सत्रहवीं लोकसभा के तीसरे साल का अंतिम और शीतकालीन सत्र महत्वपूर्ण होने जा रहा है। 29 नवम्बर से 23 दिसम्बर 2021 के बीच की अवधि में आयोजित किया जाने वाला संसद का यह सत्र इसलिए महत्वपूर्ण होने जा रहा है। क्योंकि संसद के इसी सत्र में वो तीन बहुचर्चित कृषि क़ानून वापस होने जा रहे हैं। जो इसी संसद से एक साल पहले सितम्बर 2020 में विधेयक के रूप में पारित किये जाने के बाद क़ानून बने थे।
इन कानूनों को इनके क़ानून बनने के काफी पहले से किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा था। काले क़ानून के रूप में चर्चित इन कानूनों का चौतरफा विरोध होने के बाद आखिर कार सरकार को इन्हें वापस लेने का फैसला लेना पड़ा है। विगत 19 नवम्बर को गुरुनानक देव के जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने विशेष संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी।
संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद के माध्यम से क़ानून बनाने के लिए एक विशेष तरह की प्रक्रिया से गुजरना होता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जिस तरह से क़ानून बनाने की प्रक्रिया होती है उसी तरह अतीत में बनाए गए किसी क़ानून को वापस लेने के लिए भी एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करना होता है। कृषि कानूनों की वापसी के सम्बन्ध में इस प्रक्रिया को जानना और समझना भी कम दिलचस्प नहीं होगा। प्रधानमंत्री की घोषणा के मुताबिक़ संसद इसी सत्र की शुरुआत में ही यह प्रक्रिया शुरू होनी है, और विशेषज्ञों की राय के मुताबिक़ एक बार शुरू होने के बाद कृषि कानूनों को वापस करने की यह पूरी प्रक्रिया तीन दिन की अवधि में पूरी भी हो जाएगी। इस हिसाब से अगले महीने यानी दिसंबर महीने की पहली या दूसरी तारीख तक क़ानून वापसी की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। गौरतलब है कि देश का संविधान संसद और विधानमंडलों को कानून बनाने का अधिकार देता है।
संविधान (constitution) के अनुच्छेद 245 में यह व्यवस्था है कि, संसद भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए और किसी राज्य का विधानमंडल संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग के लिए क़ानून बना सकेगा।‘ संविधान प्रदत्त इसी अधिकार का उपयोग कर ही संसद और विधान मंडल देश और राज्यों की जरूरत के हिसाब से कानून बनाती है। अपनी जरूरत के हिसाब के क़ानून बनाने का अधिकार देने के साथ ही हमारा संविधान देश की संसद और राज्य विधान मंडलों को यह अधिकार भी देता है, कि अगर अतीत में बनाया गया कोई क़ानून व्यावहारिक धरातल पर उपयोगी नहीं दिखाई देता है, तो उसे वापस भी किया जा सकता है। संसद से बनाए गए ऐसे किसी क़ानून की वापसी के लिए सबसे पहले सम्बंधित मंत्रालय उस क़ानून की वापसी के सम्बन्ध में एक प्रारूप तैयार कर केन्द्रीय मंत्रिमंडल के पास भेजता है। मंत्रिमंडल की स्वीकृति मिलने के बाद वापसी के उस प्रस्ताव को प्रस्तावित विधेयक के रूप में विधि मंत्रालय के पास भेजा जाता है। विधि मंत्रालय विषय के जानकार लोगों के साथ उस पर विचार विमर्श करने के बाद अगर जरूरी हुआ तो कुछ संशोधन कर सम्बंधित मंत्रालय के पास वापस भिजवा देता है। इस प्रकार वापसी के विधेयक का प्रारूप सबसे पहले संसद के दोनों सदनों में एक विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से बहुमत के आधार पर पारित कराया जाता है और इसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद विधेयक क़ानून का रूप ले लेता है। कृषि कानूनों की वापसी के संबंध में भी यह पूरी प्रक्रिया अपनाने की जरूरत होगी। इसके बाद गजट नोटिफिकेशन होगा और पुराने क़ानून रद्द हो जायेंगे।
हमारे संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक़ किसी भी कानून को वापस करने के दो तरीके हैं। पहला अध्यादेश और दूसरा संसद से बिल पारित कराना। अगर किसी कानून को वापस लेने के लिए अध्यादेश लाया जाता है तो उसे छह महीने के भीतर फिर से संसद से पारित कराना होगा. यदि किसी कारणवश अध्यादेश संसद द्वारा छह महीने के अंदर पारित नहीं होता है तो निरस्त कानून फिर से प्रभावी हो सकता है।
संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किये जाने वाले क़ानून वापसी के इस विधेयक को पारित करने में सरकार को किसी तरह की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा क्योंकि विपक्षी दलों के विरोध करने के चलते ही इन कानूनों को वापस लेने का फैसला सरका को लेना पड़ा था। इस सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि कृषि व्यवसाय से जुड़े इन तीन कानूनों को वापस करने के लिए सरकार को तीन अलग – अलग विधेयक पेश करने की जरूरत नहीं होगी। एक विधेयक में ही तीनों कानूनों की वापसी का जिक्र करके काम खत्म कर सकती है। विशेष परिस्थितियों में सरकार को जो क़ानून वापस लेने पड़ रहे हैं उनमें एक है- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
इसके मुताबिक किसान बिना किसी रुकावट के दूसरे राज्यों समेत मनचाही जगह पर अपनी फसल खरीद -बेच सकते हैं। दूसरा क़ानून है – मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक सशक्तिकरण एवं संरक्षण अनुबंध विधेयक 2020, इसके जरिए देशभर में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है। फसल खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी। तीसरा क़ानून आवश्यक वस्तु से सम्संबंधित है जिसके तहत 1955 में बने आवश्यक वस्तु अधिनियम से अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है।