15 सितंबर 2021 को लोकतंत्र दिवस के मौके पर देश के उपराष्ट्रपति (राज्यसभा के सभापति ) वेंकैया नायडू , लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त रूप से देश के पहले एकीकृत संसद टेलीविज़न का शुभारम्भ किया। संसद का पहला एकीकृत टेलीविज़न चैनल शब्द पर ध्यान देने की जरूरत है।
यह इस रूप पहला एकीकृत संसद टेलीविज़न है क्योंकि इस चैनल का स्वामित्व संसद के दोनों सदनों के सचिवालयों के पास संयुक्त रूप से है। देश में संसदीय टेलीविज़न की परंपरा तो आज से डेढ़ दशक पहले 24 जुलाई 2006 के दिन तब शुरू हो गई थी जब देश के ही नहीं संभवतः दुनिया के पहले संसदीय टेलीविज़न के रूप में लोकसभा टेलीविज़न का विधिवत प्रसारण शुरू हुआ था। लोकसभा टेलीविज़न को देश – दुनिया का पहला संसदीय टेलीविज़न इसलिए भी कहा जाना चाहिए क्योंकि तब तक देश में तो ऐसा कोई टेलीविज़न नेटवर्क नहीं था जिसका स्वामित्व संसद के किसी सचिवालय के पास हो। विदेशों में ब्रिटेन के बीबीसी पार्लियामेंट को पूरी तरह संसदीय कामकाज पर आधारित टेलीविज़न चेनल कहा जरूर जा सकता है पर इस टीवी चैनल का स्वामित्व ब्रिटेन की संसद के किसी सदन के पास नहीं वहाँ की सरकार के पास है।
बीबीसी एक तरह से भारत के प्रसार भारती की तरह का ही एक संस्थान है जो रेडियो के साथ ही टेलीविज़न और अन्य माध्यमों से समाचार और सम्बंधित कार्यक्रमों का प्रसारण करता है। ब्रिटेन की संसद से संबंधित तमाम कार्यक्रमों का प्रसारण बीबीसी की यही इकाई करती है। संसदीय कामकाज के मामले में जुलाई 2006 से पहले कुछ इसी तरह की व्यवस्था प्रसार भारती के दूरदर्शन की भी थी और आकाशवाणी तथा आल इंडिया रेडियो के कार्यक्रमों का दूरदर्शन के कार्यक्रमों से किसी तरह का कोई लेना – देना नहीं था। लोकसभा टेलीविज़न शुरू होने के पांच साल एक महीना 2 बाद 26 अगस्त 2011 को भारतीय संसद के दूसरे टेलीविज़न चेनल राज्यसभा टेलीविज़न का प्रसारण शुरू हुआ था। उपराष्ट्रपति ( राज्यसभा के सभापति ) , लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री की पहल ने इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक की शुरुआत में ही लोकतंत्र दिवस के मौके पर जिस एकीकृत संसदीय टेलीविज़न नेटवर्क का शुभारम्भ किया है वो डेढ़ दशक पहले तब ही हो गया होता जब देश के पहले संसदीय टेलीविज़न चेनल लोकसभा टीवी का प्रसारण शुरू हुआ था। पर कुछ राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवधानों के चलते तब ऐसा नहीं हो सका था।
संसद टेलीविज़न नेटवर्क को समझने से पहले संसद के बारे में कुछ बुनियादी जानकारी होना जरूरी है। संसद भवन की प्रशासनिक व्यवस्था के तहत लोकसभा सचिवालय ही तमाम प्रशासनिक कार्यों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इस नाते लोकसभा अध्यक्ष प्रशासनिक मुखिया भी होता है और संसद की संपदा का स्वामित्व भी उसी के पास होता है राज्यसभा के सभापति को चूँकि उपराष्ट्रपति के नाते राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में राष्ट्रीय स्तर के अनेकानेक प्रशासनिक काम देखने होते हैं, इसलिए उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सदन की कार्रवाई का संचालन करने के अलावा संसद के अन्य प्रशासनिक कार्यों से मुक्त रखा गया है लेकिन संसद परिसर में कोई भी नया काम शुरू करने से पहले राज्यसभा के सभापति की राय को भी महत्व दिया जाता है। इस संदर्भ में यह जानकारी भी महत्वपूर्ण है कि जिस साल 2006 में यह चैनल शुरू करने की बात शुरू हुई थी तब केंद्र में कांग्रेस के डॉक्टर मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार वजूद में थी और लोकसभा के अध्यक्ष थे मार्क्सवादी पार्टी के नेता सोमनाथ चटर्जी। संसद टेलीविज़न की बुनियादी अवधारणा सोमनाथ चटर्जी की ही थी। इसका विचार उनके दिमाग में 2004 -05 के दौरान इंग्लैंड जाने पर तब आया था जब वो अपने एक मित्र के यहाँ का संसदीय चैनल बीबीसी पार्लियामेंट देख रहे थे।
