संसद में पारित होने के पांच साल बाद केंद्र ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू कर दिया है। यह अधिसूचना भारत निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले आई है। इसका सीधा लाभ भारत के पड़ोसी मुल्कों से आने वाले अल्पसंख्यकों को होगा। इसके तहत अब तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी। इसके लिए उन्हें केंद्र सरकार द्वारा तैयार किए गए ऑनलाइन पोर्टल पर आवेदन करना होगा।
साल 2019 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया था। इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले आने वाले छह अल्पसंख्यकों (हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी) को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया था। नियमों के मुताबिक, नागरिकता देने का अधिकार केंद्र सरकार के हाथों में है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता (संशोधन) नियम 2024 की अधिसूचना की सराहना की और कहा कि इसके कार्यान्वयन से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
गृह मंत्री ने एक पोस्ट में कहा, “मोदी सरकार ने आज नागरिकता (संशोधन) रूल, 2024 को अधिसूचित कर दिया है। ये नियम अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को हमारे देश में नागरिकता प्राप्त करने में सक्षम बनाएंगे। इस अधिसूचना के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी एक और प्रतिबद्धता पूरी की है। उन देशों में रहने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों के लिए हमारे संविधान निर्माताओं के वादा किया था जो हमने साकार किया है।”
https://x.com/AmitShah/status/1767192979197104180?s=20
पिछले महीने अमित शाह ने कहा था कि इस संबंध में नियम जारी कर इस साल लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू किया जाएगा।
जानकारी के मुताबिक CAA लागू होने के बाद एंपावर्ड कमेटी बनाई जाएगी जो हर जिले में काम करेगी और कमेटी ही तय करेगी कि आवेदन करने वाले को नागरिकता देनी है या नहीं। बताया जा रहा है कि सीएए लागू होने के बाद अब एंपावर्ड कमेटी हर जिले में काम करेगी। इसमें कुछ विशेषज्ञ सदस्य होंगे और इन सदस्यों के सामने नागरिकता लेने के लिए आवेदन करने वाले को खुद उपस्थित होना पड़ेगा। सरकार द्वारा जारी किए गए फॉर्म को ऑनलाइन ही भरने का प्रावधान किया गया है।
वहीं, प्रदेश स्तर पर डायरेक्ट सेंसस इस प्रक्रिया की अगुवाई करेगा। इस कमेटी में इंटेलिजेंस ब्यूरो के डिप्टी सेक्रेटरी स्टार के अधिकारी भी होंगे। एफआरआरओ के अधिकारी होंगे, स्टेट इंफॉर्मेशन ऑफीसर, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश का पोस्टमास्टर जनरल होगा।
इसी तरह जिले स्तर पर एंपावर्ड कमेटी का गठन होगा जो अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को देगी। जिला स्तर पर आवेदकों का वेरिफिकेशन किया जाएगा और जिन्हें भारतीयता के निष्ठा के प्रति एक विशिष्ट फॉर्म भरना होगा। जिला स्तर पर जो एंपावर्ड कमेटी बनेगी वो सुनिश्चित करेगी कि आवेदक को भारतीय नागरिकता दी जाए या नहीं। सबसे महत्वपूर्ण बात इस नोटिफिकेशन में यह है कि जिला स्तर पर ही इस एंपावर्ड कमेटी को अधिकार होगा कि आवेदकों को भारतीय नागरिकता दी जाए या नहीं।
कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने सरकार की अधिसूचना के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह “चुनावों का ध्रुवीकरण” करने के लिए किया गया है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि सरकार को सीएए की अधिसूचना 6 महीने पहले जारी करनी चाहिए थी। बनर्जी ने कहा-आपको इन नियमों की अधिसूचना 6 महीने पहले लागू करनी चाहिए थी। अगर इसमें कोई बेहतर बात है तो हम समर्थन करेंगे लेकिन अगर कुछ गलत है तो ये देश के लिए बेहतर नहीं है। तृणमूल हमेशा अपनी आवाज उठाती रहेगी और इसका विरोध करेगी। मैं जानती हूं कि क्यों इसके लिए रमज़ान से ठीक एक दिन पहले का समय चुना गया। मैं लोगों से अपील करती हूं कि वो शांति बनाए रखें और किसी भी अफवाह पर ध्यान न दें।
यूपी के पूर्व सीएम और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सीएए को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने पोस्ट कर कहा, “जब देश के नागरिक रोज़ी-रोटी के लिए बाहर जाने पर मजबूर हैं तो दूसरों के लिए ‘नागरिकता क़ानून’ लाने से क्या होगा? जनता अब भटकावे की राजनीति का भाजपाई खेल समझ चुकी है। भाजपा सरकार ये बताए कि उनके 10 सालों के राज में लाखों नागरिक देश की नागरिकता छोड़ कर क्यों चले गये। चाहे कुछ हो जाए कल ‘इलेक्टोरल बांड’ का हिसाब तो देना ही पड़ेगा और फिर ‘केयर फ़ंड’ का भी।”
कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने कहा, “इतनी देरी क्यों? अगर सरकार में इस मुद्दे पर थोड़ी सी भी गंभीरता होती तो वे चार साल पहले ही यह आदेश दे सकते थे। ये घोषणा चुनाव से पहले ध्यान भटकाने के लिए की गई है।”
