सांख्यिकी मंत्रालय ने मंगलवार को जीडीपी के आकड़े जारी कर खुशखबरी दी कि मौजूदा वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 20.1 फीसदी रही। सरकार ने इसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया। यह विकास दर पिछले साल 2020-21 की पहली तिमाही की तुलना में मापी गई है। जो -24.4 फीसदी थी। अर्थशास्त्र को समझने वाले जानते हैं कि यह 20.1 फीसदी अभी भी बुरे हाल में है, अगर हम इसकी तुलना 2019-20 की जीडीपी से करें। हालांकि तब भी बहुत अच्छी स्थिति नहीं थी। 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी 35,66,788 करोड़ रुपये थी, जो अब 2021-22 की तिमाही में 32,38,828 करोड़ रुपये रह गई है। जब जीडीपी का आधार ही कम हो गया है, तो यह विकास दर सुखद कैसे हो सकती है। जीडीपी का यह सुधार तब है, जबकि, देश के नागरिकों पर करों और सेस के बोझ बहुत बढ़ गये हैं। रोजगार सेक्टर बुरे हाल में हैं। आधारभूत व्यवसाय डगमगा रहे हैं। सरकार ने कई सार्वजनिक उद्यम बेच दिये हैं, तो कई बिकने की कतार में हैं। सरकार देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन की बनाना चाहती है मगर उसके लिए रचनात्मक नीतियां नहीं अपनाती है। नतीजतन, देश आगे बढ़ने के बजाय पीछे जा रहा है। सरकारी तंत्र वास्तिविकता छिपाने के लिए झूठ को सीढ़ी बनाता है।
चालू वित्त वर्ष के लिए रिजर्व बैंक ने देश की वृद्धि दर के अनुमान को 10.5 फीसदी से घटाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया है। वहीं, विश्वबैंक ने 2021 में भारत की अर्थव्यवस्था के 8.3 फीसदी की दर से वृद्धि की संभावना व्यक्त की है। 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था के 5.6 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। आपको याद होगा, पिछले साल लॉकडाउन के कारण अप्रैल-जून की तिमाही में देश की जीडीपी घटकर 26,95,421 करोड़ रुपये रह गई थी। पिछले कुछ महीनों से अर्थशास्त्री भी यही अनुमान दे रहे थे कि इस तिमाही में जीडीपी 18 से 22 फ़ीसदी के बीच रहेगी। शेयर बाज़ार को भी इस आंकड़े का ही इंतज़ार था। वह पिछले कुछ दिनों से इसी उम्मीद में ऊपर जा रहा था। नतीजतन, सेंसेक्स पहली बार 57 हज़ार 550 के पार पहुंच गया। इस बढ़त के साथ ही यह भी सच है कि बाज़ार की बढ़त के बाद भी जीडीपी का उछाल अर्थव्यवस्था के तेज़ी से पटरी पर आने के संकेत नहीं दे रहा है। इसे भरपाई की दिशा में देखा जाना चाहिए। इस 20 फ़ीसदी के उछाल का मतलब यही है कि अभी अर्थव्यवस्था पिछले स्तर से भी नीचे है। अभी देश की अर्थव्यवस्था वहां भी नहीं पहुंच सकी है, जहां दो साल पहले थी।
साल के शुरुआती महीनों जनवरी से मार्च के मुक़ाबले अप्रैल से जून के बीच उत्पादन में क़रीब 17 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। यह चिंता बढ़ाती है कि जितनी तेजी से पिछले साल अर्थव्यवस्था सिकुड़ी थी, उसके मुकाबले वह बढ़त दर्ज नहीं करा सकी है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल लॉकडाउन के बाद देश के 100 अरबपतियों की संपत्ति में 12 लाख 97 हज़ार 822 करोड़ की बढ़ोत्तरी हो चुकी है जबकि कोरोना महामारी ने साल 2020 के दौरान 23 करोड़ भारतीयों को गरीबी में धकेल दिया है। दूसरी लहर में इस संख्या में और इजाफा हो गया है। सबसे ज्यादा मार युवाओं और महिलाओं पर पड़ी है। रिपोर्ट में गरीब उन्हें माना गया है, जिनकी दैनिक आमदनी 375 रुपये से भी कम है। महामारी में दुनिया भर में गरीब हुए लोगों में 60 फीसदी सिर्फ भारतीय हैं। जीडीपी के मद्देनजर भारत 194 देशों की रैंकिंग में 142वें नंबर पर पहुंच गया है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट में बताया गया है कि हमारे देश में गरीब परिवार को मध्यम वर्ग में पहुंचने में सात पीढ़ियां खप जाती हैं। