शहर के चर्चित हाईप्रोफाइल मर्डर केस विभूति भूषण सिंह केस की जांच शासन स्तर पर CBCID को सौंपी गई है। इस केस में 10 फरवरी को आदेश के साथ ही 1 हफ्ते में जांच CBCID को सौंपने का आदेश जारी किया गया है।
ज्ञात हो कि विभूति की हत्या में एक बिहार नम्बर की गाड़ी का इस्तेमाल किया गया था, और 10 फरवरी 2022 को पुलिस लाइन ग्राउंड के बाहर इस घटना को अंजाम दिया गया। घटना के बाद मृतक के भाई कीर्ति भूषण सिंह ने 11 फरवरी 2022 को FIR दर्ज करवाते हुये 6 लोगों को नामजद बनाया था। जिसमें शहर के महादेव महाविद्यालय के प्रबंधक अजय कुमार सिंह, उसकी पत्नी सीमा सिंह, बेटे पार्थ सिंह, भाई अवनीश कुमार सिंह, विनोद कुमार सिंह समेत कॉलेज के एक कर्मचारी पीयूष पटेल के खिलाफ 302, 506 और 120B में मुकदमा कायम हुआ था। कीर्ति का कहना है कि विभूति को लंबे समय से धमकी मिल रही थी और शिक्षा माफियाओं के एक गुट काफी सक्रिय था।
हत्या की वजह महादेव महाविद्यालय के द्वारा किया गया राजस्व का फर्ज़ीवाड़ा और गलत तरीके से मान्यता लेने का बताया जाता है। इस फर्जीवाड़े में मृतक विभूति भूषण के परिवार की तरफ से दर्ज परिजनों के 6 मुक़दमे में विभूति सभी के पैरवीकार थे। जिसकी वजह से अजय सिंह ने पहले भी विभूति को मारने की धमकी दी थी। विभूति ने प्रशासन से अपनी जान की सुरक्षा मांगते हुए कई आवेदन पुलिस को किये 2018 में दिये थे। लेकिन पुलिस की उदासीनता के कारण विभूति को सुरक्षा नहीं मिली और विभूति के साथ इस तरह की घटना घटी।
बताया जाता है कि महादेव महाविद्यालय के खिलाफ केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कारवाई करते हुये इसके फ़र्ज़ी दस्तावेजों पर लिये गये बीएड की मान्यता के संबंध में अपनी आखिरी कारवाई करते हुये फाइनल SCN 2021 में जारी किया हुआ है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से इस फर्ज़ीवाड़ा पर रोक लगाने का आदेश भी जारी किया था NCTE ने लेकिन तत्कालीन रजिस्टार सुनीता पांडेय ने महादेव महाविद्यालय की फ़ाइल पर कोई एक्शन नहीं लिया, बल्कि महादेव महाविद्यालय के द्वारा बनाये गये राजभवन के एक जाली कागज़ को महादेव महाविद्यालय से मंगवा कर आधिकारिक रूप से RTI में जारी करते हुये मृतक के भाई को 21 जनवरी को दिया जिसके कारण आननफानन में विभूति की हत्या 10 फरवरी को करवाई गई ऐसा सूत्रों का कहना है।
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कीर्ति भूषण सिंह NRI है और अपने भाई की हत्या की पैरवी करने के साथ ही वादी मुकदमा है, का कहना है कि पहले तो हमारे ऊपर तत्कालीन कैंट थाना प्रभारी अजय सिंह के द्वारा मुकदमा ना लिखवाने का दबाव बनाया गया। फिर ये कहा गया कि एक्सीडेंट है सामने वाली पार्टी बहुत अच्छी है और आप अपनी गाड़ी का क्लेम ले लीजिए। बिना विवेचना बिना पड़ताल पुलिस का रवैया बड़ा अजीब था। हमारी बार-बार कहने के बाद भी जांच की टीम नहीं बदली गई मजबूरन हमें उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा जहाँ न्यायालय ने हमारी बात को सुना और इस FIR के तह में जाकर राजस्व के फर्जीवाड़े पर निष्पक्ष जांच के लिए आदेश दिया लेकिन तत्कालीन पुलिस कमिश्नर सतीश गणेश ने कोई कारवाई नहीं की। अदालत में खड़े होकर झूठ बोला गया कि विवेचना चल रही है और हत्या के मात्र 10 दिनों में धारा बदलते हुये गुपचुप तरीके से फ़ाइल को दबाने की कोशिश हुई। पुलिस की केस डायरी में इस संगीन मामलें की कोई जांच ही नहीं कि गई बल्कि कोरी कल्पना के आधार पर कहानी लिखी गई मेरे बयान के साथ हत्या की वजह राजस्व फर्जीवाड़े और फ़र्ज़ी दस्तावेजों पर मान्यता की कोई जांच नहीं हुई। इसमें पिछले कुलपति त्रिलोकी नाथ सिंह के साथ शहर के शिक्षा माफियाओं और भू-माफियाओं की साठगांठ है।
पुलिस की जांच में निष्पक्ष जांच ना होते देखकर सरकार से इस मुक़दमे में CBCID करवाये जाने की मांग की गई थी जिसे मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर परखने के बाद मान लिया गया है। जांच में मृतक के परिवार वाले निष्पक्ष जांच की मांग और आरोपी को सज़ा की उम्मीद कर रहे हैं।