तक्षकपोस्ट एक्सक्लूसिव: 22 मार्च 2021 के ठीक 10 दिन बाद घटी इस घटना में क्यों चूक हुई। लापरवाही क्या नजरअंदाज किया गया। 2014 से अब तक कितनी जानें गई है, नक्सली हमलों में और ख़ासकर मार्च -अप्रैल में ही क्यों नक्सली हमला करते है, ऐसी वारदातों के लिये। नक्सलियों के लिए कौन कर रहा है ! मुखबीरी!लंबे समय से !क्यों जवानों की जान जा रही है , चुनाव के ठीक पहले ऐसी घटना क्यों हो रही है! बड़ा सवाल है
शनिवार को छत्तीसगढ़ में बस्तर की धरती भारतीय सुरक्षा बल के जवानों के खून से लाल हो गई, सर्च के लिए निकली सुरक्षा बल की टुकड़ी को नक्सलियों ने घेर कर हमला किया जिसके फलस्वरूप 24 जवानों की मौत असमय हो गई है। ये घटना शनिवार के दोपहर लगभग 12 बजे घटी। घटना जोनागुड़ा गांव के पास पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) जो नक्सलियों का दस्ता है , तर्रेम के सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ के रूप में हुई ये मुठभेड़ 3 घंटे से ज्यादा चली जिसमें कोबरा बटालियन, डीआरजी के जवानों की शहादत के रूप में सामने आई। जवानों को भारी जान माल का नुकसान पहुंचा है पर सवाल ये है कि इतनी बड़ी घटना की जानकारी लोकल खुफ़िया विभाग और अधिकारियों को क्यों नहीं हुई। सुकमा में नक्सली हमले में 25 जवानों की मौत ने देश को फिर झकझोर दिया है। यह सभी जवान सीआरपीएफ 74 बटालियन के थे. छत्तीसगढ़, बिहार, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्य नक्सली हिंसा की चपेट में हैं। नक्सली लगातार देश के लिए चुनौती बने हुए हैं. नक्सलियों का सबसे बड़ा निशाना सुकमा और दंतेवाड़ा रहे हैं।
गौर करने की बात ये भी है कि पिछले महीने मार्च में 23 तारीख को भी एक पुलिस बल पर हमला हुआ था, नारायणपुर जिले में बम से हमला किया गया था, इस घटना के 10 दिन बाद फिर से इतनी बड़ी घटना का हो जाना महज एक इतेफाक नहीं बल्कि बहुत बड़ी चूक और इंटेलिजेंस का ठीक से काम नहीं करना है। गृहमंत्रालय को इस घटना की तुरंत उच्चस्तरीय जांच के साथ घटना में चूक की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। क्योंकि लगातार अमित शाह के नेतृत्व में गृहमंत्रालय के अधीन आनी वाली एजेंसियों के द्वारा ऐसी घटना की सूचना ना होना और घटना घट जाना एक बड़ा सवाल है।
जिसकी झलक देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी को पूरे विश्व ने देखा। इस घटना के 20 दिन पहले सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से बड़ी संख्या में बस्तर में नक्सलियों के होने की बात कही गई थी फिर भी चूक कैसे हुई ??
क्या कारण रहे जहाँ चूक हुई-
1.क्या कारण है नक्सलियों के द्वारा हर साल मार्च और अप्रैल में ही बड़े हमलें किये जाते है, अब तक के सारे घटना को आप देखेंगे तो पाएंगे नक्सलियों के द्वारा इन दो महीनों में घटना को अंजाम दिये जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण है, गर्मी।
गर्मी में जवानों को इसलिए करते हैं टारगेट क्योंकि विजिबिलिटी ज्यादा होती है, सर्च अभियान में गर्मी में जवान ज्यादा से ज्यादा 8-10 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय नहीं कर पाते और थक कर कही रुकने पर, बस्तर में गर्मी ज्यादा होती है ऐसे में आसानी से नक्सलियों की घात का शिकार बन जाते है। क्योंकि उन्हें संभलने का मौका नहीं मिल पाता जवानों के मुकाबले नक्सली जंगल से ज्यादा वाकिफ है।
2.महिलाएं और बच्चे कर रहे संतरी का काम इस घटना में भी नक्सली गांव में छुपकर हमला कर रहे थे!
