हमारे प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता नरेंद्र मोदी की सरकार आर्थिक विकास में भारत को दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था मानती है। सरकार की तरफ से जारी अर्धवार्षिक आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में 2023-24 के वित्त वर्ष में ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि दर आसानी से 6.5 फीसद ज्यादा होने का भरोसा जताया गया है। यह रिपोर्ट वित्त मंत्री निर्मल सीथारमन (वह सीथारमन ही लिखती है) की सहमति से उनके मंत्रालय ने 29 दिसंबर 2023 को जारी की। इसके मुताबिक भारत का जीडीपी का आंकड़ा, वैश्विक विकास और स्थिरता के के जोखिमों के बावजूद 6.5 प्रतिशत के पिछले बरस के बजट और आर्थिक सर्वेक्षण के अनुमान को पार कर जाएगा। वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में उम्मीद से बेहतर वृद्धि और पहली छमाही में तेजी से भारत में विकास तीसरी तिमाही में भी बेहतर होगा। इसमें लिखा है कि ग्रामीण मांग भी बढ़ रही है जो दोपहिया और तिपहिया वाहनों की बिक्री में वृद्धि से साफ है। मुद्रास्फीति की दर में गिरावट और अनाजों की कीमतों में व्यवधानों के बावजूद मुद्रास्फीति दर नियंत्रण में है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने मौजूदा वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति औसतन 5.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।
अमेरिकी डॉलर और अन्य प्रमुख विदेशी मुद्राओं के मुकाबले भारतीय रुपया का मूल्य और पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार आशा के कारण है। संसद में पिछले बरस पेश किये भारत के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के आर्थिक विकास का मुख्य आधार निजी खपत और पूंजी निर्माण है जिसने रोजगार सृजन बढ़ाया है। लेकिन उफ ये लेकिन , जमीनी हकीकत कुछ और है। देश में महंगाई , बेरोजगारी और अधिसंख्य लोगों की मुश्किलें बढ़ गई है। उनको दो जून का भोजब भी आसानी से नहीं मिल पाता है। भारत भूगोल के हिसाब से दुनिया का 7वां सबसे बड़ा और आबादी की नजर से अब चीन से भी ज्यादा करीब सवा अरब लोगों का देश है।
रोजगार : मोदी जी का वादा और ख़याली समोसा-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए प्रचार में देश में बेरोजगारी दूर करने का जो वादा किया था उसके हिसाब-किताब का सही मूल्यांकन करने का वक़्त आ गया है। क्योंकि अगले वर्ष के मध्य में नई लोकसभा के चुनाव निर्धारित है। सत्तारूढ़ हल्कों में चर्चा है कि चुनाव पहले ही, कराये जा सकते हैं। केंद्र सरकार अपना हिसाब-किताब औपचारिक रूप से संसद में वार्षिक बजट में पेश करती है। वर्ष 2023 -24 का बजट परंपरागत रूप से एक फरवरी 2024 को पेश किया जाना है जिसके तत्काल प्रभाव से लागू कुछेक मदों को छोड़ शेष को लम्बी बहस के उपरान्त पारित कराने की संसदीय अनिवार्यता है। बजट पारित होने में कोई संदेह नहीं क्योंकि भाजपा की अगुवाई वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) की मौजूदा सरकार को लोकसभा में अपार बहुमत हासिल है। बजट जैसे वित्त-विधेयक को राज्यसभा में भी पारित में कोई अड़चन नहीं है। भाजपा को लोकसभा में अपने दम पर ही बहुमत प्राप्त है।
नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) की छात्रा रही वित्त मंत्री निर्मला सीथारमण द्वारा संसद में एक फरवरी 2024 को पेश किया जाने वाला बजट मोदी सरकार के मौजूदा शासन काल का आखरी बजट हो सकता ह। क्योंकि मई से पहले चुनाव कराए जाने हैं तो 2023- 24 के वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले कुछेक माह के वास्ते अंतरिम बजट (लेखानुदान) ही पेश और पारित किया जा सकेगा। बजट पारित होने के बाद ही उसका विश्लेषण करना सही होगा। निश्चय ही यह लोकलुभावन चुनावी बजट होगा जिसमें किसानों, महिलाओं, सरकारी कर्मचारियों, छात्रों आदि को रिझाने की कोशिश की जाएगी। सरकार बजट पेश करने के पहले पारम्परिक रूप से संसद के पटल पर वर्ष 2024 का आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत रखेगी। वह भी एक तरह का हिसाब-किताब ही है जिसे पारित कराने की कोई जरुरत नहीं है। आर्थिक सर्वेक्षण में जो आंकड़े होंगे उनसे फौरी तौर पर यही लगेगा कि देशवासियों को कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। उसके आंकड़े ऐसे होंगे कि देश में बेरोजगारी पिछले कुछेक बरस में कम हुई है और अगले पांच वर्ष में शायद ही कोई बेरोजगार मिले।
लेकिन जैसा कि सांख्यिकी के सिद्धहस्त आगाह करते है आंकड़े जितनी बताती है उनसे कहीं अधिक छिपाती है। मसलन , पिछले पांच वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण के विश्लेषण का निष्कर्ष है भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय में बेशक बढ़ोत्तरी लगे पर निर्धन तबके या अल्प-आय वाले परिवारों के जीवन के लिए आवश्यक प्रोटीन के रूप में दलहन की प्रति व्यक्ति औसत खपत लगातार कम होती जा रही है। मैग्सेसे पुरुस्कार विजेता पत्रकार पी. साईनाथ ने कुछ वर्ष पहले इस बात को रेखांकित किया था। लेकिन सरकार ने उसकी अनदेखी कर दी। आम लोग आंकड़ों पर नही वास्तविक जीवन की जद्दोजहद में साफ नजर आने वाली बातों पर भरोसा करते है। उन्हें पता है कि देश में दाल का उत्पादन ही नही उत्पादकता और आपूर्ति भी घटी है पर उसकी कीमत इतनी बढ़ गईं कि दाल-रोटी या दाल-भात का उनका पारंपरिक भोजन भी जुटाना मुश्किल पड़ गया।
पेट्रोलियम पदार्थों के लिए ही नहीं दाल तक की अपनी जरूरत पूरी करने के लिए भारत परनिर्भर हो गया है। आम लोगों को ठीक से नही मालूम कि मोदी सरकार ने देश मे दाल का उत्पादन बढ़ाने के ठोस उपाय करने के बजाय गौतम अडानी जैसे अपने अतिप्रिय व्यापारियों को विदेशों से दाल के आयात का लगभग एकाधिकार दे रखा है। देश में बेरोजगारी की समस्या के हाल से पुरानी कहावत याद आती है ‘ जितनी भी दवा की , मर्ज उतना ही बढ़ता गया ‘। हम कह सकते है कि बेरोजगारी की समस्या मोदी जी के सपनों का ‘ न्यू इंडिया ‘ बने बगैर ख़तम नहीं हो सकती है। लेकिन वह न्यू इण्डिया कैसे और कब तक बन सकेगा इसकी कोई समय सीमा नहीं है। न्यू इण्डिया का निर्माण लोकसभा के नए चुनाव तक संभाव नहीं है। मोदी सरकार पहले कहती थी कि न्यू इंडिया का निर्माण 2023 तक हो जाएगा। अब वह यह जुमला नहीं कहती है। मोदी सरकार ने यह नहीं बताया है कि उसने मई 2014 को अपने गठन के बाद से केंद्र सरकार की सेवाओं में रिक्त पदों की कोई गणना की है और उनमें से कितने पदों पर नई भर्तियां की हैं। कुछ खबरों के मुताबिक केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को प्रेषित परिपत्र में ऐसे पदों की शिनाख्त कर रिपोर्ट देने कहा है।
