ज्ञानेन्द्र पाण्डेय: शबनम एक नाम है और यह नाम किसी का भी हो सकता है। प्रसंगवश जिस शबनम की चर्चा हो रही है वो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले से ताल्लुक रखती है , फिलहाल इसी जिले के रामपुर जेल में बंद है और इसी राज्य के मथुरा जिले की जेल में इस शबनम को फांसी के तख्ते से लटका कर सजा – ए- मौत देने की तैयारी चल रही है।
फांसी दिन अभी तय नहीं हुआ है लेकिन जब जिला अदालत से लेकर , उच्च न्यायालय , सर्वोच्च न्यायालय और यहाँ तक कि राष्ट्रपति कार्यालय से भी शबनम को फांसी न दिए जाने की अपील ठुकराई जा चुकी हों तब आज नहीं तो कल शबनम को फांसी तो होनी ही है। यह काम जब भी हो , होगा जरूर और किसी महिला अपराधी को फांसी पर चढ़ाए जाने का यह काम देश में पहली बार होगा। शबनम को फांसी के तख्ते से उसकी किस्मत के अलावा और कोई भी नहीं बचा सकता क्योंकि उसने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिल कर अपने ही सात परिजनों की कुल्हाड़ी से काट कर जघन्य ह्त्या करने का महान पाप किया था। न्याय के सन्दर्भ कहा भी जाता है कि अपराधी का कोई धर्म नहीं होता , उसकी कोई जाति नहीं होती और उसका कोई लिंग भी नहीं होता। पुरुष भी अपराध करता है और महिला भी और ये दोनों ही किसी भी धर्म , जाति और क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले हो सकते हैं। ये जो भी हों अपराध करते हैं तो अपराधी हैं और अपराध साबित होने पर दोषी करार दे दिए जाते हैं तो सामान रूप से सजा के हक़दार भी हैं।
शबनम भी फिलहाल अदालत की नजर में जघन्य अपराधी हैं और सजा तो मिलनी ही है। सब कुछ पूर्व निर्धारित योजना के हिसाब से ही चलता रहा तो शबनम को अपने प्रेमी सलीम के साथ ही फांसी दी जायेगी लेकिन अलग – अलग जेलों में। शबनम को फांसी पर चढ़ाने की तैयारी मथुरा जेल में की जा रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश में मथुरा ही एक ऐसी जेल है जहां महिला कैदियों को फांसी पर चढ़ाने का इंतजाम है लेकिन अभी तक किसी महिला को फांसी दी नहीं गई है।
इसे भी एक अद्भुत संयोग ही कहा जाएगा की मिथकीय मान्यता के अनुसार जिस मथुरा की जेल में द्वापर युग में देवकी के गर्भ से कृष्ण का जन्म हुआ था, उसी मथुरा की जेल में ही किसी महिला कैदी को फांसी के तख्ते से लटका कर सजा ए – मौत भी दी जायेगी। शबनम को फांसी देने के इस काम को अंजाम देने की तैयारियों सिलसिले में ही निर्भया के दोषियों को फंदे से लटकाने वाले पवन जल्लाद कई बार मथुरा जेल के इस ख़ास महिला फासी घर का निरीक्षण भी कर चुके हैं।शबनम को फांसी पर चढ़ाने के लिए अब सिर्फ वारंट जारी होने का ही इन्तजार है। तैयारियां पूरी हो चुकी हैं यहाँ तक कि फांसी देने के लिए बिहार के बक्सर से एक ख़ास तरह की रस्सी भी इस काम के लिए मांगा ली गई है। अमरोहा की शबनम का किस्सा कुछ इस तरह का है कि उत्तर प्रदेश केअमरोहा जिले के हसनपुर क्षेत्र के गांव बावनखेड़ी के शिक्षक शौकत अली की इकलौती बेटी शबनम के सलीम के साथ प्रेम संबंध थे। सूफी परिवार की शबनम ने अंग्रेजी और भूगोल में एमए किया था। उसके परिवार के पास काफी जमीन थी। वहीं सलीम पांचवीं फेल था और पेशे से एक मजदूर था। इसलिए दोनों के संबंधों को लेकर परिजन विरोध कर रहे थे। शबनम ने 14 अप्रैल, 2008 की रात अपने प्रेमी के साथ मिलकर ऐसा खूनी खेल खेला कि सुनकर पूरा देश हिल गया था। शबनम ने अपने माता-पिता और 10 माह के भतीजे समेत परिवार के सात लोगों को पहले बेहोश करने की दवा खिलाई। बाद कुल्हाड़ी से काटकर मार डाला था।इस पूरे मामले में कई तरह की बातें की गईं आज भी बातों का यह सिलसिला जारी है लेकिन एक बात पर किसी का ध्यान नहीं गया कि शबनम ने ऐसा कठोर कदम क्यों उठाया कि उसे अपने ही परिजनों की हत्या करने पर विवश होना पड़ा। ऐसा कदम कोई भी इंसान तभी उठाता है जब वह खुद परिजनों के तानों से तंग आ चुका होता है और उसे या तो खुद अपनी जान लेने या फिर परिजनों की हत्या करने जैसे कदम उठाने को मजबूर होना पड़ता है ।शबनम के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा।
