वाराणसी की एक अदालत ने हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी मस्जिद के सीलबंद तहखाने के अंदर पूजा करने की अनुमति दे दी है। अदालत के आदेश के अनुसार, हिंदू श्रद्धालु अब वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर प्रतिबंधित क्षेत्र ‘व्यास का तहखाना’ में प्रार्थना कर सकते हैं। अदालत ने सुनवाई के दौरान जिला प्रशासन को भक्तों द्वारा की जाने वाली ‘पूजा’ के लिए आवश्यक व्यवस्था करने का भी निर्देश दिया और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को इसके लिए एक पुजारी को नामित करने के लिए कहा।
इस बीच सुबह-सुबह काफी संख्या में लोग पूजा के लिए ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पहुंचे। कोर्ट का आदेश आने के बाद रातोरात तहखाने से बैरिकेडिंग हटा दी गई थीं। इसके बाद तड़के ही पूजा के लिए लोग जुटने लगे। पूजा की शुरुआत कड़े प्रशासनिक सुरक्षा घेरे में शुरू हुई। भारी फोर्स की मौजूदगी में श्रद्धालु व्यास तहखाने की ओर जा रहे हैं और पूजा-अर्चना कर रहे हैं। काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड की तरफ से पूजा करवाई जा रही है।
हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, “हिंदू पक्ष को ‘व्यास का तहखाना’ में प्रार्थना करने की अनुमति दी गई। जिला प्रशासन को 7 दिनों के भीतर व्यवस्था करनी होगी। अब सभी को पूजा करने का अधिकार होगा।”
विष्णु शंकर जैन ने वाराणसी अदालत के आदेश की तुलना 1983 में न्यायमूर्ति केएम मोहन द्वारा सुनाए गए फैसले से की, जिन्होंने तत्कालीन विवादित राम मंदिर-बाबरी मस्जिद परिसर के बंद दरवाजे खोलने का आदेश दिया था।
वकील विष्णु जैन ने कहा, “मैं वाराणसी कोर्ट के हालिया आदेश को 1983 में जस्टिस कृष्ण मोहन पांडे द्वारा दिए गए आदेश के समान ऐतिहासिक देखता हूं, जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के ताले खोलने का आदेश दिया था।”
गोरखपुर निवासी जेएम पांडे पहले न्यायाधीश थे जिनके आदेश पर राम मंदिर का ताला पूजा के लिए खोला गया था।
इस बीच, इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि वह वाराणसी अदालत के आदेश से निराश हैं। उन्होंने कहा कि मामले में ऊपरी अदालत में जाने का विकल्प खुला है।
इस केस में हिंदू पक्ष का दावा है कि नवंबर 1993 से पहले व्यास तहखाने में पूजा-पाठ को उस वक़्त की प्रदेश सरकार ने रुकवा दिया था जिसको शुरू करने का पुनः अधिकार दिया जाए। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को अस्वीकार करते हुए हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा-पाठ करने का अधिकार दे दिया है।
वाराणसी अदालत का आदेश चार महिला वादी द्वारा मस्जिद के सीलबंद हिस्से की खुदाई और सर्वेक्षण की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के कुछ दिनों बाद आया है। हिंदू पक्ष के अनुसार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट से पता चला है कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण से पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था, जिसके बाद शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी।
अपनी याचिका में, महिलाओं ने तर्क दिया था कि ‘शिवलिंग’ की सटीक प्रकृति का निर्धारण इसके आसपास की कृत्रिम/आधुनिक दीवारों/फर्शों को हटाने और खुदाई द्वारा और अन्य वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके पूरे सील क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के बाद किया जा सकता है।
याचिका में कहा गया था, “यह प्रस्तुत किया गया है कि एक उचित और प्रभावी जांच के लिए, यह आवश्यक है कि एएसआई को शिवलिंगम के आसपास की कृत्रिम/आधुनिक दीवारों/फर्श को हटाने के बाद वस्तु को कोई नुकसान पहुंचाए बिना, शिवलिंगम (मुसलमानों द्वारा एक फव्वारा के रूप में दावा किया जा रहा है) के आसपास आवश्यक खुदाई करने और अन्य वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है ताकि शिवलिंगम और संबंधित की प्रकृति का निर्धारण किया जा सके।
कई हिंदू कार्यकर्ताओं ने चुनौती दी है कि विवादित ज्ञानवापी मस्जिद स्थल पर पहले से एक मंदिर मौजूद था और 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर इसे ध्वस्त कर दिया गया था। मुस्लिम पक्ष ने इस दावे को खारिज कर दिया था।