प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के राजातालाब तहसील में रिंग रोड के किनारे गंजारी गांव बसा है. यह गांव इन दिनों सुर्ख़ियों में है। हो भी क्यों न ? गंजारी में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम प्रस्तावित है। जिसका शिलान्याश करने स्वयं वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 सितम्बर को आ रहे हैं। शिलान्याश कार्यक्रम के लिए पानी लगे खेत (जो रकबा स्टेडियम के अधिगृहित किया गया है) में पंडाल, रास्ता, बिजली आपूर्ति, बैठक दीर्घा, प्रशासन, सुरक्षा घेरा समेत अन्य जरूरी तैयारियों को युद्धस्तर पर पूरा करने में सैकड़ों श्रमिक जुटे हुए हैं. चूकि, स्टडियन प्रस्तावित होने से गंजारी गांव चर्चा में है, लेकिन गंजारी के दलित बस्ती के लोग अपनी बेबसी से परेशान हैं और अपने किस्मत को कोस रहे हैं।

गंजारी में प्रस्तावित स्टेडियम 30.60 एकड़ में बनेगा। जिसके निर्माण पर 451 करोड़ रुपये खर्च होंग। जानकारी के मुताबिक स्टेडियम को 30 महीने में तैयार कर लिया जाएगा। गंजारी स्टेडियम के शिलान्यास समारोह में स्थानीय क्रिकेटरों व खिलाड़ियों के साथ कपिल देव, सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री, सचिन तेंदुलकर, बीसीसीआइ अध्यक्ष रोजर बिन्नी, उपाध्यक्ष राजीव शुक्ल भी आएंगे व इन्हें आमंत्रित किया गया है।

गंजारी स्टेडियम स्थल से थोड़ी ही दूरी पर बस्ती के पहुंच रास्ते से गुजरना किसी खतरे से खाली नहीं है। सफाई और स्वच्छता का आभाव है। पानी और नाबदान निकासी का उचित प्रबंध नहीं है। जहां-तहां कूड़ा सड़ रहा है। सबसे बड़ी परेशानी दलित बस्ती में रहने वाली महिलाओं और नागरिकों को है। कई महिलाएं अपने परिवार समेत मिट्टी-खपरैल व टीन-तिरपाल के कच्चे मकानों में रहने को बेबस हैं। कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिनको उपचार के लिए सरकारी चकित्सा योजना का लाभ नहीं मिल मिल पा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि डबल इंजन की सरकार में तमाम प्रयासों के बाद भी हासिये के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह जा रहे हैं।
बढ़ती मंहगाई, अभिशाप बनी बेरोजगारी और इन मुद्दों पर सत्ता-विपक्ष की चुप्पी का खामियाजा सीधे तौर पर हासिये, पुअर मिडल और मिडल क्लास भुगत रहा है। वैसे तो मानसून की मार और बेरुखी से देश के कई हिस्से कराह रहे हैं। इनसे राजातालाब का गांजरी और हरसोस समेत पड़ोसी गांव अछूता नहीं है। मसलन, गंजारी गांव में प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम की ख़ुशी हजारों ग्रामीणों में साफ़ तौर दिख रही है, लेकिन उनकी बेबसी भी बेपर्दा है। ग्रामीण खेती में घाटे के बोझ तले दबे हैं। वहीं, गंजारी के दलित बस्ती के महिला-पुरुष योजना और विकास कार्यों में शामिल नहीं किये जाने से उदास हैं।
अमरावती, जो दलित बस्ती में रहती हैं। उनका जीवन इनदिनों कर्ज के भंवर में थपेड़े खा रहा है। वह “तक्षकपोस्ट” से कहती हैं कि “तकरीबन दो दशक से एक अदद आवास के लिए मेरा परिवार तरस रहा है। कई बार आवेदन करने के बाद भी आजतक आवास की सुविधा नहीं मिल पाई है। हालात के मारे टीन और तिरपाल के छप्पर में गुजारा करना पड़ा रहा है। रोजगार का कोई स्थाई साधन नहीं है। कभी मजदूर के रूप में काम मिलता है, तो कई कई दिनों खाली बैठना पड़ता है। बारिश, सर्दी और गर्मी में इस छप्पर के नीचे मर-मर के दिन काटने पड़ते हैं।
वह आगे कहती हैं ” मेरे पति बुनकरी का काम करते थे। अब आँख से बहुत कम दिखाई देता है और कई सालों से बीमार हैं। यहाँ घर चलाने को ही पैसे नहीं हैं। उनकी बीमारी और बेबसी हमलोगों से देखी नहीं जाती। इसलिए कर्ज लेकर उनका इलाज कराया जा रहा है। कुछ महीने पहले आयुष्मान कार्ड बनाने वाले आये थे। वे नाम-पता लिखकर और पचास रुपए लेकर चले गए। पता करने पर कहते हैं कि अभी तुमलोगों का कार्ड नहीं आया है। हमलोग कहां जाएं ? किससे अपना दुःख सुनाएं ? ऐसी जिंदगी भी कोई जिंदगी है ? न घर, न सुकून और न ही चैन.” इतना कहते-कहते अमरावती फफक पड़ीं।