सुरक्षा बलों के द्वारा आज भी लोकल स्तर पर ग्रामीणों से मिलना जुलना और ना घुलना, का इस्तेमाल नक्सली अपने लिए फायदे तरह कर रहे है , नक्सलियों ने अपने मूवमेंट में महिलाओं के साथ ही बच्चों का भी इस्तेमाल शुरू कर दिया हैं। जवानों के कैंप से कुछ दूरी पर महिलाएं और बच्चे रेकी करते हैं। और नक्सलियों को इसकी सूचना देते है।
3.नई मशीनों और टेक्नोलॉजी को ठीक तरह से इस्तेमाल में ना लेना,जब जानकारी मिली थी कि 200 ज़्यादा नक्सली इलाके में मौजूद है तो फिर प्लानिंग में कैसे गलती हुई। नक्सलियों की मौजूदगी की पुष्टि बस्तर के इस नक्सली हमले से पहले (UAV) या ड्रोन से मिली फोटो और वीडियो के आधार पर पहले ही मिल गई थी।
4.अप्रैल 2017 समेत दूसरी सभी घटनाओं में नक्सलियों ने दोपहर का ही समय चुना था। कांकेर स्थित जंगल वार फेयर के प्रमुख कहते हैं कि सीमा पर लड़ाई आसान है, पर जंगल में नहीं। यहां पता नहीं दुश्मन कब कहा से वार कर दे, इसलिए केवल गुरिल्ला ट्रेनिंग से काम नहीं चल सकता, ये अधिकारियों को समझना होगा।
अब थोड़ा पीछे की घटना पर भी नजर डालना जरूरी है, देखिये कैसे 2016 में जब देश को प्रधानमंत्री जी ने घोषणा की नोटबंदी का मकसद आतंकवाद की कमर तोड़ना है , आतंकवाद की कमर तो नहीं टूटी उल्टा पहल से और ज्यादा और बर्बर हमला देश की सुरक्षा में लगे जवानों पर हुआ आज की घटना में भी ये देखना जरूरी है कि 24 जवान असमय मौत की नींद सो गये है , क्यों कहीं ना कही सरकार नीतियों में भी बदलाव की जरूरत है लंबे समय तक प्रदेश में रमन सिंह ने राज किया है , पर हालात आज भी पहले जैसे है इसपर भी वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को गौर जरूर करना चाहिए। केंद्र और प्रदेश को कम से कम अपनी और से लंबे समय से नासूर बने इस नक्सल के कोढ़ को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ में 2014 -2021 से अबतक हुए बर्बर नक्सली घटनाओं पर एक नजर
11 मार्च 2014 को झीरम घाटी हमले के करीब एक साल बाद नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के सुकमा एक और हमला किया। इसमें CRPF के 15 जवान शहीद हो गए थे। इस हमले में एक ग्रामीण की भी मौत हो गई थी।
12 अप्रैल 2014 को लोकसभा चुनाव के दौरान बीजापुर और दरभा घाटी में नक्सलियों ने हमला किया था। इस हमले में 5 जवान शहीद और 14 लोगों की मौत हो गई थी। मरने वालों में 7 मतदानकर्मी भी शामिल थे। यह पहली बार हुआ था जब नक्सलियों ने किसी एंबुलेंस को अपना निशाना बनाया था। इस एंबुलेंस में CRPF के पांच जवानों समेत एंबुलेंस चालक और कंपाउंडर की भी मौत हो गई थी।
1 दिसंबर 2014 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में हुए हमले में सीआरपीएफ के 14 जवानों की जान चली गई थी। इस हमले में 12 लोग घायल भी हुए थे।
अप्रैल 2015 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में नक्सलियों के बिछाए बारूदी सुरंग के फटने से सुरक्षा बल के 4 जवान शहीद हो गए जबकि 8 घायल हो गए थे।
