भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष के रूप में बृज भूषण शरण सिंह के वफादार संजय सिंह की नियुक्ति के बाद ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री कर्तव्य पथ के फुटपाथ पर छोड़ दिया है। पुनिया ने कर्तव्यपथ पर अपना पद्मश्री छोड़ने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वह अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं मिल सके, जबकि उन्होंने जोर देकर कहा कि वह पदक वापस घर नहीं ले जाएंगे।
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पुनिया ने कहा, “जैसा कि मैंने पहले कहा है हम अपनी बेटियों और बहनों के लिए लड़ रहे थे। मैं उन्हें न्याय नहीं दिला सका। इस वजह से मुझे लगता है कि मैं इस सम्मान के लायक नहीं हूं। मैं अपना पुरस्कार लौटाने के लिए यहां आया था, हालांकि, मैं पीएम से नहीं मिल सका क्योंकि मेरे पास अपॉइंटमेंट नहीं था। पीएम का व्यस्त कार्यक्रम है। इसलिए मैं पीएम को लिखे पत्र पर अपना पुरस्कार रख रहा हूं। मैं यह पदक अपने घर नहीं ले जाऊंगा।”
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इससे पहले दिन में बजरंग पुनिया ने संजय सिंह के भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष चुने जाने के विरोध में पद्मश्री लौटाने के अपने फैसले की घोषणा की थी। बजरंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित एक लंबा पत्र साझा करने के लिए एक्स (पहले ट्विटर) का सहारा लिया। ओलंपिक पदक विजेता ने पत्र में महिला पहलवानों को न्याय न मिलने को कारण बताते हुए पुरस्कार लौटाने के अपने फैसले की घोषणा की।
बजरंग पुनिया ने लिखा, “मैं अपना पद्मश्री पुरस्कार प्रधानमंत्री को लौटा रहा हूं। यह कहने के लिए यह एक पत्र है। यही मेरी स्टेटमेंट है।”
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बजरंग पूनिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए खत में लिखा “माननीय प्रधानमंत्री जी, उम्मीद है कि आप स्वस्थ होंगे। आप देश की सेवा में व्यस्त होंगे। आपकी इस भारी व्यस्तता के बीच आपका ध्यान हमारी कुश्ती पर दिलवाना चाहता हूं। आपको पता होगा कि इसी साल जनवरी महीने में देश की महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ पर काबिज बृजभूषण सिंह पर सेक्सुएल हरासमैंट के गंभीर आरोप लगाए थे, जब उन महिला पहलवानों ने अपना आंदोलन शुरू किया तो मैं भी उसमें शामिल हो गया था।
आंदोलित पहलवान जनवरी में अपने घर लौट गए, जब उन्हें सरकार ने ठोस कार्रवाई की बात कही। लेकिन तीन महीने बीत जाने के बाद भी जब बृजभूषण पर एफआईआर तक नहीं की तब हम पहलवानों ने अप्रैल महीने में दोबारा सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया ताकि दिल्ली पुलिस कम से कम बृजभूषण सिंह पर एफआईआर दर्ज करे, लेकिन फिर भी बात नहीं बनी तो हमें कोर्ट में जाकर एफआईआर दर्ज करवानी पड़ी। जनवरी में शिकायतकर्ता महिला पहलवानों की गिनती 19 थी जो अप्रैल तक आते आते 7 रह गई थी, यानी इन तीन महीनों में अपनी ताकत के दम पर बृजभूषण सिंह ने 12 महिला पहलवानों को अपने न्याय की लड़ाई में पीछे हटा दिया था।
आंदोलन 40 दिन चला। इन 40 दिनों में एक महिला पहलवान और पीछे हट गई। हम सब पर बहुत दबाव आ रहा था। हमारे प्रदर्शन स्थल को तहस नहस कर दिया गया और हमें दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया गया और हमारे प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी। जब ऐसा हुआ तो हमें कुछ समझ नहीं आया कि हम क्या करें। इसलिए हमने अपने मेडल गंगा में बहाने की सोची। जब हम वहां गए तो हमारे कोच साहिबान और किसानों ने हमें ऐसा नहीं करने दिया। उसी समय आपके एक जिम्मेदार मंत्री का फोन आया और हमें कहा गया कि हम वापस आ जाएं, हमारे साथ न्याय होगा। इसी बीच हमारे गृहमंत्री जी से भी हमारी मुलाकात हुई, जिसमें उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वे महिला पहलवानों के लिए न्याय में उनका साथ देंगे और कुश्ती फेडरेशन से बृजभूषण, उसके परिवार और उसके गुर्गों को बाहर करेंगे। हमने उनकी बात मानकर सड़कों से अपना आंदोलन समाप्त कर दिया, क्योंकि कुश्ती संघ का हल सरकार कर देगी और न्याय की लड़ाई न्यायालय में लड़ी जाएगी, ये दो बातें हमें तर्कसंगत लगीं।