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हमारी सरकार के फैसले राजनीति लाभ के लिए अधिक होते हैं। कमजोर वर्ग के लिए शुरू की गई उज्ज्वला, पीएम आवास, पीएम किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं का मकसद सिर्फ चुनावी फायदा रहा है। सरकार ने उनके शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की मूलभूत जरूरतों पर खर्च करने के बजाय चुनावी फायदा अधिक देखा है।
हमें देखना होगा कि मई में जो बेरोजगारी दर, 11.9 फीसदी थी वह जून के महीने में 14.73 फीसदी हो गई थी। जो आजाद भारत के इतिहास में सबसे अधिक है। गांवों के साथ ही शहरों में भी हालात बिगड़े हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक 97 फीसदी से अधिक परिवारों की कमाई घट गई है। देश में भुखमरी की हालत बन गई है, जिससे निपटने के लिए सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज योजना का लाभ देने की घोषणा की है। वैश्विक भूख सूचकांक में शामिल 107 देशों में भारत 94वें स्थान पर आ गया है, जो अपने सभी पड़ोसी देशों से भी बदतर है। बावजूद इसके, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में प्रति व्यक्ति 50 किलो से अधिक पका खाना सालाना बर्बाद होता है। सरकार ने संसद में माना है कि देश में एक लाख क्विंटल से अधिक अनाज उसके गोदामों में ही सड़ गया। देश की महंगाई दर ऐतिहासिक रूप से बहुत ऊपर पहुंच गई है। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढ़ने से हालात और बेकाबू हुए हैं। अफगानिस्तान के राजनीतिक संकट ने भारत को बड़ा झटका दिया है। जिसका असर भी धीरे-धीरे बाजार में दिखने लगा है। रसोई गैस के दाम भी ऐतिहासिक रूप से बढ़ रहे हैं। उसके प्रभाव को कम करने के लिए सरकार के स्तर पर कोई योजना नहीं पेश की गई है।
मौजूदा हालात में हमें अपने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की याद आती है। हमारे राजनेताओं को ऐसे वक्त में उनकी नीतियों से सीखना चाहिए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद आर्थिक रुप से ख़स्ताहाल और विभाजित भारत का नवनिर्माण आसान नहीं था मगर नेहरू ने अपनी दूरदृष्टि और समझ से जो पंचवर्षीय योजनाएँ बनाईं, उसके नतीजे वर्षों बाद तक देश को मजबूत करते रहे। गरीबी में आजाद हुए भारत को समृद्ध बनाने में नेहरू की अहम भूमिका रही है। उन्होंने शिक्षा, सामाजिक सुधार, आर्थिक क्षेत्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और औद्योगीकरण सहित कई क्षेत्रों में एक साथ काम किया। उन्होंने चुनावी फायदे के लिए नहीं बल्कि सामाजिक आर्थिक सामंजस्य को ध्येय बनाकर नीतियां और योजनायें बनाईं। नतीजतन, देश तेजी के साथ समग्र विकास की दिशा में आगे बढ़ा। उनके फैसलों की कई बार निंदा भी हुई और मजाक भी बना। मगर, सच यही है कि उनके फैसलों ने ही देश को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत किया। उनकी विदेश नीति हो या फिर नवीन मंदिर नीति। पंचवर्षीय योजनायें हों या फिर लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने की नीति, सभी ने देश को न सिर्फ सशक्त किया बल्कि विश्व में सम्मान भी दिलाया। उन्होंने इसके लिए प्रचार का सहारा नहीं लिया बल्कि उनका काम ही बुलंदियों का बखान करता था। अब एक बार फिर से उनकी नीतियों की देश को आवश्यकता है, जिससे टूटते और कमजोर होते भारत को पुनः प्रेम सहकार की माला में पिरोकर सशक्त और समृद्ध बनाया जा सके।
जय हिंद!