लोकतंत्र में कई बार सरकार ही विपक्ष को अपने खिलाफ मुद्दा थमा कर परेशानी में फंस जाती है। इजरायल के पेगासस स्पाईवेयर (जासूसी उपकरण) मामले को कुछ इसी तरह के अंदाज में देखा जा सकता है। यही कारण है कि इस वजह से संसद के मॉनसून सत्र की पाहले सप्ताह कार्रवाई सुचारू रूप से संपन्न नहीं हो सकी। इस मुद्दे पर विपक्ष के हंगामे के चलते विगत 19 और 20 जुलाई 2021 संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा में कोई विशेष कामकाज नहीं हो सका था और संसद के दोनों ही सदन निर्धारित समय से कई घंटे पहले ही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिए गए थे।
विपक्ष के इस हमले से सरकार पेसोपेस में है कि इस मामले से निपटा कैसे जाए। संसद में किसी मुद्दे पर एकाध दिन हंगामा होना तो सामान्य बात कही जा सकती है लेकिन जब लगातार एक ही विषय को लेकर विपक्ष हमलावर रहे तो इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता। यह एक गंभीर मामला है क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष के नेताओं , पत्रकारों और सामाजिक सरोकार वाले बुद्धिजीवियों के फ़ोन टेप करने और जासूसी करवाने के मामले गंभीर ही कहे जायेंगे। कम्युनिस्ट व्यवस्था वाले चीन और पुराने सोवियत संघ के देशों में तो प्रतिद्वंदियों की जासूसी करना आम बात मानी जाती है।
ऐसे व्यवस्था वाले देशों में पार्टी और सरकार के प्रति वफादार बनने की कोशिश में एक परिवार के ही लोग अपने ही परिवार के दूसरे सदस्यों की जासूसी करने से बाज नहीं आते लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों में सरकार भी खुलेआम ऐसे काम नहीं करती इसलिए जब कभी ऐसी कोई घटना होती है तो उसका संसद और संसद के बाहर हर जगह विरोध होता है। यही भारत में भी हो रहा है। विपक्ष के इसी विरोध के चलते संसद के मानसून सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को भी लोकसभा की कारवाई तो शुरू होते ही ठप्प हो गई थी , राज्यसभा में भी स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती।
विपक्ष ने इस पूरे माले की जांच के लिए संसद की संयुक्त जांच समिति गठित करने की मांग भी शुरू कर दी थी। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने इस आशय की मांग की है जिसका शिव सेना के सांसदों ने समर्थन किया है। संसद की संयुक्त जांच समिति गठित करने की मांग के साथ ही विपक्ष के सांसदों ने इस्रायली सॉफ्टवेयर की खरीद को लेकर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
विपक्ष के शशि थरूर समेत अनेक नेता इस मामले में सरकार से जवाब मांग रहे हैं तो सत्तापक्ष के जगदम्बिका पाल जैसे कई सांसदों ने विपक्ष पर संसद न चलने देने का आरोप भी लगा
दिया .. सत्तापक्ष के इन सांसदों का कहना है कि विपक्ष चाहता ही नहीं है कि संसद चले इसलिए किसी न किसी बहाने संसदीय कामकाज में विघ्न पैदा करने में लगा रहता इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश की निगरानी में इस मामले की पड़ताल के लिए उच्च स्तरीय समिति के गठन की मांग भी सरकार से की है ।