लेकिन बीती 21 दिसंबर को हुए कुश्ती संघ के चुनाव में बृजभूषण एक बार दोबारा काबिज हो गया है। उसने स्टेटमैंट दी कि “दबदबा है और दबदबा रहेगा।” महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोपी सरेआम दोबारा कुश्ती का प्रबंधन करने वाली इकाई पर अपना दबदबा होने का दावा कर रहा था। इसी मानसिक दबाव में आकर ओलंपिक पदक विजेता एकमात्र महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से सन्यास ले लिया। हम सभी की रात रोते हुए निकली। समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं, क्या करें और कैसे जिएं। इतना मान-सम्मान दिया सरकार ने, लोगों ने। क्या इसी सम्मान के बोझ तले दबकर घुटता रहूं।
साल 2019 में मुझे पद्मश्री से नवाजा गया। खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। जब ये सम्मान मिले तो मैं बहुत खुश हुआ। लगा था कि जीवन सफल हो गया। लेकिन आज उससे कहीं ज्यादा दुखी हूं और ये सम्मान मुझे कचोट रहे हैं। कारण सिर्फ एक ही है, जिस कुश्ती के लिए ये सम्मान मिले उसमें हमारी साथी महिला पहलवानों को अपनी सुरक्षा के लिए कुश्ती तक छोड़नी पड़ रही है। खेल हमारी महिला खिलाड़ियों के जीवन में जबरदस्त बदलाव लेकर आए थे। पहले देहात में यह कल्पना नहीं कर सकता था कि देहाती मैदानों में लड़के-लड़कियां एक साथ खेलते दिखेंगे। लेकिन पहली पीढ़ी की महिला खिलाड़ियों की हिम्मत के कारण ऐसा हो सका। हर गांव में आपको लड़कियां खेलती दिख जाएंगी और वे खेलने के लिए देश विदेश तक जा रही हैं।
लेकिन जिनका दबदबा कायम हुआ है या रहेगा, उनकी परछाई तक महिला खिलाड़ियों को डराती है और अब तो वे पूरी तरह दोबारा काबिज हो गए हैं, उनके गले में फूल-मालाओं वाली फोटो आप तक पहुंची होगी। जिन बेटियों को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की ब्रांड अंबेसडर बनना था उनको इस हाल में पहुंचा दिया गया कि उनको अपने खेल से ही पीछे हटना पड़ा। हम “सम्मानित” पहलवान कुछ नहीं कर सके। महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं “सम्मानित” बनकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाउंगा। ऐसी जिंदगी कचोटेगी ताउम्र मुझे। इसलिए ये “सम्मान” मैं आपको लौटा रहा हूं।”
क्या है पूरा मामला?
इसी साल जनवरी के महीने में बजरंग पूनिया सहित देश के कई बड़े पहलवानों ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ धरना शुरू कर दिया था। पहलवानों ने बृजभूषण सिंह और उनके समर्थकों पर महिला पहलवानों के यौन शोषण और मनमानी के आरोप लगाए थे।
गुरुवार, 21 दिसंबर को नई दिल्ली में हुए बहुप्रतीक्षित डब्ल्यूएफआई चुनावों में संजय सिंह ने राष्ट्रमंडल खेलों की पूर्व स्वर्ण पदक विजेता अनीता श्योराण को 7 के मुकाबले 40 वोटों से हराया। साक्षी मलिक, पुनिया और विनेश फोगाट ने संजय सिंह के चुनाव के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया, जिसके दौरान मलिक ने विरोध में खेल छोड़ने के अपने इरादे की घोषणा की।
मलिक ने कहा, “हमने दिल से लड़ाई लड़ी, लेकिन अगर बृज भूषण जैसे व्यक्ति, उनके बिजनेस पार्टनर और करीबी सहयोगी को डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है, तो मैं कुश्ती छोड़ रही हूं। आज से आप मुझे मैट पर नहीं देखेंगे।”
मलिक कार्यक्रम स्थल छोड़ने से पहले राष्ट्रीय राजधानी में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए रो पड़ी। ये चुनाव, जो मूल रूप से जून के लिए निर्धारित थे, देश भर में कुश्ती को नियंत्रित करते हैं। पुनिया और मलिक ने डब्ल्यूएफआई चुनावों पर चर्चा के लिए इस महीने की शुरुआत में राष्ट्रीय राजधानी में केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मुलाकात की थी।
देश के शीर्ष पहलवानों ने पूर्व डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ 5 महीने तक लंबा विरोध प्रदर्शन किया था। उन्होंने बीजेपी सांसद पर महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था।