साल 2012 में एकीकृत नगर निगम के विभाजन के बाद वजूद में आए दिल्ली के उत्तरी , पूर्वी और दक्षिण दिल्ली नगर निगमों की 272 पार्षद सीटों के चुनाव की अधिकृत तिथियों का तो अभी तक ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन दिल्ली की तीन प्रमुख पार्टियों सत्तारूढ़ भाजपा, आप और काँग्रेस में उम्मेदवारों के चयन को लेकर गहमा – गहमी का दौर शुरू हो गया है। इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि दिल्ली के तीन निगमों की तरह दिल्ली की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां भी तीन ही हैं।
भाजपा केंद्र समेत कई राज्यों में सत्तारूढ़ होने के साथ ही दिली के तीनों निगमों में भी एक दशक से अधिक समय तक सत्तासीन है। आप यानी आम आदमी लगभग एक दशक से दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार पर आसीन है। काँग्रेस केंद्र से लेकर प्रदेश और निगम तक दिल्ली में कहीं भी सरकार में नहीं है। लेकिन देश और दिल्ली की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी होने के नाते निगम चुनाव के हर पहलू से बहुत मजबूती के साथ जुड़ी हुई है। एक दशक से भी अधिक समय से दिली की सत्ता से बाहर होने के बावजूद इस पार्टी का टिकट लेकर चुनाव में कूदने की इच्छा रखने वालों की संख्या भी भाजपा और आप के टिकिटायार्थियों की संख्या से कम नहीं हैं। तीनों ही पार्टियों में निगम के मौजूदा पार्षदों को टिकट देने न देने , उनके स्थान पर किसी अन्य मजबूत और जिताऊ पार्टी कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाने से लेकर किसे कहाँ से उम्मीदवार बनाना है और चुनाव जीतने की रणनीति क्या हो ? जैसे तमाम मुद्दों पर विचार विमर्श शूर हो गया है।
जब तक चुनाव आयोग तिथियों का ऐलान करेगा तब तक पार्टी स्तर पर इस बारे में अनुकूल फैसला लेने का समय भी इन दलों को मिल जाएगा। इन तीन प्रमुख पार्टियों के अलावा दिल्ली में कई बार बसपा ने भी निगम चुनाव में भाग्य आजमाने की कोशिश की हैं। लेकिन कोई विशेष लाभ उसे दिल्ली के निगम चुनाव में नहीं मिल पाया है। इसी तरह की कोशिश शिरोमणि अकाली डीएसएल ने भी कई बार की है, लेकिन उसे भी कोई फायदा नहीं हुआ। यह बात अलग है कि भाजपा के साथ गठबंधन का साथी होने की वजह से अकाली दल को दो – चार सीट जीतने में कामयाबी जरूर मिली। लेकिन निगम चुनाव में अपनी अलग पहचान बनाने में वो अब तक नाकाम ही रही है। इस बार तो अकाली – भाजपा गठबंधन भी नहीं है ऐसे में देखना होगा कि जो छोटी पार्टियां किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। उनकी इस बार के निगम चुनाव में क्या स्थिति बनती है ?
