शुक्रवार को लोकसभा में एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा को लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया। रिपोर्ट में “कैश-फॉर-क्वेरी” मामले में उनके निष्कासन की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट पर चर्चा के बाद ध्वनि मत से वोटिंग हुई। इस बीच संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव के पारित होने से पहले विपक्ष ने सदन से वाक आउट कर दिया। इसके बाद रिपोर्ट मंजूर हो गई। एथिक्स कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में महुआ के खिलाफ आरोपों को गंभीर बाताया था और कार्रवाई की मांग की थी। साथ ही संसद सदस्यता रद्द करने की मांग की थी।
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लोकसभा शुक्रवार को तीखी बहस का मंच बन गई थी क्योंकि सदस्यों ने तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के निष्कासन की सिफारिश करने वाली आचार समिति की रिपोर्ट पर चर्चा की। मोइत्रा को जवाब देने की अनुमति नहीं दी गई। उन्हें निष्कासन की सिफारिश करने वाली पैनल रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान सदन में बोलने की अनुमति नहीं दी गई।
104 पन्नों की रिपोर्ट की लंबाई का हवाला देते हुए, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से अनुरोध किया है कि वह सांसदों को रिपोर्ट की सामग्री को समझने के लिए पर्याप्त समय दें। एक औपचारिक अनुरोध में, उन्होंने 3 से 4 दिनों की समय-सीमा प्रस्तावित की, ताकि सदस्य चर्चा में शामिल होने से पहले रिपोर्ट पढ़ सकें। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, अगर हमें तीन-चार दिन का समय दिया जाता ताकि हम अपनी बात सही तरीके से रख सकें तो आसमान नहीं टूट पड़ता।
मनीष तिवारी ने आचार समिति की प्रक्रियात्मक निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि प्राकृतिक न्याय के मौलिक सिद्धांतों की अनदेखी की गई है, क्योंकि मोइत्रा को पूरी तरह से अपना बयान देने या अपने आरोप लगाने वाले से जिरह करने की अनुमति नहीं दी गई थी।
तिवारी ने कहा, “कथित ‘आरोपी’ को अपना बयान भी पूरा नहीं देने दिया गया। यह किस तरह की प्रक्रिया है? जिसने आरोप लगाया था, उसे उससे जिरह करने का अधिकार होना चाहिए था… यह आज संसद नहीं है। हम जज और जूरी के रूप में बैठे हैं।”
वहीं टीएमसी सांसद के रूप में अपने निष्कासन के बाद महुआ मोइत्रा ने कहा, “आचार समिति के पास निष्कासित करने की कोई शक्ति नहीं है…यह आपके (बीजेपी) अंत की शुरुआत है। अगर इस मोदी सरकार ने सोचा कि मुझे चुप कराकर वे इससे छुटकारा पा सकते हैं। मैं आपको यह बता दूं कि इस कंगारू कोर्ट ने पूरे भारत को केवल यह दिखाया है कि आपने जो जल्दबाजी और उचित प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है, वह दर्शाता है कि अडानी आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है। और आप किसी को परेशान करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं कि अकेली महिला सांसद को उसे अधीनता के लिए बंद करने के लिए कहा गया।”
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तीखी चर्चा के बीच, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधानसभा को याद दिलाया कि संसद कोई अदालत कक्ष नहीं है और वह न्यायाधीश नहीं बल्कि अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा, ‘सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए अगर सख्त फैसले जरूरी होंगे तो लिए जाएंगे।’
