क्रिकेट की दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ी , मनोरंजन की दुनिया के बेजोड़ हास्य कलाकार और राजनीति की दुनिया में देश की दो प्रमुख महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों – भाजपा और कांग्रेस के सांसद और पंजाब जैसे ख़ास राज्य की सरकार में मंत्री रह चुके नवजोत सिंह सिद्धू आजकल एक अजीब से विवाद के केंद्र में रहने की वजह से चर्चा में हैं।
इस विवाद की सबसे बड़ी वजह है पंजाब के मुख्य्मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कैप्टेन अमरेन्द्र सिंह के साथ उनकी कभी न सुलझने वाली कलह। कैप्टेन कांग्रेस के एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी पंजाब में कांग्रेस की लाज रखी और सिर्फ अपने दम पर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी। सवा चार पहले का साल 20 17 का वह समय पंजाब जैसे किसी राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के लिहाज से इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि तब पूरे देश में मोदी और भाजपा का डंका वैसे ही बजता था जैसे आज बजता है।
इसके साथ ही एक खासियत और भी थी वो यह कि तब पंजाब में भाजपा और अकाली दल में आपसी दोस्ती थी और इसी दोस्ती के चलते 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले तक पंजाब में इसी अकाली – भाजपा गठबंधन की सरकार भी वजूद में थी। 2004 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद सिद्धू ने राजनीति में एंट्री ली थी।
तब से जुलाई 2016 तक लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य के रूप में राजनीति करने के बाद उन्होंने अपनी पुश्तैनी कांग्रेस पार्टी में जाना उचित समझा और वहाँ उन्हें पर्याप्त सम्मान भी दिया गया। इसी सम्मान के तहत सिद्धू 2017 में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में गठित कांग्रेस सरकार में काबीना मंत्री भी बनाए गए थे लेकिन यह सम्मान उन्हें रास नहीं आया और वो मंत्री पद छोड़ कर सरकार से बाहर हो गए।
पिछले करीब तीन साल से वो कांग्रेस में रह कर ही कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से बैर पाले हुए हैं। सिद्धू नाराज हैं क्योंकि वो या तो राज्य का मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब पाले हुए हैं या फिर उनकी इच्छा कांग्रेस की प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनने की है। रब ने अब उनकी बात सुन ली है। खबर है कि अब सिद्धू पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष होंगे और मुख्यमंत्री कैप्शन अमरेन्द्र के साथ मिल कर काम करेंगे।
ये फैसला प्रशांत किशोर की प्रियंका , सोनिया और राहुल गाँधी के साथ हुई मेराथन मीटिंग के बाद लिया गया है। इससे कांग्रेस के साथ ही इन दोनों नेताओं को भी फायदा होगा और कांग्रेस के लिहाज से पंजाब के मौजूदा दौर की राजनीति में यही जरूरी भी था। नवजोत के साथ दो कार्यकारी अध्यक्ष भी काम करेंगे।
इनमें एक दलित समुदाय से होगा और दूसरा हिन्दू समुदाय से। अमरेन्द्र सिंह के रहते उनके मुख्यमंत्री बनने या अगले चुनाव में उनको ( नवजोत सिद्धू )भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना पार्टी के लिए किसी भी तरह संभव नहीं था लेकिन प्रदेश अध्यक्ष पद पर उनकी तैनाती के पीछे भी जरूर अमरेन्द्र की ही मौन स्वीकृति होगी क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही अमरेन्द्र ने कहा था कि वो पार्टी नेतृत्व के हर आदेश का पालन करेंगे ..
