यूपी के मऊ जिले के घोसी विधानसभा उपचुनाव में एनडीए गठबंधन के भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को इंडिया गठबंधन के सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने 42759 मतों से करारी शिकस्त दे दी है। पूर्वांचल के मऊ जिले में स्थित घोसी विधानसभा के इस उपचुनाव को इंडिया बनाम एनडीए गठबंधन के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा सकता है। इसके साथ ही यह भी कयास लगाए जा रहे है कि भाजपा के अत्यधिक आत्मविश्वास पर घोसी की जनता ने करारा प्रहार भी कर दिया है।
5 सितंबर को हुए इस उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की साख दाव पर लगी हुई थी। इसके साथ ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के प्रभाव का आकलन भी भारतीय जनता पार्टी करना चाहती थी। 8 सितंबर को आये अप्रत्याशित चुनावी परिणाम से यह साबित हो गया कि एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अत्यधिक अंतर्विरोध एवं आत्मविश्वास के कारण भाजपा की लुटिया डूब गई तो दूसरी तरफ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर जिन्हें दिल्ली दरबार से बिना योगी मंत्रिमंडल के कुनबे की सहमति लिए यह चुनाव जितवाने का जिम्मा दिया गया था। दोनों ही इस चुनाव में फेल नजर आए।
मऊ के घोसी में भाजपा खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं दो डिप्टी सीएम समेत कैबिनेट मंत्रियों के साथ – साथ लगभग अपने 20 स्टार प्रचारको के साथ चुनावी मैदान में डटी थी। इसके अलावा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर ने भी अपना दमखम दिखाने का प्रयास किया लेकिन इस उपचुनाव में जनता ने भाजपा के खोखले विकास के वादों,कानून व्यवस्था,रोजगार,महंगाई के मुद्दे पर खुद खड़े होकर सुधाकर सिंह के पक्ष में निर्णय देकर यह साबित कर दिया कि खोखले वादों के दम पर अब आगे भाजपा की राजनीति नही चलेगी।
भाजपा का अंतर्विरोध एवं रार आया सामने:
यूपी के मऊ जिले में स्थित घोसी विधानसभा चुनाव तो सम्पन्न हो गई लेकिन इसके साथ ही सियासी गलियारों में यह हलचल तेज हो गई कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व एवं राज्य इकाई में सबकुछ ठीक नही चल रहा है। वर्ष 2017 में यूपी पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार में भले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हो लेकिन अमित शाह एवं नरेंद्र मोदी यूपी पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहते है। इस कारण कई मुद्दों पर खुद योगी आदित्यनाथ स्वतंत्र निर्णय लेने का प्रयास भले कर रहे हो लेकिन कैबिनेट में मंत्रियों एवं कुछ नौकरशाहों के दिल्ली दरबार कनेक्शन के कारण वे सफल नही हो पा रहे है। क्योंकि यही वे स्रोत है जिसकी सूचनाओं पर दिल्ली दरबार योगी आदित्यनाथ सरकार को नियंत्रित करने का प्रयास करती है। वह चाहे योगी आदित्यनाथ का डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का तालमेल का हो या फिर ऊर्जा मंत्री ए के शर्मा से जुड़ा हुआ हो। ये दोनों ही मंत्री मोदी के सबसे करीबी नेताओं के रूप में जाने जाते है। ओमप्रकाश राजभर का पुनः एनडीए के साथ गठबंधन भी इसी रूप में देखा जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर का योगी आदित्यनाथ के साथ दिली जुड़ाव ना होने के कारण भी अमित शाह ने उन्हें एनडीए में शामिल कर दिया। कयास यह भी लगाए जा रहे थे कि मऊ के घोसी उपचुनाव के बाद भाजपा द्वारा यह निर्णय लेना था कि ओमप्रकाश राजभर को फिर से मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसके पक्ष में नही थे।
इससे हटकर एक बात और भी है कि योगी सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर भी योगी आदित्यनाथ के सबसे विश्वसनीय नेता के रूप स्थापित है। एनडीए गठबंधन में शामिल होने पर अनिल राजभर भी ओमप्रकाश राजभर का खुलेआम विरोध करते दिखे। इससे इनकार नही किया जा सकता कि ओमप्रकाश राजभर के एनडीए गठबंधन में शामिल होने के बाद ओमप्रकाश राजभर से अनिल राजभर की दिक्कतें बढ़ेंगी जो खुद योगी आदित्यनाथ नही चाहते थे। यही कारण है कि अनिल राजभर खुद को राजभर समाज का नेता साबित करने के लिए ओमप्रकाश राजभर के विरुद्ध बयान देते रहे।
आगामी लोकसभा चुनाव में बिगड़ सकता है भाजपा का खेल:
इंडिया गठबंधन के उत्साह एवं भाजपा के अंतर्विरोधों के कारण ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा में खलबली मचना तय है। क्योंकि यूपी की 80 लोकसभा सीट के रास्ते ही केंद्र सरकार का भविष्य तय होता है। भाजपा में प्रधानमंत्री मोदी के बाद ,हिंदुत्व चेहरा योगी आदित्यनाथ को माना जाता है यह भी कयास लग रहे है कि योगी आदित्यनाथ के बढ़ते ग्राफ से मोदी और शाह की जोड़ी सशंकित है। हिंदुत्ववादी संगठन योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है जो मोदी और अमित शाह के लिए किसी भी ख़तरे की घंटी से कम नही है। योगी आदित्यनाथ ने अपनी प्रतिभा एवं आर एस एस में पैठ का लोहा उस समय भी मनवाया जब केशव प्रसाद मौर्य एवं बाद में मनोज सिन्हा का नाम आने के बावजूद खुद को यूपी के मुख्यमंत्री पद पर आसीन कराया ,जो केशव प्रसाद मौर्य को कही से भी रास नही आया। समय- समय पर इन दोनों नेताओं योगी आदित्यनाथ एवं केशव प्रसाद मौर्य का भी टकराव सामने आया लेकिन मोदी और शाह ने समझा-बुझाकर किसी तरह मामले को दबाया।
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और प्रधानमंत्री मोदी के बीच सबकुछ ठीक नही है इसका भी प्रमाण स्व० अटल बिहारी बाजपेयी के पुण्यतिथि के कार्यक्रम में भी दिख गया, जो मीडिया में चर्चा का विषय बना रहा। केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जो भाजपा के संकट मोचक है उन्हें भी 2014 के बाद 2019 में भी प्रधानमंत्री बनने का अवसर नही मिला। उस समय हालांकि इन नेताओं ने इस सम्बंध में खुलकर कही कुछ नही बोला लेकिन नितिन गडकरी कही-कही कार्यक्रमों में अपनी ही सरकार की चुटकियां ले रहे है जिससे यह प्रतीत होता है कि भाजपा के अंदरखाने में सबकुछ ठीक नही चल रहा है और सभी को अवसर की तलाश है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित ना हो पाने की स्थिति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कोई बड़ा स्टैंड ले सकते है जिसका नुकसान भाजपा को होना तय माना जा रहा है।
लेखक: राजीव कुमार