इस तरह की गतिविधियों के साथ ही तृणमूल कांग्रेस ने इजरायली कंपनी के सॉफ्टवेयर पेगासस उपकरण से कराई गई इस जासूसी की घटना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का सिलसिला भी शुरू कर दिया है ..प्रसंगवश एक बात यह भी उल्लेखनीय है कि तकनीकी विशेषज्ञों ने आज से पांच साल पहले ही इस उपकरण के खतरों की जानकारी उपलब्ध करा दी थी।
2016 में उपलब्ध करवा दिया गया था, एक जानकारी के मुताबिक पेगासस को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा बताया था। हैरानी की बात है कि खतरे की यह जानकारी मिलने के बाद भी कथित रूप से जासूसी करने के लिए इस सॉफ्टवेयरका उपयोग किया गया। इस सॉफ्टवेयर की कीमत को लेकर भी सवाल खड़े किए गए हैं .. जानकारी के मुताबिक़ पेगासस का यह सॉफ्टवेयर बहुत महंगा है और किसी व्यक्ति के लिए 70लाख रुपये की कीमत वाले इस सॉफ्टवेयर को खरीद पाना संभव नहीं है। इसलिए इस्रायल की यह कंपनी भी अपना उपकरण सरकारों को ही बेचती है। इस सॉफ्टवेयर की कीमत और केवल सरकारों को ही इसे बेचने की नीति का परिणाम इस रूप में देखने को मिला कि साल 2013 में एनएसओ ग्रुप नामक जो कंपनी साल में 4 करोड़ अमेरिकी डालर की कमाई करती थी उसकी कमाई दो साल में ही चार गुना बढ़ कर करीब 16 करोड़ डालर हो गई थी .. इस कंपनी ने सबसे पहले अरब देशों में काम कर रहे कार्यकर्ताओं के आई फ़ोन की जासूसी करने का सिलसिला शुरू किया था। ताजा जानकारी के मुताबिक वर्तमान में 40 देशों में इसके 60 ग्राहक हैं।
ऐसा भी नहीं है की पेगासस के माध्यम से भारत में पहली
बार जासूसी की कथा लिखी जा रही हो। इससे पहले 2019 में
भी इस तरह का एक प्रकरण काफी चर्चित हुआ था। उस साल कांग्रेस के दिग्गज नेता आनंद शर्मा और जयराम रमेश भी इस मामले को लेकर सुर्ख़ियों में आये थे। मामला यह था कि सरकार ने इस्रायल से पेगासस नामक हेकिंग सॉफ्टवेयर खरीदा था
तब यह तो पता नहीं चल सका था कि वास्तव में ऐसा कोई सॉफ्टवेयर.इस्रायल से खरीदा था या नहीं लेकिन यह बात काफी हद तक सामने आ गई थी कि सरकार ने इस उपकरण के माध्यम से करीब सौ नामचीन लोगों की व्हाटसअप के जरिये जासूसी जरूर की थी। दो साल बाद ही जासूसी की जड़ में लिए जाने वाले लोगों की संख्या में भी दो गुने से ज्यादा का इजाफा हो
गया है। इस पृष्ठभूमि में विपक्ष अब नए सिरे से यह सवाल करने को मजबूर हुआ है कि अगर सरकार ने करीब दो हजार लोगों की जासूसी करने के लिए पेगासस के उपकरण का इस्तेमाल किया है तो उसे इस मद की खरीद में कितने रुपये खर्च करने पड़े हैं।
इस सवाल का सामना करते ही सरकार बैकफुट पर आ गई। अतीत के अनुभवों से सबक लेते हुए विपक्ष ने संसद के मौजूदा सत्र के दौर में सरकार को दोनों सदनों में घेर कर रखने में सफलता हासिल की है। विपक्ष के हमलों से बचने के लिए सरकार और सरकार के पूर्व और मौजूदा सूचना और सूचना तकनीक मंत्रियों रविशंकर प्रसाद और वैष्णव के पास यह कहने के सिवाय और कोई चारा ही नहीं रह गया था की उनकी जानकारी के हिसाब से सरकार ने किसी भी गैरकानूनी तरीके से किसी की जासूसी नहीं की। मतलब यह की जासूसी तो की गयी लेकिन इस तरीके से नहीं जिस तरीके का उल्लेख संसद में किया जा रहा है। शायद इसीलिए सरकार ने संसद के सदन पटल पर इस सॉफ्टवेयर की खरीद को लेकर पूछे गए विपक्ष के किसी भी सवाल का औपचारिक जवाब देना उचित नहीं समझा।