प्रयागराज: शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन एक बार फिर विवादों में हैं और इस बार उनकी मुश्किल बढ़ती दिख रही है।उनके द्वारा सोशल मीडिया पर पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर दिए जा रहे विवादित बयानों पर दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नारायण त्यागी उर्फ वसीम रिजवी और सरकार से जवाब तलब किया है।कोर्ट ने कहा है कि समाज में अशांति फैलाने वाले बयान ठीक नहीं है। मामले में सरकार दो हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करे। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ कर रही थी। अगली सुनवाई 13 जनवरी को होगी।
मोहम्मद यूसुफ अंसारी की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर पक्ष रखते हुए अधिवक्ता सहर नकवी ने तर्क दिया कि शिया वक्फ बोर्ड केपूर्व चेयरमैन लगातार विवादित बयान दे रहे हैं।याची के अधिवक्ता ने पूर्व चेयरमैन द्वारा पैगंबर मोहम्मद साहब पर लिखी किताब का हवाला देते हुए बताया कि उसमें लिखी गई बातें धर्म विशेष की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाली हैं।याचिकाकर्ता ने कहा कि यह जानबूझकर किया गया कृत्य है। याची ने शिया वक्फ बोर्ड के पूर्वचेयरमैन को विवादित बयान देने पर रोक लगाने और उनकी किताब पर पाबंदी लगाने की मांग की है। कोर्ट ने पहले याची के अधिवक्ता से कई सवाल भी किए। कोर्ट ने कहा कि किसी को बयान देने से कैसे रोक लगाई जा सकती है? यह तो उसके मूल अधिकार का हनन होगा। वहीं इस पर याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि क्योंकि, पूर्व चेयरमैन ने इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है। धर्म परिवर्तन केबाद उसका नाम जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी हो गया है। इसलिए वह अपने बयानों से एक खास समुदाय के लोगों की धार्मिक भावनाओं पर चोट कर रहे हैं। उनके खिलाफ पूर्व में 27 मुकदमे दर्ज हैं।
इसलिए उन्हें बयान देने पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मुंबई सरकार ने आर्यन खान केस में कई नेताओं को बयान देने पर पाबंदियां लगाईं हैं। जवाब में अपर महाधिवक्ता ने कहा कि यह याचिका पोषणीय नहीं है, क्योंकि किसी को बयान देने पर पाबंदी लगाने से उसके मूल अधिकार का हनन होगा। इस पर कोर्ट ने कहा कि सामान्य व्यक्ति किसी तरह का बयान दे तो उसका समाज पर बहुत असर नहीं पड़ता है, लेकिन कोई बड़ा आदमी जो किसी विशेष और महत्वपूर्ण संस्थान का मुखिया रहा हो, उसके बयान देने पर असर पड़ता है।अगर वह गलत बयानबाजी करता है तो समाज में अशांति और नफरत फैल सकती है। कोर्ट ने कहा कि मामले में राज्य सरकार दो हफ्ते में जवाब दाखिल करे।