पल -पल रूप बदल रही पंजाब कांग्रेस की मौजूदा राजनीति किस पल कैसा और कौन सा रूप धारण कर ले, कुछ नहीं कहा जा सकता गुरूवार 15 जुलाई 2021 को दोपहर बाद और शाम होने से कुछ पहले पंजाब कांग्रेस में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और भाजपा से कांग्रेस में आए पूर्व सांसद और कैप्टन सरकार में ही मंत्री रह चुके पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सम्मानजनक समझौता होने की खबर सार्वजनिक हुई थी।
इस खबर पर भरोसा न करने का कोई कारण भी नहीं था क्योंकि मीडिया को यह खबर किसी दूसरे ने नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव और पंजाब मामलों को सुलझाने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में बनी तीन सदस्यीय समिति के वरिष्ठ सदस्य और उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ही मीडिया को दी थी।
इस खबर के मुताबिक़ कांग्रेस आला कमान ने कैप्टेन अमरेन्द्र सिंह और नवजोत सिंह के बीच कई साल से चल रही आंतरिक कलह को सुलझाने का एक ऐसा फ़ॉर्मूला खोज निकाला है जिसके तहत अमरेन्द्र और सिद्धू दोनों मिल कर पार्टी के हित में काम करेंगे और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करेंगे। फ़ॉर्मूले के तहत अमरेन्द्र मुख्यमंत्री बने रहेंगे, वही आगामी चुनाव में भी पार्टी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे।
उधर नवजोत सिद्धू को प्रदेश पार्टी की अध्यक्षता करने की जिम्मेदारी सौंपी जायेगी। सिद्धू की सहायता के लिए राज्य में दो कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किये जाएँगे। इनमें एक राज्य के सवर्ण हिन्दू समुदाय का प्रतिनिधित्व करेगा और दूसरा दलित समुदाय का। हरीश रावत के हवाले से यह भी संवाददाताओं को यह भी बताया गया कि इस सुलहनामे से अमरेन्द्र और सिद्धू दोनों ही सहमत भी हैं। हरीश रावत के हवाले से कही गई यह बात कुछ ही घंटे के बाद कुछ इस तरह नए रूप में सामने आ गई कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पार्टी आला कमान से सिद्धू को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने संबंधी ऐसे किसी फैसले से सहमत नहीं हैं और अगर ऐसा है तो वो एक बागी कांग्रेसी के रूप में चुनाव का सामना करेंगे और राज्य विधानसभा की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे।
हरीश रावत के बहाने से कही गई इस बात का सच ये है कि सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की बात सच भी है और नहीं भी। यानी यह भी एक आधा सच ही है। आधा सच इसलिए क्योंकि कांग्रेस आला कमान सिद्धू के सेलेब्रिटी स्तर को देखते हुए उनको पार्टी या सरकार में महत्वपूर्ण जगह तो देना चाहता है चाहे वो सरकार में अमरेन्द्र के उप मुख्यमंत्री के रूप में हो या फिर पार्टी के अध्यक्ष के रूप में लेकिन अमरेन्द्र किसी भी रूप में उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। अमरेन्द्र उन्हें अपनी सरकार में मंत्री तो बना सकते हैं लेकिन उपमुख्यमंत्री बना कर अपने समकक्ष नहीं बना सकते। अमरेन्द्र के लिए सिद्धू के नेतृत्व में चुनाव लड़ना भी संभव नहीं है। पंजाब कांग्रेस के ये ये कुछ ऐसा कडवे सच हैं जो सभी को मालूम हैं लेकिन पार्टी के आलाकमान से लेकर नीचे तक के तमाम नेता और आम जनता तक यह सब कुछ कैप्टेन की प्रतिक्रिया के माध्यम से जानना चाहती है।