इसके बाद उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार भास्कर घोष से भारत में कम लागत का एक ऐसा चैनल शुरू करने पर विचार विमर्श किया जो निजी चैनलों की उल – जुलूल बकवास और सरकारी चैनल के नियंत्रण से मुक्त होकर निष्ठा और इमानदारी के साथ संसदीय कार्यक्रमों , विधानों और देश – विदेश के विधायी निकायों के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले कार्यक्रमों का प्रसारण कर सके। लोकसभा सचिवालय ने तो ऐसे संसदीय चैनल को लेकर अपनी तैयारी शुरू भी कर दी थी लेकिन जब बात राज्यसभा की आई तो भाजपा के वरिष्ठ नेता उच्च सदन के तत्कालीन सभापति और देश के उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत किसी वजह से इस विचार से सहमत नहीं हुए और राज्यसभा की एक कमेटी ने से आशय का प्रस्ताव भी सरकार और संसदीय सचिवालय को दिया था कि संसद के उच्च सदन को फिलहाल ऐसा कोई टेलीविज़न शुरू करने या ऐसे किसी चेनल का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं है।
राज्यसभा सचिवालय ने तो एक तरह से 2005 -06 में ही संसदीय टेलीविज़न चैनल की प्रक्रिया से अपने आप को अलग कर लिया था लेकिन 2007, अगस्त में जब चुनाव के बाद कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में हामिद अंसारी चुन कर राष्ट्रपति बने तो उन्होने लोकसभा टेलीविज़न चैनल की तर्ज पर ही राज्यसभा टेलीविज़न के नाम से उच्च सदन का अपना एक अलग चैनल शुरू करने की चर्चा को आगे बढ़ाया। 2008 को संसद भवन परिसर स्थित संसदीय ग्रंथालय भवन के बालयोगी ऑडिटोरियम में लोकसभा टीवी के वार्षिक समारोह में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हुए राज्यसभा के सभापति और तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इस आशय की घोषणा की थी। इस योजना को लागू करते हुए 4 – 5 साल का समय लग गया। साल 2011 से 2021 तक पूरे दस साल 25 दिन अलग – अलग संसदीय चेनल के रूप में काम करने के बाद अंततः संसद टेलीविज़न चेनल के रूप में लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी का एकीकरण हुआ है . आज से करीब 15 साल पहले जब एसटीएन के रूप में इस तरह के टीवी चैनल की अवधारणा को मूर्त रूप देने की कोशिश की गई थी ।
सोमनाथ चटर्जी और भास्कर घोष समेत सभी संस्थापक विचारकों के मन में यही बात थी कि जिस तरह प्रसार भारती के तहत दूरदर्शन के कई चैनल एक ही छत के नीचे काम करते हैं उसी तरह संसद टेलीविज़न नेटवर्क के तहत लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी अपने – अपने सदनों की कार्रवाई का प्रसारण तो अलग से करते रहेंगे लेकिन दोनों चैनल के प्रोग्राम कॉमन होंगे। कुछ – कुछ इसी तरह की स्थिति दोनों संसदीय चैनल के एकीकरण के बाद भी बनती दिखाई दे रही है। इस तरह का सिलसिला तो कई पहले से ही बनना शुरू हो गया था। नरेन्द्र मोदी की सरकार के पहले कार्यकाल से ही इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई थी लेकिन पहले कार्यकाल की प्राथमिकताओं में इसे जगह नहीं मिल पाई थी। दूसरे कार्यकाल में तेजी से इस पर काम शुरू हुआ और इस साल फरवरी के महीने में ही एकीकरण का फैसला ले लिया गया था जिसे अब लागू किया जा रहा है।