बताया जाता है कि सरकार के राजकोषीय घाटा को और नहीं बढ़ने देने के लिए रिक्त पदों को समाप्त करने और नए पद सृजित नहीं करने का निर्देश जारी किये गए थे। केंद्र सरकार के अधीन अनेक निगमों , बैंको , रेल , डाक , मिल , खदान , गोदी आदि विभागों में कम से कम चार लाख पद लंबे अर्से से रिक्त हैं। खादी ग्रामोद्योग आयोग ने करीब 300 रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विज्ञप्ति जारी किए और उन पर भर्ती के लिए बड़ी संख्या में आतुर आवेदकों से आवेदन-पत्र शुल्क के नाम करीब हजार-हजार रुपये वसूल कर भर्ती प्रक्रिया ही स्थगित कर दी। मोदी सरकार ने 2016-17 में प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना बड़े जोर-शोर से शुरू कर दी। लेकिन इस पर खर्च के वास्ते पर्याप्त धनराशि का प्रावधान नहीं किया। इस योजना के तहत अगर कोई कंपनी , अपने नियोजित कर्मचारी को राजकीय एजेंसी , कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में पंजीकृत कराती है तो सरकार उस कर्मी के भविष्य निधि खाता में नियोक्ता कम्पनी द्वारा देय अनिवार्य अंशदान का करीब आठ प्रतिशत हिस्सा तीन साल तक स्वयं भरेगी। सरकार ने योजना के लिए प्रारम्भिक प्रावधान एक हजार करोड़ रूपये कर दिया लेकिन इसके दायरे में उन्ही कर्मियों को शामिल करने की शर्त रख दी जिनकी मासिक पगार 15 हजार रुपये से ज्यादा न हो। अगले वर्ष योजना के लिए सरकारी वित्तीय प्रावधान और घटा दिया गया। 15 हजार मासिक पगार का अर्थ प्रति दिन 500 रुपये की कमाई है जो अधिकतर राज्यों में अकुशल श्रमिकों की निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से भी कम है।
रोजगार की उपलब्धता के बारे में मोदी सरकार के पेश आंकडो को लेकर इंदौर के सोशल मीडिया गिरीश मालवीय और मुकेश असीम समेत अनेक अध्येता हेरफेर का संदेह व्यक्त कर चुके हैं। मोदी सरकार अब स्वरोजगार पाए लोगों का आंकड़ा भी रोजगार पाए लोगों की सूची में शामिल करने पर विचार कर रही है। इस आधार पर नौकरी पाने वालों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो सकती है। इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए स्वरोजगार पाने वालों को देश में पहली बार जॉब डेटा में शामिल किया जा रहा है। इससे नौकरीशुदा लोगों की मौजूदा संख्या 50 करोड़ से 55 करोड़ हो जाएगी और सरकार यह जुमला कह सकती है कि उसने पांच साल में पांच करोड़ रोजगार सृजित किए। सवाल तो मोदी जी के इस पुराने जुमला पर भी है कि ‘ अब देश का बेरोजगार नौजवान नौकरी मांगेगा नहीं बल्कि पकोड़े तलने का स्वरोजगार अपना कर नौकरी देगा’।
मोदी जी कहते नहीं अघाते उनकी सरकार न्यू इण्डिया बना रही है। पर उनके स्वप्न के न्यू इंडिया हमारे संविधान में परिभाषित #इण्डिया_दैट_इज_भारत नहीं होगा। इसके साफ संकेत इस सरकार के अनगिनत जुमलों से देशवासियों के सामने उभरते जा रहे हैं। ऐसे किसी जुमले में इण्डिया है लेकिन उफ ये लेकिन भारत नहीं है। सीधी बात है देश में रोजगार बढ़े न बढ़े मोदी जी के सपनों के ‘ न्यू इंडिया ‘ में कोई बेरोजगार नही रह जाएगा। क्योंकि इस सरकार ने रोजगार और बेरोजगारी की परिभाषा ही बदल देने की ठान ली है। मोदी जी के ‘ स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया , स्टैंडअप इंडिया , डिजिटल इंडिया , स्किल इंडिया , कैश-लेस या फिर लेस-कैश इण्डिया ‘ आदि -आदि योजनाओं से बन रही न्यू इंडिया में बेरोजगारों के बाजार में समोसा बेचने को ही रोजगार की उपलब्धता का सर्वनाम होगा।
