जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि वह जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निष्प्रभावी करने के केंद्र सरकार निर्णय के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेगा। पक्षकार राधा कुमार ने याचिकाओं को जल्द सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था जिसके बाद CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस नरसिंह की बेंच ने कहा कि हम पहले जांच करेंगे और फिर एक तारीख देंगे।
The Supreme Court on Wednesday said it would consider a plea for early listing of submissions challenging the Centre's decision to abrogate provisions of Article 370 which had given special status to Jammu and Kashmir.
— Press Trust of India (@PTI_News) December 14, 2022
इससे पहले 25 अप्रैल 2022 और 23 सितंबर 2022 को तत्कालीन CJI एन वी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई थी। लेकिन मामले की सुनवाई करने वाली पांच जजों की बेंच में शामिल रहे पूर्व CJI और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी अब रिटायर हो चुके हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं पर सुनवाई के लिए फिर से पांच न्यायाधीशों की बेंच गठित करेगा।
अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं, जो जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करती हैं, को 2019 में जस्टिस रमना की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ को भेजा गया था। मालूम हो कि 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस ले लिया था।
बता दें कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद, पूर्व नौकरशाह और कुछ संगठन ने आर्टिकल 370 को रद्द किए जाने को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है। कई याचिकाओं में जम्मू-कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम को भी चुनौती दी गई है। 28 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के विरोध के बावजूद याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि आर्टिकल 370 के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव थे। केंद्र ने यह भी तर्क दिया था कि यह एक बहुत ही संवेदनशील मामला है और इस पर देश में जो कुछ भी होगा उसे संयुक्त राष्ट्र में उठाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को रेफर कर दिया था।