भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने निर्वाचन आयोग की टीम के संग आइजोल पहुँच चुनाव तैयारी का जायजा लिया है। टीम ने मुख्य सचिव रेनू शर्मा,पुलिस प्रमुख और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। चुनाव अधिसूचना जारी होते ही आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी। इस बार भी वोटिंग सभी सीटों पर एक ही दिन होने की संभावना है। पिछली बार 28 नवंबर को वोटिंग और 11 दिसंबर को काउंटिंग हुई थी। मतदान 80.15 हुआ था।
लोकसभा में मिजोरम की एकमात्र सीट कांग्रेस के सीएल रुआला की है। 40 सीटों की विधानसभा का कार्यकाल 17 दिसंबर तक है। मौजूदा मुख्यमंत्री पू जोरमथांगा के मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के 27 विधायाक हैं। एमएनएफ ने दो बार मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के पू ललथनहवला की सरकार गिराकर 1998 में सत्ता संभाली थी। अभी विपक्षी ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के 6 और कांग्रेस के 5 विधायक हैं।
भाजपा के एकमात्र विधानसभा सदस्य और दो बार के विधायक डॉक्टर बुद्धाधन चकमा ने सक्रिय राजनीति से हट जाने की घोषणा की है। भाजपा उनकी बदौलत ही 2018 में पहली बार एक सीट जीती। वह 2013 से 2018 तक राज्य में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे थे। उनके राजनीति से हटने से भाजपा को बड़ा झटका लगा है।
ज़ोरमथंगा पहले भी दो बार 1998 से 2008 तक मुख्यमंत्री रहे। अगर वह अबकी सत्ता में आए तो वह 1987 में राज्य बने मिजोरम के सर्वाधिक काल के मुख्यमंत्री होंगे। पूर्व मुख्यमंत्री ललथनहवला पिछली बार दो सीट से चुनाव लड़े पर दोनों हार गए।
मुख्य विपक्षी दल जेडपीएम के 71 बरस के ललदुहोमा भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी हैं और अब इसमें शामिल जोरम नेशनलिस्ट पार्टी (जेडएनपी) के संस्थापक हैं। वह 2018 के चुनाव की तरह इस बार भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं।
एमएनएफ, मणिपुर की जातीय हिंसा पर नियंत्रण करने में अभी तक विफल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) के ही साथ है। लेकिन उसके अध्यक्ष और मुख्यमंत्री जोरमथंगा का कहना है वह एनडीए सरकार की सभी नीतियों का समर्थन नहीं करती है।
जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने मंगलवार को 39 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए। मुख्यमंत्री पद के दावेदायर ललदुहोमा सरछिप से फिर चुनाव लड़ेंगे। उसके प्रत्याशियों में जेडपीएम के वर्किंग चेयरमैन के सपडांगा, फुटबाल खिलाड़ी जेजे ललपेखलुआआ,पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष वन ललहलाना, नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन के लल मुआनपुईया पुनते और लोकप्रिय गायक वनललसाइलोवा भी शामिल हैं।
ललदुहोमा 1984 में कांग्रेस टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए थे। पर उन्हें 1988 में सदन में कांग्रेस का ह्विप नहीं मानकर उसकी के सरकार के खिलाफ वोट देने पर दलबदल विरोधी कानून के तहत संसद की सदस्यता से वंचित कर दिया गया था। फिर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 2018 के विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय मुख्यमंत्री ललथनहावला के खिलाफ जीतने में कामयाब रहे। पर वह नवंबर 2920 में विधानसभा की सदस्यता से वंचित कर दिए गए। वह जून 2021 में एमएनएफ और कांग्रेस के खिलाफ और भी अधिक वोटों के अंतर से जीत गए।
जेडपीएम का गठन 2017 में जेडएनपी, मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पार्टी और जोरम एक्सोडस मूवमेंट के विलय से हुआ था जिसने 2018 के चुनाव में 8 सीट जीती थी। पर जेडपीएम आगे के तीन उपचुनाव में एक ही सीट जीत दो पर हार गई। एमएनएफ के खिलाफ एंटी इन्कमबेनसी और कांग्रेस में गुटबाजी के कारण आगामी विधान सभा चुनाव में अपनी जीत की बड़ी आशा है। बगल के राज्य मणिपुर की जातीय हिंसा बड़ा चुनावी मुद्दा है, जहां के कुकी समुदाय के समर्थन में मिजोरम के लोग खड़े हो गए हैं। मिजोरम और असम के समुदायों के बीच भूमि स्वामित्व को लेकर हिंसक संघर्ष, महिला सुरक्षा, और लैंगिक समानता भी मुद्दा हैं. मिजोरम में कुकी मुद्दा जटिल समस्या है.कुकी पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की प्रमुख जनजाति हैं जिनकी मिजोरम में बड़ी आबादी है।
पिछले चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने 37.7 प्रतिशत मत हासिल कर 26 सीट जीटी थी। उसके पहले सत्ता में रही कांग्रेस ने 29.98 फीसद वोट पाकर 5 सीट जीती थी। जोरम पीपल्स मूवमेंट ने 22.9 फीसद और भाजपा ने 8.09 फीसद वोट के साथ एक सीट पर जीती थी.