1 मार्च 2017 नक्सलियों के हमले में अर्धसैनिक बल के 11 कमांडो शहीद हुए थे, 3 पुलिसकर्मी घायल हुए थे।
11 मार्च 2017 मार्च को नक्सलियों ने सीआरपीएफ की 219वीं बटालियन को निशाना बनाया था जिसमें 11 जवान शहीद हो गए थे।
13 मार्च 2018 को नक्सलियों ने आईईडी विस्फोट कर एंटी लैंड माइन व्हीकल को उड़ा दिया था। इसमें 9 जवान शहीद और 3 गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
मार्च 2017 में बस्तर में हुए नक्सली हमले में CRPF की 219वीं बटालियन के जवान शहीद हो गए थे।
22 मार्च 2017 को दंतेवाड़ा जिले में सुरक्षा बलों के साथ गोलीबारी में नक्सली मारे गए थे।
24 अप्रैल 2017 को सुकमा जिले में (CRPF) के अधिकारी सड़क निर्माण करने वालों की रखवाली कर रहे थे। इस दौरान नक्सलियों ने अफसरों पर अटैक कर दिया। इस हमले में (CRPF) के 25 जवान शहीद हो गए और 7 घायल हुए थे। ये उस साल का सबसे बड़ा हमला था।
27 अप्रैल 2018 को सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में 7 नक्सली मारे गए।
27 अक्टूबर 2018 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों ने IED ब्लास्ट कर CRPF के वाहन को उड़ा दिया था। इस हमले में CRPF की 168 बटालियन के चार जवान शहीद और दो जवान जख्मी हो गए थे।
30 अक्टूबर 2018 को दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमेल में दूरदर्शन के कैमरामैन की मौत हुई और 2 जवान शहीद हुए थे।
2019 अप्रैल को नक्सलियों भाजपा विधायक भीमा मंडावी को निशाना बनाया। इस हमले में उनकी जान चली गई। ये घटना चुनाव के मात्र 36 घंटे पहले घटित हुई थी।
4 अगस्त 2019 को मुठभेड़ में 7 नक्सली मारे गए। इसमें 5 महिलाएं और 2 पुरुष शामिल थे।
22 मार्च 2020 को सुकमा में कोराजडोंगरी के चिंतागुफा के पास नक्सली हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे। शहीद होने वाले जवानों में डीआरजी के 12 जवान और एसटीएफ 5 जवान थे।
28 नवंबर 2020 सुकमा में IED ब्लास्ट की चपेट में असिस्टेंट कमांडेंट नितिन भालेराव शहीद हो गए। इस घटना में कोबरा बटालियन के 9 जवान घायल हुए थे।
23 मार्च 2021 छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में नक्सलियों ने जवानों से भरे बस को अपना निशाना बनाया। नक्सलियों के इस ब्लास्ट में 5 जवान शहीद हो गए ।
प्रदेश के 18 जिलों जहाँ पर नक्सल गतिविधियां सक्रिय हैं।
दंतेवाड़ा, कांकेर, बस्तर, बीजापुर, नारायणपुर में नक्सल एक्टीविटी.राजनांदगांव,सरगुजा, जशपुर, कोरिया और धमतरी नक्सल प्रभावित.महासमुंद, बालोद, कबीरधाम, रायगढ़ और बलौदाबाजार नक्सल प्रभावित। गरियाबंद, सूरजपुर और बलरामपुर में नक्सली गतिविधियां ज्यादा हैं।
जबकि केंद्र की सूची में 14 जिले नक्सल प्रभावित हैं।
बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जशपुर, और कांकेर नक्सल प्रभावित.कोरिया, नारायणपुर, राजनांदगांव, धमतरी और गरियाबंद नक्सल प्रभावित.बालोद, सुकमा, कोंडागांव और बलरामपुर नक्सल प्रभावित हैं।