मथुरा की जिस जेल में शबनम को फांसी देने की तैयारियां चल रही हैं वहाँ प्रदेश के इस इकलौते महिला फांसी घर का निर्माण आज से करीब डेढ़ सौ साल पहले कराया गया था लेकिन अभी तक किसी महिला को फांसी दी नहीं गई है अगर शबनम को फांसी देने का मामला परवान चढ़ा तो किसी महिला को फांसी देने का यह पहला मामला भी होगा। वैसे शबनम देश की इकलौती महिला कैदी नहीं हैं जो फांसी पर चढ़ाए जाने का इन्तजार कर रही हैं। शबनम जैसी देश की तीन और महिला कैदी हैं जिनको फांसी होनी है। देखना यह है कि इनमें किसे पहले फांसी पर चढ़ाया जाता है। शबनम के अलावा ऐसी एक महिला हरियाणा की जेल में बंद है और दो बहने महाराष्ट्र की जेल में इन चारों में जिसे भी फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया जाएगा उसे ही आजादी के बाद सूली पर चढ़ा दी गई पहली महिला का दर्जा मिल जाएगा। इनमें हरियाणा की सोनिया और महाराष्ट्र की रेणुका और सीमा में से कोई भी हो सकती है। हरियाणा की सोनिया ने भी शबनम की तरह अपने पिता समेत आठ लोगों निर्मम हत्या की थी सोनिया के पिता हिसार के विधायक रेलूराम थे। सोनिया ने अपने पति संजीव के साथ मिल कर संपत्ति के लालच में 23 अगस्त 2001 को अपने पिता मिलकर रेलूराम व उसके परिवार के आठ लोगों की हत्या कर दी थी। जिसके बाद 2004 को सेशन कोर्ट ने इन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। जिसे बाद में 2005 को हाई कोर्ट उम्रकैद में बदल दिया था। बाद में 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने वापस से सेशन कोर्ट की सजा बरकरार रखने का फैसला दिया। समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद सोनिया व संजीव ने राष्ट्रपति कार्यालय से भी दया की अपील की थी। वहाँ से भी उनकी याचिका ठुकराई जा चुकी है।
उधर, पुणे की यरवदा जेल में रेणुका और सीमा दो बहनें कई मासूमों की हत्या के आरोप 23 साल से बंद हैं। ये वही जेल है जहां कसाब को फांसी दी गई थी, पुणे की इसी जेल में फिल्म अभिनेता संजय दत्त भी लम्बे अरसे तक बंद रहे हैं ।
सजा – ए – मौत का इन्तजार कर रही इन दोनों बहनों में रेणुका बड़ी हैं और सीमा छोटी। इन दोनों ने 42 बच्चों की हत्या की है। इन हत्याओं मे इन दोनों की मां अंजना गावित भी दोषी थी। लेकिन उसकी मौत जेल में ही एक बीमारी के चलते कुछ वक्त पहले हो चुकी है। इन दोनों कैदियों की मां अंजना गावित मूलतः नासिक की रहने वाली थी। वहीं एक ट्रक ड्राइवर से प्यार में आकर उसी के साथ भाग कर पुणे आ गई। कुछ दिन साथ में रहने के बाद, उसकी रेणुका बेटी हुई जिसके बाद प्रेमी ट्रक ड्राइवर पति ने अंजना को छोड़ दिया। रेणुका सड़क पर आ गई। एक साल बाद वो एक रिटायर्ड सैनिक मोहन गावित से शादी कर ली। जिससे उसकी दूसरी बेटी सीमा पैदा हुई कुछ दिन बाद मोहन ने अंजना को छोड़ दिया। इसे बच्चियों के साथ सड़क पर आने के बाद वह चोरियां कर पेट पालने लगी। इसे एक विडम्बना नहीं तो और क्या कहा जाएगा कि सालों से जेल की कोठरियों में रह कर सजा -ए – मौत का इन्तजार करने वाली इन सभी महिलाओं को समाज ने आखिर नफरत के सिवा और दिया ही क्या ? उल्लेखनीय है की भारतीय दंड विधान में फांसी की सजा को रेयेरेस्ट ऑफ़ थे रेयरेस्ट की श्रेणी में रखा गया है। मतलब यह कि जघन्य अपराधी को ही यह सजा दी जाती है। दुनिया के कई देशों में तो फांसी देने की सजा का प्रावधान ही नहीं है।
ऐसे में किसी महिला अपराधी को फांसी देना अपने आप में आश्चर्जनक बात है। देखना होगा की भारतीय समाज इस पर कैसी प्रतिक्रिया देता है। वैसे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च से महज तीन सप्ताह ( 21 दिन )पहले किसी महिला अपराधी को फांसी के तख्ते पर लटकाए जाने की खबर आना भी एक विचित्र संयोग ही कहा जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और तक्षकपोस्ट के Counsulting Editor है।) पोस्ट की सभी सामग्री पर तक्षकपोस्ट का एकाधिकार है।
बेहतरीन जानकारी