इतिहास – भूगोल
पर्वतीय मिजोरम का भारतीय संविधान के 53वें संशोधन के तहत 20 फरवरी 1987 को देश के 23वें राज्य के रूप में गठन किया गया जो 1872 में केंद्र शासित प्रदेश बना और उसके पहले असम का जिला था। मिजोरम 1891 में ब्रिटिश हुक्मरानी के नियंत्रण में जाने के बाद कुछ वर्षो तक असम और बंगाल के अधीन रहा। फिर 1898 में उसके उत्तरी और दक्षिणी भागों को मिलाकर एक ज़िला बना दिया गया जिसका नाम पड़ा-लुशाई हिल्स और यह असम के मुख्य आयुक्त के अधीन आ गया। पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम (1972) लागू होने पर मिज़ोरम केंद्र शासित प्रदेश बना था। कांग्रेस के दिवंगत राजीव गांधी के शासनकाल में भारत सरकार और मिज़ो नेशनल फ़्रंट (एमएनएफ)के बीच 1986 के समझौते के फलस्वरूप 20 फ़रवरी 1987 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। मिजोरम के पूर्व और दक्षिण में म्यांमार और पश्चिम में बांग्लादेश के बीच स्थित होने से यह सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण राज्य हैं।
मिज़ोरम में 8 जिले आइजोल, कोलासिब, चम्फाई, ममित, लुंगलेई, लॉन्गतलाई ,सइहा और सेरछिप हैं जिनकी 80 फीसद आबादी खेती करती है। बागवानी फसलों की अपार संभावना हैं जिनमें संतरा, केला, अंगूर, और पपीता शामिल हैं। गुलाब और अन्य फूलों के अलावा अदरक, हल्दी, काली मिर्च की खेती होती है। जड़ी-बूटियों का भी प्रचलन है। पूरा मिज़ोरम अधिसूचित पिछड़ा और उद्योगविहीन क्षेत्र है। राज्य में सड़कों की कुल लंबाई करीब 6 लाख किलोमीटर है और बैराबी में रेलमार्ग है। आइज़ोल तक विमान सेवा है।
मिजोरम की आबादी 2001 में करीब नौ लाख थी जिसमें आईजोल के करीब दो लाख लोग शामिल है।कुल आबादी में मिजो/लुशाई 63 फीसद , चकमा 7 फीसद और कुकी 6 फीसद हैं। ईसाई 85 फीसद , बौद्ध 8 फीसद और हिन्दू सात फीसद हैं।
मिज़ो शब्द का स्थानीय भाषा में अर्थ है, पर्वतनिवासीयों की भूमि। 19वीं सदी में यहां ब्रिटिश मिशनरियों का प्रभाव फैला। अभी अधिकतर लोग ईसाई धर्म मानते हैं। मिज़ो भाषा की खुद की लिपि नहीं थी तो मिशनरियों ने उसके लिए रोमन अपनाया। राज्य में शिक्षा तेजी से बढ़ी। अभी इसकी 88 फीसद आबादी प्रतिशत है और वह शिक्षा के मामले में पूरे देश में केरल के बाद दूसरे स्थान पर है।मिजोरम में पहाड़ काट कर एक ही मौसम की ‘ झूम ‘ खेती होती है जिसकी पैदावार बहुत कम है। वहाँ बांस के फूलों के आते ही चूहों का राज हो जाता है।बांस के फूलों और चूहों के उत्पात के खिलाफ सरकार की बेरुखी से लोगों का विद्रोह हुआ।
मिजो फ्रंट के नेता ललडेंगा ने मिजोरम को आजाद करने चीन और पाकिस्तान से मदद माँगी और 1 मार्च 1966 को उसे भारत से स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। भारत सरकार ने तत्काल प्रभाव से कार्रवाई के आदेश दिए।मिज़ो फ्रंट पर भारतीय सेना द्वारा काबू करने के बाद 1968 तक हालात बेहतर हो गए। विद्रोहियों ने अपने हथियार डाल देने की इच्छा जताई।
बहरहाल, मिजोरम के अधिकतर लोग हिंसा नहीं पसंद करते हैं। वे मणिपुर मेँ भी जल्द से जल्द शांति बहाली की कामना करते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव के परिणाम क्या होंगे यह अभी कहना पोलस्टरों के लिए भी मुश्किल है और इसलिए कोई विश्वानीय प्रीपोल सर्वे नहीं आया है। चुनाव कार्यक्रम की औपचारिक घोषणा हो जाने के बाद हम मिजोरम की चुनावी तस्वीर का जायज लेंगे।
• लेखक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। इन दिनों वह विभिन्न राज्यों का दौरा कर वहाँ के चुनावी परिदृश्य का आँकलन कर हैं।