‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ मामले की सुनवाई अब जनवरी में होगी। इस एक्ट के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई होनी थी लेकिन ये सुनवाई टल गई। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने के लिए कहा था कि क्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पहले ही 1991 के कानून की वैधता के सवाल का निपटारा कर दिया है? लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक अपना जवाब नहीं दाखिल किया है। केंद्र सरकार की ओर से एसजी तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगा। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एस रविंन्द्र भट्ट की पीठ ने 12 दिसंबर से पहले केंद्र को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और सुनवाई के लिए अगले साल जनवरी के पहले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ को लेकर इससे पहले 12 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी।
#SupremeCourt to hear a bunch of petitions challenging the constitutionality of Places of Worship Act of 1991.
Centre was asked to file a reply to whether SC Constitution bench in Ram Janmabhoomi case has already settled the question of validity of the 1991 Act pic.twitter.com/CxJljhKHMO
— Bar & Bench (@barandbench) November 14, 2022
Sr Adv Raju Ramachandran: if the reply by centre can be filed a week early of the hearing so that we can ready a rejoinder
CJI: Counter to be filed or before December 12 and we will list this on first week of January 2023.#PlacesofWorshipAct #SupremeCourt
— Bar & Bench (@barandbench) November 14, 2022
बता दें कि ज्ञानवापी, मथुरा, ताजमहल और कुतुब मीनार को लेकर जारी विवाद के बीच शीर्ष अदालत में ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल की गई है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का खुलकर उल्लंघन करता है। साथ ही यह नागरिक अधिकारों को लेकर भी अवैध हैv इस एक्ट के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली ये याचिकाएं सेना के रिटायर्ड अधिकारी अनिल काबोत्रा, वकील चंद्रशेखर, देवकीनंदन ठाकुर, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, रुद्र विक्रम सिंह और बीजेपी के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय ने दायर की हैं। याचिकाकर्ता अनिल काबोत्रा का कहना है कि इन धाराओं से धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है।
क्या है ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’?
‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ कानून को 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के समय लाया गया था. इस कानून के तहत आज़ादी से पहले से मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति जैसी थी, उन्हें वैसा ही रखा जाएगा। लेकिन अयोध्या के राम मंदिर के मामले को इससे अलग रखा गया क्योंकि अयोध्या का मामला आजादी के पहले से अदालत में चल रहा था, इसलिए उसे इसमें छूट गई थी। कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया गया। सजा या जुर्माना मामले के हिसाब से तय होंगे। 1991 में कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा सरकार देश में सांप्रदायिक तनाव को दूर करने के लिए ये कानून लाई थी। इस कानून में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति इन धार्मिक स्थलों में किसी भी तरह का ढांचागत बदलाव नहीं कर सकता है। इसका मतलब ना तो इन्हें तोड़ा जा सकता है और ना ही नया निर्माण किया जा सकता है। कानून में यह भी लिखा है कि अगर ये सिद्ध भी हो जाए कि वर्तमान धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके वर्तमान स्वरूप को नहीं बदला जा सकता है।