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी केंद्र पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा, “दिसंबर 2019 में संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों को अधिसूचित करने में मोदी सरकार को चार साल और तीन महीने लग गए। प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उनकी सरकार बिल्कुल प्रोफेशनल ढंग से और समयबद्ध तरीक़े से काम करती है। सीएए के नियमों को अधिसूचित करने में लिया गया इतना समय प्रधानमंत्री के सफ़ेद झूठ की एक और झलक है। नियमों की अधिसूचना के लिए नौ बार एक्सटेंशन मांगने के बाद घोषणा करने के लिए जानबूझकर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले का समय चुना गया है। ऐसा स्पष्ट रूप से चुनाव को ध्रुवीकृत करने के लिए किया गया है, विशेष रूप से असम और बंगाल में। यह इलेक्टोरल बांड घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार और सख़्ती के बाद हेडलाइन को मैनेज करने का प्रयास भी प्रतीत होता है।”
AIMIM के नेता और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “आप क्रोनोलॉजी समझिए पहले चुनाव का मौसम आएगा, फिर सीएए के नियम आएंगे। सीएए पर हमारी आपत्तियां पहले की तरह ही हैं। सीएए विभाजनकारी है और गोडसे की सोच पर आधारित है जो मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना चाहता थे। सताए गए किसी भी व्यक्ति को शरण दें, लेकिन नागरिकता धर्म या राष्ट्रीयता पर आधारित नहीं होनी चाहिए। सरकार को बताना चाहिए कि उसने इन नियमों को पांच साल तक क्यों लंबित रखा और अब इसे क्यों लागू कर रही है? एनपीआर-एनआरसी के साथ, सीएए का उद्देश्य केवल मुसलमानों को लक्षित करना है. इसका कोई और उद्देश्य नहीं है।”
तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए सोशल मीडिया पर कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार के विभाजनकारी एजेंडे ने नागरिकता अधिनियम को हथियार बना दिया है। इसे सीएए के अधिनियम के माध्यम से मानवता के प्रतीक से धर्म और नस्ल के आधार पर भेदभाव का एक उपकरण बना दिया है। मुसलमानों और श्रीलंकाई तमिलों को धोखा देकर उन्होंने विभाजन के बीज बोए। डीएमके जैसी लोकतांत्रिक ताकतों के कड़े विरोध के बावजूद, सीएए को भाजपा की पिट्ठू एडीएमके के समर्थन से पारित किया गया। लोगों की प्रतिक्रिया के डर से भाजपा ने इस पर चर्चा बंद कर दी थी।
दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने कहा, “लोकसभा चुनाव होने से मात्र कुछ दिन पहले CAA को कानून के तौर पर लाया जा रहा है। ये दिखाता है कि मोदी सरकार को पता है कि उन्होंने 10 सालों में कोई काम नहीं किया। हम CAA के कानून का पुरजोर विरोध करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों को भारत लाकर उन्हें नागरिकता देने के बजाय हमारे देश के युवाओं को नौकरी दें, हमारे देश के आम परिवारों को महंगाई से निजात दिलवाएं।”
JMM सांसद महुआ मांझी ने कहा, “चुनाव से पहले कोई ऐसा धार्मिक मुद्दा लाकर जनता को गुमराह करना, शुरू से ही भाजपा की आदत रही है। तमाम मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए इसे लाया गया है और इससे कुछ नहीं होने वाला। कुछ लोगों को परेशान करने की कोशिश जरूर होगी।”
साउथ के एक्टर विजय ने भी सीएए का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि CAA सामाजिक सद्भाव के खिलाफ है और ये स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने राज्य से इसे लागू नहीं करने का आग्रह किया है।
इस बीच सरकार की अधिसूचना के बाद, दिल्ली पुलिस ने शाहीन बाग इलाके में और उसके आसपास सुरक्षा बढ़ा दी है, जो पिछली बार सीएए विरोधी प्रदर्शन का केंद्र था। इसके अलावा, केंद्र की घोषणा के बाद गौतम बौद्ध नगर पुलिस ने भी नोएडा में फ्लैग मार्च किया। संयुक्त आयुक्त शिवहरि मीना ने बताया, “सीएम के निर्देशानुसार हम आबादी वाले और संवेदनशील इलाकों में पैदल गश्त कर रहे हैं। इसके जरिए हम लोगों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि हम उनके साथ हैं।”
मालूम हो कि 11 दिसंबर 2019 को संसद द्वारा अधिनियमित सीएए, पूरे भारत में गहन बहस और व्यापक विरोध का विषय रहा है। CAA अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई समुदायों से आने वाले प्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता के लिए फास्ट-ट्रैक मार्ग प्रदान करने के लिए 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करता है और जो भारत में 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले प्रवेश कर चुके हैं।
दिल्ली के शाहीन बाग में धरना और असम के गुवाहाटी में CAA के विरोध में धरना प्रदर्शन हुए थे। कोविड-प्रतिबंधों और लॉकडाउन के दौरान सभी विरोध प्रदर्शन विफल हो गए।