मणिपुर विधानसभा का मार्च 2022 में निर्धारित चुनाव का मुद्दा सैन्यतंत्र बनाम लोकतंत्र में बदल रहा है। ये मुद्दा पड़ोसी राज्य नगालैंड में भारतीय सेना के हाथों 14 निर्दोष नागरिकों के मारे जाने के हालिया वारदात के खिलाफ देशभर में और खासकर चीन, बांग्लादेश, म्यांमार , भूटान और नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमाओ से लगे पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के अलावा जम्मू-कश्मीर में भी जनमानस के व्यापक क्षोभ से उभरा है। नगालैंड में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम यानि आफस्पा लागू है जो सैन्य बलों को उग्रवाद के खिलाफ अभियान चलाने निरंकुश अधिकार डेता है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में मणिपुर के अलावा असम , त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में भी भाजपा की सरकार है।
मणिपुर की 2017 में निर्वाचित मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल अगले बरस 19 मार्च को खतम होने से पहले नए चुनाव निर्धारित हैं। राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों का ही राज है। लेकिन खुद भाजपा के लिए नगालैंड की सैनिक वारदात हलक में हड्डी की तरह फंस गई है।
सेना और असम राइफल्स के सुरक्षा कर्मियों ने मोन में एनएससीएन (के) की गतिविधियों के बारे में खुफिया जानकारी मिलने पर 4 दिसंबर को छह नागरिकों को मार डाला था। इससे क्रुद्ध लोगों ने सुरक्षा बलों पर हमला कर दिया जिसमें एक सैनिक की मौत हो गई। सुरक्षा कर्मियों की ‘ जवाबी गोलीबारी ’ में और सात नागरिकों की जान चली गई। अगले दिन एक और नागरिक को मार डाला गया।
भाजपा के नगालैंड प्रमुख और राज्य में आदिवासी मामलों के मंत्री तेमजेन इमना अलॉन्ग ने मोन में नागरिकों की हत्याओं को नरसंहार और युद्ध अपराध ठहरा सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (आफस्पा) हटाने की मांग की है। उन्होंने कहा गोलियां चलाने से पहले सेना ने सही जानकारी नहीं जुटाई। ये शांति काल में युद्ध उपराध की तरह और नरसंहार है। केंद्र सरकार को अब राज्य से आफस्पा को हटा लेना चाहिए। आफस्पा की वजह से बेगुनाह लोगों को परेशान किया जा रहा है। उनका कहना है: हम जानते हैं चीन गड़बड़ियां पैदा करने म्यांमार-स्थित विद्रोही संगठनों की सहायता कर रहा है। लेकिन ये भी सत्य है कि राज्य में लोगों की आवाज़ को दबाया जा रहा है.एक माह पहले तीज़ित क्षेत्र के कोनयक नगा लोगों को मणिपुर में घात लगाकर किए हमले में मार दिया गया। सेना आफस्पा के नाम पर बिन जांच-पड़ताल के हमारे लोगों की जान ले लेती है.
नगालैंड में भाजपा नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) गठबंधन सरकार में शामिल है। 60 सीटों की विधानसभा में भाजपा के 12 विधायक समेत इस गठबंधन के 34 सदस्य हैं।
असम के मुख्यमंत्री हिमान्त बिसवा शर्मा इस क्षेत्र में कांग्रेस के खिलाफ बनाए सियासी मोर्चा नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा )के संयोजक है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने असम , मेघालय और मिजोरम विधान सभा की रिक्त सभी नौ सीट पर 30 अक्टूबर 2021 को काराये उपचुनाव जीते। कांग्रेस एक भी उपचुनाव नहीं जीत सकी।
मणिपुर पिछला चुनाव-
मणिपुर में 2017 के पिछले विधान सभा चुनाव के बाद भाजपा, नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और बिहार के दिवंगत केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के गठबंधन ने भाजपा के नोंगथोंबम बिरेन सिंह के मुख्यमंत्रित्व में नई सरकार बनाई।इस गठबंधन ने 21 सीटें ही जीती थीं जो बाद में जोड़ तोड़ से बढ़ कर 28 हो गई।
2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं। बाद में नाटकीय मोड़ में 21 सीटें जीतने वाली भाजपा ने तीन छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ सरकार बना ली। इन दलों में से एलजेपी के इकलौते विधायक करम श्याम बाकायदा भाजपा में शामिल हो गए।
चुनावी तैयारी-
क्या ये महज संयोग है कि जिस दिन नगालैंड की वारदात हुई उसी दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह और अन्य नेताओं को 4 दिसंबर को नई दिल्ली बुलाकर विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए बैठक की ? बैठक में भाजपा महासचिव (संगठन) बीएल संतोष , मणिपुर चुनाव प्रभारी एवं केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और राज्य के पार्टी प्रभारी संबित पात्रा भी थे।
कांग्रेस के मणिपुर प्रभारी भक्तचरण दास ने पिछले माह इम्फाल पहुँच पार्टी का चुनाव अभियान ” सरकार तारीबरा ” शुरू किया था। उन्होंने भाजपा द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को दबाने और सरकारी योजनाओं का बेजा चुनावी इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कांग्रेस के चुनावी अभियान में भाजपा की सरकार के कामकाज पर जनता से जमीनी रिपोर्ट एकत्रित की जाएगी। यह अभियान मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के ” सीएम दा हैसी ” कार्यक्रम के जवाब में शुरू किया गया।
