सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक में मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण की वापसी से संबंधित विचाराधीन मामले पर किए जा रहे राजनीतिक बयानों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि कुछ पवित्रता बनाए रखने की आवश्यकता है। जस्टिस केएम जोसेफ, बीवी नागरत्ना और अहसानुद्दीन अमानुल्लाज की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी और उन्होंने कहा, “जब मामला अदालत के समक्ष लंबित है और कर्नाटक मुस्लिम कोटा पर अदालत का आदेश है, तो इस मुद्दे पर कोई राजनीतिक बयान नहीं देना चाहिए। यह उचित नहीं है। कुछ पवित्रता बनाए रखने की आवश्यकता है।”
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश दुष्यंत दवे ने कहा, ‘गृह मंत्री ने मुस्लिम आरक्षण खत्म करने का श्रेय लेते हुए सार्वजनिक बयान दिया है। इस पर कर्नाटक सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें ऐसी किसी टिप्पणी की जानकारी नहीं है और अगर कोई कह रहा है कि धर्म के आधार पर कोटा नहीं होना चाहिए तो गलत क्या है और यह एक तथ्य है।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, “अदालत में सॉलिसिटर जनरल का बयान देना कोई समस्या नहीं है, लेकिन अदालत के बाहर किसी उप-न्यायिक मामले पर कुछ भी कहना उचित नहीं है। 1971 में एक राजनीतिक नेता को कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने के लिए अवमानना के लिए घसीटा गया था।।”
न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा, “न्यायाधीन मामले पर किसी को इस तरह का बयान क्यों देना चाहिए? यह उचित नहीं है।”
दवे ने कहा कि ये बयान रोज दिए जा रहे हैं।
मेहता ने कहा कि दवे को अदालत में इस तरह के बयान देने और उसके लिए अदालती कार्यवाही का इस्तेमाल करने से रोकने की जरूरत है। इस पर पीठ ने कहा, “हम इस अदालत को राजनीतिक मंच नहीं बनने देंगे। हम इसके पक्षकार नहीं हैं। हम मामले को स्थगित कर देंगे।”
शुरुआत में, वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के सदस्यों की ओर से पेश हुए मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि उन्हें सुनवाई से कुछ राहत की जरूरत है क्योंकि संविधान पीठ का मामला समलैंगिक विवाह पर चल रहा है जिसमें वे बहस कर रहे हैं।
उन्होंने आश्वासन दिया कि अदालत द्वारा पारित अंतरिम आदेश जारी रहेगा। दवे ने कहा कि अगले आदेश तक ऐसा ही होना चाहिए। इसके बाद पीठ ने निर्देश दिया कि पिछली सुनवाई में पारित अंतरिम आदेश अगले आदेश तक जारी रहेंगे और मामले को जुलाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
मालूम हो कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार ने मुसलमानों के लिए 4% रिजर्वेशन को हटाते हुए राज्य के आरक्षण कोटे में कुछ उल्लेखनीय बदलाव किए हैं, जिन्हें अब 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी में ले जाया जाएगा। नए फेरबदल के साथ मुसलमानों को अब ईडब्ल्यूएस कोटे से मुकाबला करना होगा, जिसमें ब्राह्मण, वैश्य, मुदलियार, जैन और अन्य शामिल हैं। सरकार ने यह भी फैसला किया है कि मुसलमानों का 4% कोटा अब वोक्कालिगा (2%) और लिंगायत (2%) को दिया जाएगा, जिनके लिए पिछले साल बेलगावी विधानसभा सत्र के दौरान 2सी और 2डी की दो नई आरक्षण श्रेणियां बनाई गई थीं।
26 अप्रैल को कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उसने केवल धर्म के आधार पर आरक्षण को जारी नहीं रखने का सचेत निर्णय लिया है क्योंकि यह असंवैधानिक है और इसलिए सरकार ने मुस्लिमों के लिए 4% कोटा के प्रावधान को समाप्त कर दिया है।
राज्य सरकार ने 27 मार्च को अपना जवाब दायर किया, जिसमें अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की 2बी श्रेणी में मुसलमानों के लिए 4% कोटा को खत्म करना और प्रवेश में वोक्कालिगा और लिंगायतों को बढ़े हुए कोटा का लाभ देना और सरकारी नौकरियों में नियुक्तियां शामिल है।
बता दें कि अगली सुनवाई तक सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश जारी रहेगा। 25 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई होगी।