टैक्स वसूली-
मोदी सरकार ने दावा किया है कि उसके प्रयासों की बदौलत टैक्स वसूली में तेजी से भारत की अर्थव्ययथा कोरोना महामारी से पहले की स्थिति में आ गई है। सरकार ने नहीं बताया कि यह तेजी अवाम की भूख , बेरोजगारी और बदहाली की कीमत पर हुई है। हम जानते हैं कि देश का ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानि सकल घरेलू ( जीडीपी ) अवामी उपभोग , उत्पादक कार्यों में पूंजी निवेश और पूंजीपतियों की मुद्रापूंजी , सोना चांदी जवाहरात, आदि में वृद्धि के तीन हिस्सों से होता है। जीडीपी कोरोना से पहले की स्थिति में आ गई तो वह उपभोग और निवेश कम होने के बावजूद अमीरों के आयात से उनकी संपदा में वृद्धि से हुआ है। जो पूंजीनिवेश हो रहा है वह छोटी पूंजी वालों को कॉर्पोरेट पूंजी वालों द्वारा ‘ निगल ‘ जाने से हुआ और यह काम नोटबंदी, जीएसटी के जरिये पहले से जारी था। यह कोरोना के बाद और बढ़ गया। बड़ी पूंजी से उत्पादन की प्रक्रिया कामगारों की जरूरत कम ही होती है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना यानि ‘ मनरेगा ‘ का बजट 98 हजार करोड़ रुपये से घटाकर 73 हजार करोड़ हो गया है। मार्च 2020 में विश्व अर्थव्यवस्था को झटका लगा तो उसका असर सबसे ज्यादा मौद्रिक प्रणाली पर पड़ा। बैंकों की ग्रामीण क्षेत्रों शाखाएं बंद कर उनका विलय किया जा रहा है।
हम इन दिनों बिहार के अपने गांव बसनहीं में रहते हैं और करीब 10 किलोमीटर दूर ग्वालपाड़ा कस्बा में सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया द्वारा प्रायोजित कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के ग्राहक हैं। सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने 21 दिसंबर 2023 को अपना 113 वां स्थापना दिवस मनाया। इस मौके पर हमें भी संदेशा भेज कर ग्वालपाड़ा में उसके समारोह में बुलाया गया। वहां एक अधिकारी ने उनका नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि इस बैंक की कई शाखाएं और उनके एटीएम बंद कर दिए गए हैं। जो शाखाएं चल रही हैं उनमें पर्याप्त स्टाफ नहीं है। चपरासी से ही क्लर्क का काम करवाया जा रहा है। चपरासी ही ग्राहकों से नगदी का लेन देन के जमा करता है।
सरकारी तेल कंपनियां
सरकारी तेल कंपनियों को डीजल और पेट्रोल बेचने पर प्रति लीटर क्रमश: 22 रुपये और साढे सात रुपये का घाटा है। वे प्रति लीटर 60 रुपये से 80 रुपये टैक्स लेती है। उन सबने पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति 50 फीसद तक कम कर डीलरों का क्रेडिट रोक दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों के पंप स्टेशनों को आपूर्ति में 30 से 40 फीसद की कटौती है।
‘न्यू इंडिया में मंदी ‘ आदि किताबों के लेखक सीपी स्वतंत्र पत्रकार और तक्षक पोस्ट के लगभग नियमित टीकाकार हैं।