मणिपुर में इंटरनेट शटडाउन ने न केवल लोगों को बाकी दुनिया से अलग कर दिया है, बल्कि उनके दैनिक जीवन को भी पटरी से उतार दिया है। राज्य के गृह विभाग ने एक आदेश में कहा कि विशिष्ट शर्तों और उपयोगकर्ताओं द्वारा हस्ताक्षरित एक शपथ पत्र के साथ मणिपुर में ब्रॉडबैंड सेवाएं फिर से शुरू कर दी गईं है। हालाँकि, पूरे मणिपुर राज्य में मोबाइल डेटा फिलहाल निलंबित है। बहुसंख्यक मैतेई समुदाय और अल्पसंख्यक कुकी जनजाति के बीच बढ़ते जातीय संघर्ष के जवाब में सरकार द्वारा इंटरनेट बंद किया गया था। हिंसा प्रभावित राज्य में 80 दिनों से अधिक समय तक इंटरनेट बंद रहने के बाद मंगलवार को इंटरनेट आंशिक रूप से बहाल कर दिया गया।
आदेश में कहा गया है कि यह निर्णय 3 मई से इंटरनेट सेवाओं पर लगातार प्रतिबंध की समीक्षा के बाद लिया गया है। समीक्षा बैठक में इस बात पर चर्चा की गई की किस तरह इस प्रतिबंध ने कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य सुविधाओं और ऑनलाइन नागरिक-केंद्रित सेवाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया।
Manipur government orders earlier suspension of Broadband internet service be "lifted conditionally in a liberalised manner" pic.twitter.com/1FEfCCppQb
— ANI (@ANI) July 25, 2023
आदेश के अनुसार, ब्रॉडबैंड सेवा की बहाली विशिष्ट नियमों और शर्तों के अधीन है, जिसमें केवल स्टेटिक आईपी के माध्यम से कनेक्शन, वाईफाई हॉटस्पॉट के लिए कोई छूट नहीं, सोशल मीडिया वेबसाइटों और वीपीएन को ब्लॉक करना और लॉगिन क्रेडेंशियल को दैनिक रूप से बदलना शामिल है। सरकार ने यह भी कहा कि इन शर्तों का उल्लंघन करने पर संबंधित कानूनों के तहत सजा दी जाएगी।
हालाँकि, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से दुष्प्रचार और झूठी अफवाहों के संभावित प्रसार के बारे में चिंताओं के कारण पूरे मणिपुर राज्य में मोबाइल डेटा सेवाएं निलंबित हैं। सरकार ने माना है कि इससे सार्वजनिक सुरक्षा संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। मोबाइल डेटा के निलंबन पर आदेश में कहा गया, “व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि जैसे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से दुष्प्रचार और झूठी अफवाहें फैलने की अभी भी आशंकाएं हैं।”
मणिपुर सरकार के अनुसार, इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने का निर्णय “राष्ट्र-विरोधी और असामाजिक तत्वों की डिजाइन और गतिविधियों को विफल करने” और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर गलत सूचना और झूठी अफवाहों के प्रसार को रोकने के लिए किया गया था। 28 अप्रैल को चुराचांदपुर और फ़िरज़ावल जिलों में शटडाउन शुरू हुआ और 3 मई को इसे पूरे राज्य में बढ़ा दिया गया। तब से, हर पांच दिन में शटडाउन बढ़ाने का एक नया आदेश पारित किया गया, जिससे ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं दोनों प्रभावित हुईं।
इंटरनेट प्रतिबंध को लेकर दसवीं कक्षा के छात्र खानगेमबम डायमंडसना सिंह ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि यहां मणिपुर में इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए हम छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं या ऑनलाइन नोट्स लेने जैसी किसी भी प्रकार की ऑनलाइन गतिविधि तक नहीं पहुंच सकते हैं, जो कि कोविड महामारी के दौरान उपलब्ध थे। हम चाहते हैं कि इंटरनेट सुविधाएं जल्द से जल्द बहाल की जाएं क्योंकि मैं सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने वाला हूं। मैं सरकार से उन लोगों के लिए निर्णय लेने का आग्रह करता हूं जो बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं।”
हालाँकि सीधे जानकारी प्राप्त करना हमेशा कठिन रहा है, लेकिन इंटरनेट सेवाओं के निलंबन ने लोगों की स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय सेवाओं तक पहुंच को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। चाहे राजधानी इम्फाल हो या पहाड़ी क्षेत्र, किसी भी ऑनलाइन लेनदेन की अनुमति नहीं है। ऐसे समय में जब नकद लेनदेन ही एकमात्र रास्ता है, खाली एटीएम और सीमित बैंकिंग घंटे चीजों को और अधिक कठिन बना देते हैं।
डिपार्टमेंटल स्टोर और वीडियो प्रोडक्शन बिजनेस चलाने वाले एक मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति कुलेद्वार सिंह ने बताया, “इंटरनेट सुविधाओं की कमी के कारण, हम कई चीजें नहीं कर सकते जो इंटरनेट पर निर्भर हैं। मेरी राय में, इंटरनेट सेवाओं को तत्काल फिर से खोलना अत्यधिक आवश्यक है। यदि सोशल मीडिया पर कुछ भी अवांछित या हानिकारक, जैसे संदेश, ऑडियो या वीडियो आता है, तो इसे साइबर अपराध विभाग द्वारा जांचा जा सकता है। इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाना सूचना के अधिकार का हनन है। यह समाधान नहीं है।”
ऐसी आशंका है कि कुछ असामाजिक तत्व जनता की भावनाओं को भड़काने के लिए छवियों, घृणास्पद भाषण और घृणास्पद वीडियो संदेशों के प्रसारण के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं। इसे लंबे समय तक इंटरनेट बैन का मुख्य कारण माना जा रहा है। विभिन्न संगठन मणिपुर में इंटरनेट सेवाओं की तत्काल बहाली की मांग कर रहे हैं और कुछ लोग प्रतिबंध हटाने के लिए अदालत भी गए हैं।
मालूम हो कि अब तक राज्य में संघर्ष के कारण 150 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। मेतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में 3 मई को पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित होने के बाद मणिपुर में जातीय झड़पें शुरू हुईं थी।