मेघालय के मुख्यमंत्री और नेशनल पीपुल्स पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोनराड संगमा ने भी इंफाल पहुंच अपनी पार्टी की चुनावी तैयारी तेज की।
विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा ने कांग्रेस को बड़ा झटका देकर उसके दो विधायकों आरके इमो सिंह और याम थोंग हाओकिप को अपने पाले में शामिल कर लिया। उन्हें केंद्रीय मंत्री और असम के पूर्व मुख्यमंत्री सवार्नंद सोनोवाल ने एक समारोह में भाजपा की सदस्यता दिलाई। इस मौके पर मौजूद भाजपा के मणिपुर प्रभारी एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने दावा किया भाजपा दो-तिहाई बहुमत से जीत कर राज्य में फिर सरकार बनाएगी। उनके बोल वचन थे: हमारा नारा है, अबकी बार चालीस पार।
जेडीयू-
बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने भी मणिपुर की 20 सीटों पर चुनाव लड़ने का निश्चय किया है। जेडीयू के मणिपुर प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मंत्री हंगखानपाओ ताइथुल ने बताया कि पार्टी के राष्ट्रीय सचिव , मणिपुर प्रभारी और बिहार के झंझारपुर से लोक सभा सदस्य रामप्रीत मंडल 11 दिसंबर को इम्फाल में प्रस्तावित रैली में इसकी घोषणा कर सकते हैं जिसमें उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह भी आएंगे।
काँग्रेस-
कांग्रेस ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश को पूर्वोत्तर के राज्यों का चुनाव ऑब्जर्वर नियुक्त किया है। पार्टी को हाल में कई झटके लगे हैं। प्रदेश प्रमुख गोविंददास कॉनथोजम ने भाजपा का दामन थाम लिया। गत अगस्त में छह विधायकों ने कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ विद्रोह कर
तब कांग्रेस छोड़ दी जब उसने सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का कदम उठाया। कांग्रेस के आठ अन्य विधायक ने अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग में भाग नहीं लिया।
सर्वे-
एबीपी न्यूज टीवी चैनल और चुनावी विश्लेषक कंपनी , सी-वोटर के नवंबर के सर्वे के मुताबिक इस बार भाजपा 25 से 29 सीट , कांग्रेस 20 से 24 , नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और अन्य पार्टियां 3 से 7 सीट जीत सकती है। पिछले विधान सभा चुनाव की तुलना में भाजपा का वोट शेयर 2.4 फीसद बढ़कर 38.7 प्रतिशत होने और कांग्रेस का वोट शेयर 35.1 फीसद से घट 33.1 फीसद रह जाने का अनुमान है।
कुल 22,327 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के मणिपुर के 11 जिलों की आबादी 2011 की पिछली जनगणना के मुताबिक 29 लाख से कुछ कम है। निर्वाचन आयोग द्वारा पंजीकृत 1968476 वोटर में पुरुष 955657 और महिला 1012655 हैं। थर्ड जेंडर के 164 वोटर हैं। समुद्रपारीय के अलावा सर्विस यानि सैनिक 21438 वोटर 8601 हैं।
संस्कृत के मणि और पुर से बने मणिपुर का शाब्दिक अर्थ रत्नभूमि है। 1824 में वहाँ के शासक ने भारत पर अपना उपनिवेश बनाए ब्रिटिश हुक्मरानी के आधिपत्य को स्वीकार कर लिया। भारत की सियासी आजादी के बाद 15 अक्टूबर 1949 को उसमें मणिपुर रियासत का , विलय हो गया। इसे 1956 में केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और फिर 1971 में पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनरसंगठन अधिनियम के तहत पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। यह राज्य उत्तर में नगालैंड ,दक्षिण में मिजोरम और पश्चिम में असम राज्य से घिरा हुआ है। इसकी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पूरब में म्यांमार से लगती है। इसकी आबादी का 57.2 फीसद घाटी में और 42.8 फीसद पहाड़ पर बसा है। पहाड़ी आबादी में ज्यादातर नगा और कुकी हैं। घाटी की आबादी में मेतई , मणिपुरी ब्राह्मण ( बामोन) और मणिपुरी मुस्लिम (पांगल ) भी हैं।
सरकार ने मणिपुर को अशांत क्षेत्र घोषित कर रखा था जिसके खिलाफ आंदोलन हुए। अर्धसैनिक बल , असम रायफल के सुरक्षा कर्मियों के बलात्कार की शिकार मणिपुर की थंगजम मनोरमा देवी ने नंगे बदन प्रतिरोध मार्च किया। इन्ही आंदोलन के क्रम में इरोम शर्मिला चानु का लंबे अरसे तक अप्रतिम अनशन भी किया। सरकार ने अशांत क्षेत्र की लागू स्थिति 2004 में समाप्त कर दी।
बहरहाल , देखना यह है कि केंद्र सरकार मणिपुर चुनाव के बीच या उसके बाद में पूर्वोत्तर क्षेत्र में आफस्पा हटाने की बढ़ती अवामी मांग से निपटने क्या करती है। इतना तय है इस क्षेत्र के अधिकतर नागरिक लोकतंत्र पर सैन्यतंत्र का प्रभुत्व बरकरार रहने के कारण बहुत शांत नहीं रह सकते हैं।