार को जिस दिन पशुपति कुमार पारस ने लोकसभा अध्यक्ष को सदन में नेतृत्व परिवर्तन की सूचना का पत्र दिया था उसके अगले ही दिन मंगलवार 15 जून 2021 को चिराग अपने चाचा से मिलने उनके दिल्ली स्थित निवास पर भी गए थे लेकिन न तो पारस ने उनसे मुलाक़ात की और न ही कोई बात की। चिराग खाली हाथ लौट गए। अब दोनों ही पक्ष अपने – अपने स्तर पर कोशिश कर दिल्ली और पटना स्थित पार्टी के बड़े नेताओं से मिल कर अपनी बात रखने और पार्टी की मजबूती के लिए खुद को स्थापित करने की कोशिशों में लग गए हैं। इन्हीं कोशिशों के तहत जहां एक तरफ पशुपति कुमार पारस अध्यक्ष पद पर अपनी ताजपोशी की वकालत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ चिराग अपनी माँ को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की जुगत में लग गए हैं। बताते हैं कि जब चिराग मंगलवार 15 जून 2021 को अपने चाचा से मिलने उनके निवास स्थान गए थे तब वह अपनी माँ रीना पासवान को पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भी अपने साथ लेकर गए थे। मौजूदा परिस्थितियों में पशुपति कुमार पारस के हाव भाव को देख कर ऐसा लगता है कि इस मामले में वो किसी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं हैं उन्हें लगता है कि अगर अभी पार्टी की कमान हाथ में नहीं ली गई तो यह मौका कभी हाथ नहीं आएगा।