कोरोना संकट से थोड़ी राहत मिलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका का सातवाँ दौरा भी मुकम्मल कर दिया। मोदी ने अपने तीन दिवसीय अमेरिका दौरे के लिए विगत 22 सितम्बर को दिल्ली से प्रस्थान प्रस्थान किया था और 23 से लेकर 25 सितंबर तक भारत – अमेरिका – ऑस्ट्रेलिया और जापान देशों के क्वाड सम्मेलन में हिस्सा लेने के साथ ही जापान और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों और अमेरिका राष्ट्रपति जो बाई डेन तथा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से द्विपक्षीय मुद्दों पर अलग – अलग वन टूवन मुलाक़ात भी की थी।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी संबोधित किया। इतना सब कुछ कर लेने के बाद प्रधानमंत्री श्री मोदी रविवार 26 दिसंबर की सुबह वापस दिल्ली पहुंच गए और उसी दिन डिजिटल लेन देन तथा कोरोना टीकाकरण जैसे विषयों पर देश के साथ मन की बात कार्यक्रम के तहत संवाद भी किया। प्रधानमंत्री के मौजूद अमेरिका दौरे के सन्दर्भ में बात अगर संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनके संबोधन से की करें तो कह सकते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने हर बार की तरह इस बार भी आतंकवाद को निशाने पर लिया और कोरोना संकट से त्रस्त विश्व को इस संकट से मुक्ति दिलाने की कामना करने के साथ ही इस महामारी में जान गंवाने वाले लोगों के प्रति अपनी संवेदना भी व्यक्त की।
न्यूयार्क में शनिवार 25 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76 वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भारत की हजारों साल पुरानी गौरवशाली लोकतांत्रिक परम्परा का उल्लेख करते हुए दुनिया के देशों को स्पष्ट रूप से यह सन्देश देने की पूरी कोशिश की कि भारत अपनी लोकतांत्रिक परंपरा का सम्मान करते हुए दुनिया के सभी देशों से भी उस पर निष्ठा और ईमानदारी के साथ अमल करने की उम्मीद करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वो उस देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं , जिसे मदर ऑफ डेमोक्रेसी का गौरव प्राप्त है। उन्होंने यह भी कहा कि केवल लोकतंत्र ही दुनिया का उद्धार कर सकता है।
कोरोना महामारी के इलाज और टीकाकरण के सवाल पर भारत का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि भारत का वैक्सीन डिलीवरी प्लेटफॉर्म कोविन एक ही दिन में करोड़ों वैक्सीन डोज़ लगाने के लिए डिजिटल सहायता दे रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने दुनिया की पहली डीएनए वैक्सीन विकसित कर ली है जिसे 12 साल से ज्यादा आयु के सभी लोगों को लगाया जा सकता है।
कोविडसंक्रमण से मुक्ति के लिए किये गए भारत के प्रयासों के साथ ही श्री मोदी भारत के पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ संबंधों का हवाला देते हुए कहा कि आतंकवाद की शरण स्थली बने ये दोनों देश भारत की एकता अखंडता और संप्रभुत्ता के लिए संकट का पर्याय बने हुए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया की किसी भी हालत में अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं हो इसकी गारंटी दुनिया के बड़े देशों को देनी ही होगी। उन्होंने कहा कि इस समय अफगानिस्तान की जनता को, महिलाओं और बच्चों को, वहां के अल्पसंख्यक समुदाय को मदद की जरूरत है और इसमें हमें अपना दायित्व निभाना ही पड़ेगा। आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा में जोरदार तरीके से आवाज उठाने के साथ ही प्रधानमंत्री की वाशिंगटन में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ हुई मुलाक़ात के दौरान भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी।
दोनों ही देशों ने सीमा पार आतंकवाद की निंदा की है और 26/11 के मुंबई हमलों के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने का आह्वान करते हुए कहा है कि वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित समूहों सहित सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करेंगे।व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच पहली द्विपक्षीय बैठक के बाद जारी एक संयुक्त बयान में दोनों नेताओं ने इस बात की पुष्टि की कि अमेरिका और भारत ‘‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव’’ के तहत प्रतिबंधित समूहों सहित सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करेंगे।’’
इस साल की अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में विश्व नेताओं के साथ अलग – अलग समय पर व्यक्तिगत और समूह के स्तर पर हुई हर बातचीत में प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और अफगानिस्तान में तालिबान की मौजूदगी से पड़ोसी देशों को होने वाली परेशानियों का उल्लेख करते हुए तालिबान से अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और महिलाओं, बच्चों एवं अल्पसंख्यक समूहों सहित सभी अफगानों के मानवाधिकारों का सम्मान करने का आह्वान किया है। दोनों देशों ने अफगानिस्तान के नये शासकों से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है कि युद्धग्रस्त देश की धरती का इस्तेमाल किसी भी अन्य देश को धमकाने या हमला करने या आतंकवादियों को पनाह या प्रशिक्षण देने के लिए फिर से न हो। आफ्गानिस्तान और आतंकवाद के मुद्दों पर क्वाड नेताओं की बैठक में भी खुल कर चर्चा हुई और इन देशों के नेताओं ने ‘पर्दे के पीछे से आतंकवाद’ के इस्तेमाल की कड़े शब्दों में निंदा भी की. क्वाड देशों- अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेताओं ने आतंकवादी संगठनों को किसी भी समर्थन से इनकार करने के महत्व पर जोर दिया।
परोक्ष रूप से यह इशारा पाकिस्तान की तरफ ही था क्योंकि यह माना जाता है की पाकिस्तान ही आतंकवादियों का उपयोग सीमा पार हमलों सहित आतंकवादी हमलों को शुरू करने या साजिश रचने के लिए करता आया है । व्हाइट हाउस में अपनी पहली आमने-सामने की बैठक के बाद क्वाड नेताओं- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जापानी प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा और उनके ऑस्ट्रेलिया समकक्ष स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि वे अफगानिस्तान के प्रति अपनी कूटनीतिक, आर्थिक और मानवाधिकार नीतियों का करीब से समन्वय करेंगे और दक्षिण एशिया में अपने आतंकवाद विरोधी और मानवीय सहयोग को गहरा करेंगे। संयुक्त बयान में कहा गया, “हम पर्दे के पीछे से आतंकवाद के उपयोग की निंदा करते हैं।