माना कि नवजोत सेलिब्रिटी हें और कांग्रेस पार्टी उनको हलके में नहीं ले सकती, पर इसके साथ ही दूसरा सच यह भी है कि नवजोत के नाम पर कैप्टन को नाराज करने का जोखिम भी कांग्रेस पार्टी किसी भी तरह से लेने की स्थिति में नहीं है . इन हालात में कांग्रेस पार्टी के लिए इससे बेहतर विकल्प और कुछ हो भी नहीं सकता कि नाजोत और अमरेन्द्र मिल कर काम करें , इससे आप की साजीश का भी भंडाफोड़ होगा .. कि अमरेन्द्र तो कांग्रेस में बने ही रहेंगे भले ही नवजोत आप की शरण में क्यों न चले जाएँ। वैसे भी नवजोत सिद्धू पुश्तैनी रूप से तो कांग्रेसी ही हैं।उनके पिता भगवंत सिंह जो खुद भी एक अच्छे क्रिकेटर थे वो कांग्रेस के सचिव भी थे , ये अलाग बात है कि राजनीति की शुरुआत में नवजोत ने अपने पिता की इच्छा के खिलाफ कांग्रेस के बजाय भाजपा का दामन थामा था। फिर भाजपा को भी उन्होंने अधबीच छोड़ दिया।
नवजोत सिद्धू के मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के सन्दर्भ में उनके इतिहास की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों पर भी दिलचस्प चर्चा हो सकती है। सिद्धू के बारे में एक बात दावे के साथ कही जा सकती है कि वो संघर्षशील व्यक्ति हैं और संघर्ष उनके जीवन में हमेशा बना रहता है। इसी संघर्ष की बदौलत सिद्धू जैसा एक खिलाड़ी जिसे 1983 में अच्छा प्रदर्शन न कर पाने के कारण टीम इण्डिया दे ड्राप कर दिया गया था उसने चार साल बाद ही 1987 में ऐसी जबरदस्त वापसी की थी कि जिस खेल पत्रकार ने सिद्धू की असफलता पर अपने “, स्ट्रोक लेस वंडर “शीर्षक लेख से उनका अपमान किया था , उसी खेल पत्रकार ने उनकी वापसी पर उनके सम्मान में लिखे अपने लेख को “सिद्धू फ्रॉम ए स्ट्रोक लेस वंडर टू ए पामग्रोव हीटर , व्हाट ए चेंज ” शीर्षक दिया था।
क्रिकेट में इस वापसी के लिए सिद्धू ने इतनी ज्यादा मेहनत की थी कि अभ्यास सत्र में ही खेलते हुए कई बार तीन सौ छक्के तक जड़ दिया करते थे। कम खाना, कम सोना और ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करने के मंत्र पर अमल करते हुए उन्होंने खेल में अच्छी वापसी तो की लेकिन बारह साल की अवधि में ही अपनी मर्जी के इतने बड़े मालिक भी हो गए कि जब 1999 में किसी बात पर भारतीय टीम के तत्कालीन कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन से किसी बात पर मन मुटाव हुआ तो किसी को बताए बिना अधबीच खेल छोड़ कर इंग्लैंड से स्वदेश वापस आ गए थे। इसके साथ ही क्रिकेट से संन्यास भी ले लिया था।
20 अक्टूबर 1963 को पटियाला में जन्मे सिद्धू ने एक बेहतरीन खिलाड़ी के रूप में अपनी ख़ास पहचान बनाई थी लेकिन राजनीति में ख़ास पहचान का यह मसला उनके लिए ख़ास परेशानी का सबब ही बन गया। क्रिकेट के खेल में उन्होंने 51 टेस्ट में 3202 रन बनाए और 136 वन डे मैच खेल कर औसत 4413 रन बनाए थे। क्रिकेट के इस ऑलराउंडर के खाते में 6 शतक भी हैं। अपने यार – दोस्तों के बीच शेरी के निक नाम से मशहूर नवजोत सिद्धू , पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला के ला ग्रेजुएट हैं।क्रिकेट से रिटायर होने और राजनीति में आने से पहले सिद्धू कई साल तक कमेंटेटर भी रहे और यहाँ भी एक अलग पहचान उन्होंने बनाई। इसके बाद कई साल तक कपिल शर्मा के कॉमेडी शो तथा टेलीविज़न के अन्य कार्यक्रमों के जरिये जनता का मनोरंजन करने में भी उन्होंने कोई कसर नहीं छोडी थी।