भाजपा सांसद हीना गावित ने 2005 की एक मिसाल का हवाला देते हुए विपक्ष के रुख के खिलाफ तर्क दिया। उन्होंने वर्तमान रिपोर्ट को केवल दो घंटों में पढ़ने का उल्लेख करते हुए सुझाव दिया कि समीक्षा के लिए समय पर्याप्त था।
गावित ने कहा, महुआ ने पैसे लेकर सवाल पूछे. महुआ को अपनी बात रखने का पूरा मौका मिला। मैंने 2 घंटे में पूरी रिपोर्ट पढ़ी। महुआ ने माना है कि उन्होंने अपनी आईडी दिया। हीरानंदानी के बयान दर्ज किए गए हैं। इस घटना की वजह से पूरे सदन और सांसदों की छवि देश और दुनियाभर में खराब हुई है। कोई द्रौपदी का चीरहरण कर रहा है, अलग अलग देवियों का नाम लिया जा रहा है। हम सांसद के नाते यहां बैठते हैं, हम अपने संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधि बैठते हैं, उनसे जुड़े सवाल करते हैं न कि किसी प्राइवेट व्यक्ति से जुड़ा सवाल करने आते हैं।
बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी ने कहा, इसी सदन में पश्चिम बंगाल के सोमनाथ चटर्जी जब स्पीकर थे, तब 10 सांसदों को सदन से निष्कासित किया गया था। जब उनसे पूछा गया कि सांसदों को समय नहीं दिया गया, तब उन्होंने कहा था कि सभी सांसदों को एथिक्स कमेटी के सामने बात रखने का समय दिया गया था। ऐसे में अब अनुमति देने का सवाल उठता नहीं है।
बीजेपी सांसद अपराजिता सारंगी ने कहा, यह विषय बहुत अहम है। यह संवैधानिक प्रक्रियाओं से जुड़ा हुआ मामला है। हम एथिक्स की बात कर रहे हैं। हम सिद्धांतों की बात कर रहे हैं। जब कोई सांसद चुना जाता है, तो वह लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। जब हम इस जिम्मेदारी में चूक करते हैं, तो प्रश्न उठेंगे। जो महुआ ने किया, वो सही था यह गलत हम सब अपने दिल पर हाथ रखकर बोले कि ये सही था या गलत। तीन बैठकें हुईं, इन्हें समुचित समय दिया गया। लेकिन इन्होंने बदतमीजी की, असंवैधानिक शब्दों का इस्तेमाल किया. और बाहर निकल गईं।
कमिटी के अध्यक्ष और भाजपा सांसद विनोद कुमार सोनकर द्वारा अंतिम रूप दी गई आचार समिति की रिपोर्ट को पहले के स्थगन के बाद दोपहर के सत्र के दौरान हंगामे के बीच पेश किया गया। टीएमसी और कुछ कांग्रेस सदस्यों ने रिपोर्ट की प्रतियों की मांग करते हुए सदन के वेल में विरोध प्रदर्शन किया।
टीएमसी के कल्याण बनर्जी ने अपनी सिफारिशों पर किसी भी वोट से पहले रिपोर्ट पर बहस के लिए दबाव डाला, जिससे मोइत्रा को लोकसभा से हटाया जा सकता है। बनर्जी ने कहा, फेयर ट्रायल होना चाहिए। निष्कासन ने पहले महुआ को बोलने का मौका मिलना चाहिए। उन्हें सुने बिना निष्पक्ष जांच कैसे हो सकती है। उन्होंने कहा, ये संवैधानिक उल्लंघन है। हीरानंदानी से पूछताछ नहीं की गई।
मालूम हो कि लोकसभा आचार समिति ने महुआ मोइत्रा के निष्कासन की सिफारिश की थी। पैनल प्रमुख विनोद सोनकर ने कहा था कि एथिक्स पैनल के छह सदस्यों ने टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ आरोप पर रिपोर्ट का समर्थन किया, जबकि चार सदस्यों ने इसका विरोध किया। रिपोर्ट को अपनाने का समर्थन करने वाले पैनल के सदस्य – अपराजिता सारंगी, राजदीप रॉय, सुमेधानंद सरस्वती, परनीत कौर, विनोद सोनकर, हेमंत गोडसे थे। वहीं रिपोर्ट का विरोध करने वालों में दानिश अली, वी वैथिलिंगम, पीआर नटराजन, गिरिधारी यादव शामिल रहे।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने वकील जय अनंत देहाद्राई के माध्यम से तृणमूल कांग्रेस सदस्य के खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष को एक शिकायत भेजी थी, जिसमें उन पर अडानी समूह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के लिए व्यवसायी हीरानंदानी के इशारे पर सदन में प्रश्न पूछने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था।