दिल्ली में इस बार के निगम चुनाव पर टिप्पणी करने से पहले यह जानना भी काम दिलचस्प नहीं होगा कि साल 2012 और साल 2017 के निगम चुनाव में इन तीन प्रमुख पार्टियों के साथ ही अन्य छोटी – बड़ी पार्टियों की हैसियत कैसी थी ? भाजपा विगत डेढ़ दशक से दिल्ली नगर निगम पर काबिज है। 2012 में एकीकृत निगम के विभाजन से पहले भी निगम पर भाजपा का ही कब्जा था। उसके बाद हुए दोनों निगम चुनावों में भी भाजपा ने तीनों निगमों में अपना कब्जा बरकरार रखा।
2012 और 2017 में भी दिल्ली नगर निगम के चुनाव अप्रैल के महीने में हुए और इस बार भी इसी अवधि में चुनाव होने की संभावना है। 2012 के निगम चुनाव में भाजपा ने 23 अप्रैल को हुए चुनाव में दिल्ली के तीनों निगम चुनाव में अपनी जीत का डंका बजाया था। चुनाव से पहले एक – दो महीने पहले ही शीला दीक्षित की नेतृत्व वाली दिल्ली की तत्कालीन राष्ट्रीय राजधानी सरकार ने इस उम्मीद में दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में विभाजित करने का फैसला लिया था, ताकि 2012 के निगम चुनाव में काँग्रेस को फायदा मिल सके। 2007 से निगम में स्थापित भाजपा को सत्ता से हटाने का काँग्रेस के नेताओं को यही तरीका नजर आया था लेकिन स्थानीय राजनीति में पैर फैलाने का यह कॉंग्रेसी दांव भी तब फेल हो गया जब भाजपा ने उत्तरी दिल्ली और दक्षिण दिल्ली की 104 – 104 पार्षद सीटों में से क्रमशः 66 और 59 सीटें जीत कर न केवल काँग्रेस को एक बार फिर चित्त कर दिया बल्कि 2013 में दिल्ली की सरकार पर कब्जा करने वाली आप को भी यह एहसास करा दिया था कि स्थानीय निकाय के चुनाव में भाजपा को हरा पाने की उम्मीद कम से कम आम आदमी पार्टी न करे तो ही अच्छा है।
इस चुनाव में भाजपा ने उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली के साथ ही पूर्वी दिल्ली की 64 सीटों में से 35 सीट जीत कर काँग्रेस और आप दोनों को धूल चटाई थी। 2012 के चुनाव में दक्षिणी दिल्ली निगम की 104 सीटों में काँग्रेस को 29 , बसपा को 5 और आप समेत अन्य पार्टियों को 26 सीट जीतने में कामयाबी मिली थी।
इस चुनाव में उत्तरी दिली नगर निगम की 104 सीटों में से काँग्रेस को 29 , बसपा को 7 तथा आप समेत अन्य पार्टियों को कुल 9 सीट जीतने में कामयाबी मिल पायी थी। इसी चुनाव में पूर्वी दिली की 64 सीटों में से काँग्रेस को 19 ,बसपा को 3 और अन्य को 7 सीटें मिल जीतने को मिल सकीं थीं। 2017 के चुनाव में दिल्ली के तीनों नगर निगम की 272 सीटों के लिए 2500 से अधिक उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था , इस चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने जीत का सिलसिला जारी रखा था। पिछले निगम चुनाव में 26 अप्रैल को ही वोटों की गिनती के बाद दिल्ली के तीनों नगर निगम के 272 मैं से 270 में हुए चुनाव के बाद भाजपा की झोली में 184 ,आप की झोली में 45 और काँग्रेस की झोली में 30 सीटें आई थीं। पार्टियों को मिलने वाले मत प्रतिशत की बात करें तो कह सकते हैं कि 2017 के निगाम चुनाव में पूर्वी दिल्ली नगर निगम में भाजपा को 38 प्रतिशत से थोड़े अधिक, आप को करीब साढ़े 23 ,काँग्रेस को करीब 21 और बसपा को करीब साढ़े 6 फीसदी वोट मिले थे । इसी तरह उत्तरी दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भाजपा करीब 36 फीसदी वोट के साथ सबसे ऊपर थी। इसके बाद करीब 28 फीसदी वोट पाने वाली आप दूसरे नंबर पर और 21 फीसदी वोट के साथ काँग्रेस तीसरे नंबर पर थी। बसपा को सिर्फ 4 फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा था। पिछले चुनाव में दक्षिण दिल्ली नगर निगम की 72 सीट जीत कर भाजपा ने एक रिकार्ड भी बनाया था। इस चुनाव में आप ने इलाके की 15 और काँग्रेस ने कुल 10 सीटें ही जीती थीं ।