विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल इस वक्त मजबूत गठबंधन की तलाश के साथ-साथ रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। सूबे की सत्ता पर काबिज भाजपा ने वाराणसी में पीएम मोदी के कार्यक्रम के साथ चुनाव का शंखनाद कर दिया है, तो कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी भी यूपी में डेरा डाले हुई हैं। वहीं, समाजवादी पार्टी, भागीदारी संकल्प मोर्चा और बसपा भी अपनी रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। इस बीच यूपी और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ने का ऐलान करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर सत्ता हासिल करने के लिए दलित, ब्राह्मण और ओबीसी फॉर्मूले पर चलने का फैसला किया है।
याद रहे पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर बड़े पैमाने पर दांव लगाया था।इसे चुनाव में मायावती ने खूब प्रचारित भी किया था। लेकिन मुसलमानों ने मायावती को सिरे नकार दिया था। जानकार कहते हैं कि बसपा को इसका नुकसान उठाना भी पड़ा था। विरोधियों खास कर भाजपा ने इस बात को बसपा के बेस मतदाताओं में अपने हिसाब से प्रचारित किया। पिछले चुनाव में भाजपा को बड़े पैमाने पर बसपा के आधार वोटरों ने वोट किया था।इस लिए इस बार बसपा ने नई सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लेने को सोचा है।उसका मानना है कि ब्राह्मण मतदाता इस समय भाजपा से नाराज़ हैं। ब्राह्मण को फिर से बसपा में लाने के लिए मायावती 23 जुलाई से ब्राह्मण सम्मेलन का आगाज करने जा रही हैं. जबकि इसकी जिम्मेदारी सांसद सतीश मिश्रा को दी गई है।
दरअसल बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन का आगाज 23 जुलाई को अयोध्या से होगा। जबकि पहले चरण के तहत 23 जुलाई से लेकर 29 जुलाई तक अयोध्या और आसपास के छह जिलों में लगातार ब्राह्मण सम्मेलन किए जाएंगे। बता दें कि बसपा ने फिर से सत्ता में वापसी के लिए लखनऊ में शुक्रवार को पूरे प्रदेश से आए 200 से ज्यादा ब्राह्मण नेता और कार्यकर्ताओं के साथ आगे की रणनीति पर चर्चा की थी।
बहरहाल, बसपा सुप्रीमो मायावती ने 2007 में यूपी विधानसभा चुनाव में 30 फीसदी वोट के साथ 403 में से 206 सीटों के साथ सत्ता हासिल करके देश की राजनीति में तहलका मचा दिया था।इस दौरान दलित, ब्राह्मणों और ओबीसी फॉर्मूले के तहत न सिर्फ टिकट का बंटवारा किया गया था बल्कि करीब एक साल पहले ही प्रत्याशियों की घोषणा कर दी थी।