इसलिए बहुत संभव है कि जब पार्टी में शीर्ष स्तर पर इस मामले में विचार विमर्श हो रहा हो कि अगर सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का कोई अधिकृत फैसला लेने से पहले यह भी जान लिया जाए कि उस पर कैप्टन किस तरह रिएक्ट करते हैं। अगर कैप्टेन राजी हो जाते हैं तो बहुत अच्छा है और अगर नहीं होते हैं तो फिर किसी अन्य विकल्प पर विचार करने का समय भी मिल सकता है। संभव है इसी सोच के तहत और पार्टी आला कमान के संकेतों को समझ कर कर ही हरीश रावत ने मीडिया के साथ अपनी रोजमर्रा की बातचीत में सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की बात कही हो, क्योंकि तब तक इस आशय का कोई फैसला अधिकृत रूप से लिया नहीं गया था इसलिए जब अमरेन्द्र ने इसके खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर दी तो पार्टी को संकेत समझने के साथ ही वैकल्पिक उपाय सोचने का एक मौका भी मिल गया।
शायद इसीलिए जब अमरेन्द्र की प्रतिक्रिया सार्वजनिक होने पर हरीश रावत से फिर इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने यह कहा था कि उन्होंने मीडिया से ऐसा कुछ तो नहीं कहा था कि नवजोत सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने का पार्टी ने फैसला ले लिया है। पर इसके साथ ही उन्होंने यह भी नहीं कहा कि मीडिया ने उनकी बात को तोड़ – मरोड़ कर पेश किया है . मतलब यह कि मीडिया ने इस बाबत जो भी अखबारों में लिखा, टीवी पर दिखाया और रेडियो पर सुनाया वो पूरी तरह गलत नहीं है बल्कि आधा सच और आधा गलत है।
अमरेन्द्र बनाम नवजोत सिद्धू मामले में एक बात समझने की ख़ास तौर पर जरूरत है और वो यह कि दोनों ही पटियाला के हैं और एक जैसे जिद्दी भी। अमरेन्द्र और नवजोत की उम्र में 21 साल का फर्क है । अमरेंद् की पैदाइश 1942 की है यानी देश की आजादी से पांच साल पहले की, जबकि सिद्धू का जन्म 20 अक्टूबर 1963 को हुआ था। अमरेन्द्र पटियाला रियासत खानदान में पैदा हुए हैं और उनकी राजसी ठाट – बाट और धमक उनको विरासत में मिली है।
सिद्धू धुन के पक्के हैं 1983 में जब उनको भारतीय क्रिकेट टीम से ड्राप किया गया था तो उन्होंने चार साल बाद उसी टीम में अपनी कड़ी मेहनत और लगन की बदौलत जबरदस्त वापसी भी की थी। कहना गलत नहीं होगा कि सिद्धू और अमरेन्द्र दोनों ही सही मामलों में पटियाला पेग ही हैं। अमरेन्द्र ने भी 2017 के विधानसभा चुनाव में अपने दम पर कांग्रेस की सत्ता में जबरदस्त वापसी करवाई थी। अमरेन्द्र पटियाला रियासत के वारिस हैं तो सिद्धू अपनी अलग तरह की विरासत के मालिक हैं। दोनों ही पटियाला के हैं।
सिद्धू ने भी इसी पटियाला की नामी पंजाब यूनिवर्सिटी से विधि स्नातक की पढ़ाई पूरी की और वो पटियाला के माल रोड स्थित यादवेन्द्र कॉलोनी के स्थायी निवासी हैं। पटियाला का शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा नाम है। 1870 में मोहिंदर कॉलेज के नाम से देश का पहला डिग्री कॉलेज भी पंजाब के इस सबसे बड़े और पांचवें जिले पटियाला में ही स्थापित हुआ था। पटियाला जिले की सीमाएं पूर्व में अम्बाला और कुरुक्षेत्र , पश्चिम में संगरूर ,उत्तर में फतेहपुर रूप नगर और चंडीगढ़ और दक्षिण में जिले से मिलती हैं। पटियाला सांस्कृतिक रूप से भी पंजाब के अन्य जिलों से एकदम अलग है। पटियाला के मुबारक किले को सुन्दरता की खान कहा जाता है। इसके अलावा यहाँ के रंग महल और शीश महल ,दरबार महल ,पंज बली गुरुद्वारा , काली मंदिर , गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब, रण बॉस ,गुरुद्वारा किला बहादुर , इजलास -ए – ख़ास स्टे , बारादरी उद्यान ,राजेंद्र कोठी और लक्ष्मण झूला यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थल हैं। इन हालात में सिद्धू और अमरेन्द्र दोनों में कोई भी किसी से कम नहीं है कांग्रेस पार्टी दोनों को साथ लेकर चलने में कितनी कामयाब होती है यही देखने की बात है।