राजेश की पत्नी कांता का कच्चा मकान जब-तब ढहने गिरने की स्थिति में हैं। इस जर्जर मकान में रहना किसी खतरे से खाली नहीं है, फिर भी कांता अपने चार बच्चों के साथ रहने को विवश हैं। वह कहती हैं “भैया, काफी समय से इसी हाल में रह रहे हैं। गर्मी और सर्दी को काट लेते हैं, लेकिन बारिश के दिन गुजरना किसी आफत से कम नहीं है। जब घनघोर-मूसलाधार बारिश होती है तो लगता है कि आज मकान हमलोगों के ऊपर ही गिर जाएगा। जिसमें हमलोग दफ़न हो जाएंगे। कई बार प्रधानों को आवास के लिए कहा गया। उन्हें अपनी दुःख-तकलीफ को बताया। लेकिन हमलोगों को आजतक मकान नहीं मिला है। पति दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। उसमें भी उनको रोज काम नहीं मिलता है. जो थोड़ी बहुत आमदनी होती है. उससे नमक-रोटी चलती है. सरकार से मांग है कि हमलोगों को जल्द से जल्द आवास की सुविधा प्रदान किया जाए.”

गंजारी-बीरभानपुर के ही फर्नीचर का काम करने वाले सूर्यबली विश्वकर्मा ने बताया कि “स्टेडियम का निर्माण तो ठीक है, लेकिन गांवों के लोगों के समस्याओं पर सरकार, मंत्री, अधिकारी और विपक्ष की पार्टी को सोचना चाहिए। लगातार दो सालों से खरीफ के सीजन में अनियमित और कम बारिश हो रही है। इससे धान व अन्य फसलों की बुआई-रोपाई में हजारों-हजार किसान पिछड़ गए हैं। लाख हाथ-पैर मारने के बाद भी आमदनी उतनी ही हो रही है, जिससे की परिवार की रोज की जरूरतें पूरी भी नहीं हो पाती है।

दस रुपए की बचत तो बहुत दूर की कौड़ी है। मंहगाई-बेरोजगारी से गाँव के लोगों की हालत खस्ता है। बीरभानपुर-पंचक्रोशी रोड कई महीनों से ख़राब है, ऐसा लगता है किसी को दिख ही नहीं रहा है। या देखना नहीं चाहता है।

कई महिलाओं ने बताया कि, बस्ती में भी हैंडपंप नहीं है। सप्लाई वाले नल लगे हैं, जिनसे धीरे-धीरे पानी तो आता है, लेकिन बिजली कटौती और खराबी होने पर दो-तीन दिन बस्ती की महिलाओं को पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ता है। इनके घर -उनके घर भटकना पड़ता है। कुछ महिलाओं को अभी तक शौचालय नहीं मिले हैं, तो कइयों ने बताया कि चार-पांच साल से लगातार आवास के लिए आवेदन करने के बाद भी उन्हें आवास की सुविधा नहीं मिली है। लिहाजा, वे मिट्टी-खपरैल के कच्चे मकानों पर प्लास्टिक और तिरपाल डालकर जैसे-तैसे बारिश के बचने की जुगत कर जीवन गुजार रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि नागरिकों की मूलभूत जरूरतों में शुमार आवास, स्वच्छता, जल निकासी, पक्का रास्ता, शुद्ध पेयजल आपूर्ति का स्थाई बंदोबस्त और रोजगार की व्यवस्था नहीं होने से गंजारी की दलित बस्ती मुख्यधारा से छिटकी हुई प्रतीत होती है ?
