सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड के आठ दोषियों को जमानत दे दी। ये सभी आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। शीर्ष अदालत ने हालांकि चार अन्य लोगों के आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिन्हें हिंसा में उनकी भूमिका के मद्देनजर मौत की सजा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आठ आवेदकों को कारावास की अवधि (17-18 वर्ष) और अपराध में उनकी व्यक्तिगत भूमिका को देखते हुए जमानत दे दी। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने यह आदेश सुनाया।
शुक्रवार को इन दोषियों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस की कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा पाए चार दोषियों को छोड़कर बाकी को जमानत दी जा सकती है। जिन आठ दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी है वो फिलहाल आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। पीठ ने कहा कि जमानत की शर्ते निचली अदालत तय करेगी। दोषियों के वकील संजय हेगड़े ने ईद के मद्देनजर इनको जमानत पर रिहा करने की अपील की थी।
इससे पहले गुजरात सरकार ने 2002 के गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में जमानत की मांग करने वाली याचिकाओं के एक समूह का विरोध किया था और इसे दुर्लभ मामलों में से दुर्लभतम करार दिया था, जहां अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए कोई नरमी नहीं दी जा सकती।
नरोदा गाम मामले में गुरुवार को एक विशेष अदालत ने गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी समेत सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया।
नरोडा गाम पर हमला 28 फरवरी 2002 की सुबह अहमदाबाद में गोधरा ट्रेन जलने की खबर फैलने के बाद शुरू हुआ। कथित तौर पर माया कोडनानी और बाबू बजरंगी के नेतृत्व में हथियारबंद लोगों का एक बड़ा समूह इलाके के बाहर इकट्ठा हुए और फिर अंदर घुस आए। हमलावरों ने कथित तौर पर मुस्लिम घरों और व्यवसायों को निशाना बनाया, उन्हें आग लगा दी और वहां रह रहे लोगों पर पर तलवार, चाकू और बंदूक जैसे हथियारों से हमला किया। उस घटना में महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया और कइयों के साथ बलात्कार किया , जिन्दा जला दिया गया, या काट कर मार डाला गया। पुलिस और सुरक्षा बलों के हस्तक्षेप करने से पहले हिंसा कई घंटों तक जारी रही।
गोधरा ट्रेन जलाने की घटना 27 फरवरी 2002 को हुई थी। इस घटना में अयोध्या से कारसेवकों को ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी। गोधरा की घटना के बाद गुजरात में हिंसक साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे थे।
बता दें कि मार्च 2011 में ट्रायल कोर्ट ने 31 व्यक्तियों को दोषी ठहराया, जिनमें से 11 को मौत की सजा सुनाई गई और शेष 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 2017 में गुजरात उच्च न्यायालय ने 11 की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया और अन्य 20 को दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा।