यूरोप के ब्रिटेन समेत कई देशों के साथ ही अमेरिकी देश ब्राजील और पश्चिम के कई देशों से एक बार फिर कोरोना संक्रमण के समाचार मिलने लगे हैं। इस तरह के समाचार मिलने का मतलब ख़तरे की घंटी का बजना भी है। खतरे की यह वैसी ही घंटी है जो साल 2019 के अंतिम दो महीनों नवम्बर – दिसम्बर के दौरान तब बजनी शुरू हो गई थी जब चीन से इस नई बीमारी के वायरस ने कुछ व्यापारियों , पर्यटकों के माध्यम से अमेरिका और यूरोप के देशों में प्रवेश करना शुरू किया था।
तब हमने इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया और लापरवाही के आलम में रोकथाम के कोई उपाय न कर पाने के कारण बीमार होते गए। लापरवाही भी इस कदर महान कि 2019 का साल तो छोड़िये, उसके अगले साल भी दुनिया का कोई भी देश इस बीमारी को लेकर गंभीर नहीं हुआ और कोरोना के शुरुआती दौर में ही 2020 के फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह के दौराम अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने लाव – लश्कर के साथ भारत की यात्रा पर आ गए।
इस विदेशी मेहमान के आतिथ्य और आदर सत्कार में भला भारत सरकार भी पीछे कैसे रहती , उसने भी दिल खोल कर मेहमान का स्वागत किया और “नमस्ते ट्रंप ” जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर , ” अतिथि देवो भव ” की परंपरा का पालन करने में भी कोई कमी नहीं आने दी। इस भव्य आयोजन के बाद मेहमान तो अपने देश वापस चले गए लेकिन उनके जाने के एक पखवाड़े के बाद ही भारत में भी कोरोना के मामले आने शुरू हो गए थे।
यह सिलसिला एक सप्ताह के बाद ही इतना बिगड़ गया था कि 21 मार्च 2020 से भारत में भी यूरोप और अमेरिकी देशों की तर्ज पर शुरू में रुक – रुक कर तो 25 मार्च से करीब दो महीने के लिए स्थायी तौर पर लॉकडाउन लगाने की जरूरत पड़ गई थी। बहरहाल जून 2020 तक तो इस कोरोना की वजह से देश में स्कूल – कॉलेज से लेकर दफ्तर , कारखाना – बाजार, परिवहन और हर तरह का कारोबार लगभग बंद ही था। दो – तीन महीने की मारा मारी के बाद जब इस महामारी का प्रकोप कुछ कम हुआ था तब सब कुछ नए सिरे से खुलना शुरू भी हो गया था।
तब बहुत कुछ खुला भी लेकिन बहुत कुछ इस आशंका में बंद भी रहा था और आज तक बंद ही है कि न जाने कोरोना का संक्रमण दोबारा कब शुरू हो जाए।
यह आशंका बेवजह भी नहीं थी। बाद के दौर में हमने देखा भी की कोरोना ने फिर पाँव पसारे थे। तब बच्चों को स्कूल भेजने के नाम पर बहुत तकरार भी हुई लेकिन अंततः स्कूल नहीं खोले गए थे। यह एक तरह से अच्छा ही हुआ क्योंकि बाद के दौर में हमने देखा कि 2020 के अगस्त – सितम्बर के महीनों में कोरोना अपने चरम पर पहुँच गया था। इसके अगले साल यानी 20 21 के शुरुआती 2 – 3 महीनों की शांति के बाद इस साल अप्रैल से कोरोना ने भारत में नए सिरे से अपना तांडव दिखाना शुरू कर दिया था।
पिछले एक महीने से थोड़ा राहत मिली और अनलॉक की प्रक्रिया शुरू की भी गई पर अब फिर एक बार कोरोना के नए केसों की आवक ने मामला गहरा दिया है। इसी कड़ी में एक बार फिर स्कूल खोलने की बात भी हो रही है और कोरोना के नए बढ़ते खतरे की भी। कहने का मतलब यह है कि कोरोना का ट्रेंड फिर वैसा ही बनता जा रहा है जैसा ठीक एक साल पहले इन्हीं दिनों मानसून के मौसम के दौरान था। एक बार फिर वही असमंजस पसरा हुआ है कि अभी स्कूलों का खोलना ठीक रहेगा भी या नहीं। एस मामले में किसी तरह की गलतफहमी न पालते हुए जहां कुछ राज्यों और संस्थाओं ने कोरोना से थोड़ी राहत मिलने के इस मौजूदा दौर में सिनेमा हाल और मल्टीप्लेक्स के साथ ही अपने – अपने क्षेत्र के स्कूल और कॉलेज खोलने का फैसला लिया है। इसके ठीक विपरीत ऐसे संस्थानों की भी कमी नहीं है जो अभी स्कूल कॉलेज और मल्टीप्लेक्स खोलने के पक्षधर बिलकुल नहीं हैं।
ऐसा करने की एक बड़ी वजह यही है किजब अमेरिका में जहां दो हफ्ते पहले मास्क पहनने की पाबंदी पूरी तरह से हटा ली गई थी , वहाँ इसे कोरोना के दोबारा शुरू होने पर फिर से लागू करने को मजबूर होना पड़ा है तो फिर भारत जैसे देशों में तो इसका कहर कहीं ज्यादा घातक साबित होगा क्योंकि तीसरी दुनिया के हमारे जैसे देसे देश स्वास्थ्य सुविधाओं और प्रबंध के मामले में दुनिया के विकसित देशों की तुलना में आज बहुत पिछड़े हुए हैं। कोरोना की दूसरे लहर के दौर में इसका आतंक भारत जैसा देश झेल ही चुका है।
अमेरिका , रूस और ब्राजील से कोरोना के बारे में मिल रही ताजा जानकारी के मुताबिक इन देशों में हालात फिर से बदल रहे हैं और इन देशों के हालात का कुछ असर भारत के केरल , महाराष्ट्र , तमिलनाडु और ओडिशा जैसे राज्यों में देखने को भी मिलने लगा है। इसलिए सावधानी जरूरी है . इस सम्बन्ध में एक जानकारी यह भी मिली है कि इन देशों में कोरोना वायरस के जिस नए संस्करण का संक्रमण हो रहा है वो पुरुषों और महिलाओं में अलग तरह के लक्षण दिखाने के साथ ही उम्र के हिसाब से भी लोगों को अलग – अलग तरीके से और तरह से संक्रमित कर रहा है।
जानकारी के मुताबिक़ महिलाओं और पुरुषों में इसके अलग – अलग लक्षण हो सकते हैं और बच्चों – बूढ़ों और जवानों में भी इसके अलग – अलग देखे जा सकते हैं , जबकि इससे पहले कोरोना की पहली और दूसरी लहर में आम तौर पर कोरोना के हर मरीज में एक ही तरह के लक्षण पाए जाते रहे हैं चाहे वो पुरुष हों या महिला बच्चे – जवान और बुजुर्ग।
उम्र और लिंग के हिसाब से कोरोना के हर मरीज पर संक्रमण का असर कम या ज्यादा तो दिखाई देता था लेकिन लक्षण सभी में एक जैसे ही हुआ करते थे। इस बार के इस बदलाव के साथ ही वायरस के स्वरूप में एक बदलाव इस रूप में भी देखने को मिला है कि इस बार संक्रमण की गति तेज होने के साथ ही एक समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों को संक्रमित करने की शक्ति भी इस वायरस में है। द लैंसेट डिजिटल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक़ कोरोना के सबसे आम लक्षणों में लगातार लगातार खांसी और गंध की कमी के साथ पेट में दर्द और पैरों में छाले शामिल हैं। इस अध्ययन के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि, 60 साल के लोगों में गंध की कमी महत्वपूर्ण नहीं थी और 80 साल और इससे ऊपर की उम्र के मरीजों में यह लक्षण था ही नहीं। इन हालात में कोरोना की तीसरी लहर का यह संभावित आगाज भविष्य में खतरनाक भी साबित हो सकता है। इससे बचने का एक तरीका तो यह भी है कि जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण हो जाए और एहतियात के तमाम इंतजाम करने के साथ ही हम अपने स्तर पर भी इससे बचने के हर संभव प्रयास करें।