लगातार तक्षकपोस्ट की खबरों की पड़ताल और एक RTI के तहत आनंदी बेन ने विश्विद्यालय और कुलपति आनंद त्यागी को लिखित आदेश जारी करके जांच के आदेश दिए है। राजभवन की फटकार के बाद हरकत में आये कुलपति त्यागी ने इस मामलें के लिए तीन सदस्यों की जांच कमेटी गठित की है। जिसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जज कर रहे हैं। एक सदस्य BHU से है इस टीम में।
क्या है मामला-
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में 1990 से 2004 तक सांध्यकालीन शिक्षा व्यवस्था थीं। उस समय दर्जनों शिक्षक अंशकालीन पद पर रखे गए थे। इनमें से प्रोफेसर योगेंद्र सिंह भी कार्यरत थें, इसके बाद विश्विद्यालय में 2004 में रीडर पद के लिए विज्ञापन आया। आवेदन और साक्षात्कार के बाद डॉ कैलाश नाथ सिंह की नियुक्ति इतिहास विभाग में रीडर पद पर हुई थी। जिन्हें लगातार 9 महीनों काम करने के बाद प्रोफेसर पद पर प्रोन्नत किया गया था।
लेकिन योगेंद्र सिंह को बिना विज्ञापन, रीडर के पद पर नियुक्त कर दिया गया। ये मामला विश्वविद्यालय सहित पूरे उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के तहत पहले कभी नहीं हुआ। इस पद के लिए हुये साक्षात्कार में प्रो, योगेंद्र सिंह चौथे स्थान पर थे, योग्यता की जगह फ़र्ज़ी तरीके से ये नियुक्ति की गई।
इस मामले को लेकर हंगामा होने के कारण विश्वविद्यालय द्वारा जांच भी कराई गई थी। लेकिन जांच की रिपोर्ट को जाति समीकरण हावी होने के कारण अनदेखा कर दिया गया। खामियां को देखते हुए भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने आंखें बंद कर ली। इस मामले में एक आर.टी.आई. कार्यकर्ता द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के कोड नंबर 10 में माननीय न्यायाधीश अरुण टंडन एवं न्यायाधीश सुश्री सुनीता अग्रवाल के पास केस दाखिल किया गया। लेकिन पैसों के बल पर मामलें को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
पूछताछ में मिली जानकारी के अनुसार जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ इतिहास विभागाध्यक्ष का विवादों से पुराना नाता रहा है। विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर टी.एन. सिंह के कार्यकाल में बनाए गए गंगापुर के निर्देशक रहते हुए महिला शिक्षकों के यौन शोषण के मामले में 2009 और 2020 में भी केस दायर किए गए थे। लेकिन उसे भी पैसों के बदौलत मैनेज कर लिया गया। प्रोफेसर योगेंद्र सिंह के दमनकारी नीति के तहत 2020 में 78 संविदा शिक्षकों को अपनी मांग को लेकर 24 दिनों तक सत्याग्रह पर बैठना पड़ा था। प्रो, योगेंद्र सिंह ने प्रो,टी,एन, सिंह को भ्रमित कर शासनादेश की धज्जी उड़ाते हुए संविदा शिक्षकों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया था। संविदा शिक्षक कोर्ट की शरण में गए शासनादेश को सही ठहराते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय प्रशासन को आदेश दिया कि इन शिक्षकों को 1 जुलाई 2020 से सेवाविस्तार करते हुए एरियर भुगतान किया जाए। लेकिन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने इन आदेश की अवहेलना करते हुए 15 शिक्षकों की लिस्ट जारी कर दी।
सभी विभागाध्यक्ष इन शिक्षकों से सेवा लेना शुरू कर दिया, लेकिन विवादित प्रो ,योगेंद्र सिंह ने अपने इतिहास विभाग में 4 संविदा शिक्षकों को सेवा विस्तार से वंचित कर दिया। प्रोफेसर योगेन्द्र सिंह के नजदीकियां रखने वाले पत्रकारिता विभाग के प्रभारी डॉ विनोद सिंह ने भी 2 संविदा शिक्षकों का सेवा विस्तार होने नहीं दिया।
नये कुलपति आनंद त्यागी के आने के बाद, इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेंद्र सिंह पर गंगापुर निर्देशक पद पर बतौर रहते हुए पुस्तकालय हेतु पुस्तक में हेरा-फेरी कर घोटाला करने का साक्ष्य और जांच की मांग छात्रों ने लिखित शिकायत के रूप में कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी को सौंपी लेकिन प्रोफेसर त्यागी ने जांच क्या ही कि पता नहीं पर इस मामलें को उठाकर ठंडे बस्ते में डाल दिया।
कुलपति त्यागी और कुलसचिव की अनुकंपा से योगेंद्र सिंह को जीवनदान मिलता रहा खबर तो यहाँ तक है की कुलसचिव के घर पर सारे मामलों का लेन देन और कमाई की सेटिंग करने में भी योगेंद्र सिंह की हाथ हैं। पहले भी पैसों के बल पर मामलें को दबाया गया और इस बार भी योगेंद्र सिंह के रिटायरमेंट के पहले आनंद त्यागी की कोई मंशा कारवाई की नहीं थीं। पर राजभवन के दखल के बाद मामलें में जांच कमेटी गठित हुई हैं।