अगले साल 2022 की पहली तिमाही ( फरवरी – मार्च ) में जिन राज्य विधानसभाओं के चुनाव होने हैं उनमें उत्तर प्रदेश , पंजाब , मणिपुर और गोवा के साथ ही उत्तराखण्ड भी एक है। सत्तर सदस्यीय विधानसभा वाला यह राज्य आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से चाहे बड़ा न हो लेकिन राजनीतिक दृष्टि से इस राज्य का महत्त्व कम नहीं है। साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर एक स्वायत्त राज्य के रूप में वजूद में आए देश के इस सीमान्त पहाड़ी इलाके ने ही अतीत में स्वर्गीय गोविन्द बल्लभ पन्त , चन्द्रभानु गुप्त , हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी जैसे चार मुख्यमंत्री भी दिए हैं। उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मूल रूप से उत्तराखंड के ही वासी हैं।
उत्तर प्रदेश जिसे देश की आजादी से पहले यूनाइटेड
प्रोविंस ( संयुक्त प्रांत ) कहा जाता था के प्रथम मुख्यमंत्री
गोविन्द बल्लभ पन्त ही थे जो बाद में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व वाली केन्द्रीय सरकार में देश के गृहमंत्री
भी बने थे। दो दशक पहले तक ऐसी भी स्थितियां रहीं जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल में देश के इसी छोटे पहाड़ी इलाके एक – दो नहीं आधा दर्जन से अधिक प्रतिनिधि हुआ करते थे। राजनीति के साथ ही साहित्य, शिक्षा, संस्कृति , कला , खेल और प्रशासनिक क्षेत्र में भी इस इलाके का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। देश के मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल इसी इलाके के रहने वाले हैं। यही नहीं देश की तीनों सेनाओं के प्रथम संयुक्त कमांडर जनरल बिपिन रावत भी उत्तराखंड के ही हैं।
जनरल रावत देश के पूर्व थल सेनाध्यक्ष भी रह चुके हैं। जनरल रावत के अलावा जनरल बीसी जोशी, जनरल करियप्पा के रूप में भी कई थल सेनाध्यक्ष उत्तराखंड अतीत में देश को दे चुका है। यही स्थिति प्रशासन के क्षेत्र में भी देखी जा सकती है।अभी तक देश के आधा दर्जन से अधिक कैबिनेट सेक्रेटरी यह इलाका दे चुका है , इनमें कुछ प्रमुख नाम बीडी पांडे., विनोद चंद्र पांडे,सुरेन्द्र सिंह और कमल पांडे के रूप में उल्लेखनीय हैं।
राजनीति , पुलिस , प्रशासन , सुरक्षा और प्रतिरक्षा के साथ ही नृत्य , अभिनय , लोक ,संगीत साहित्य और फिल्म के क्षेत्र में भी इस इलाके का अपना अलग योगदान रहा है . हिंदी साहित्य में सुमित्रानंदन पंत , चन्द्र कुंवर बर्त्वाल से लेकर शैलेश मटियानी , पत्रकारों में मनोहर श्याम जोशी हिमांशु जोशी , विश्व मोहन बडोला , मृणाल पाण्डे जैसे असंख्य नाम हैं कलाकारों में प्रसून जोशी भी एक हैं और हिमानी शिवपुरी दूसरी।
इतने वैविध्यपूर्ण प्रतिभाओं वाले राज्य उत्तराखंड का यह पांचवां विधानसभा चुनाव होगा। 1 नवम्बर 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग कर इस राज्य का गठन किया गया था। उस समय उत्तर प्रदेश विधान सभा के तहत आने वाले हरिद्वार समेत उत्तराखंड के 22 विधानसभा क्षेत्रों के विधायकों के साथ ही उत्तर प्रदेश विधान परिषद के 8 सदस्यों को मिला कर एक 30 सदस्यीय अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया था लेकिन बाद में नए सिरे से विधानसभा सीटों का परिसीमन करने के बाद 70 राज्य की 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए पहली बार 2002 में चुनाव हुए थे , उत्तराखंड की दूसरी , तीसरी और चौथी विधानसभा के लिए क्रमशः 2007 , 2012 और 2017 में चुनाव हुए थे। इस लिहाज से अगले साल उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा का चुनाव होगा।
अभी तक की परंपरा रही है कि भाजपा और कांग्रेस बारी – बारी से इस राज्य में सरकार बनाती रही हैं। साल 2000 में जब राज्य बना था तब 30 सदस्यीय अंतरिम विधानसभा में भाजपा का बहुमत था इस नाते भाजपा के नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व में सरकार का गठन किया गया था। यह राज्य अपने गठन के साथ ही राजनीतिक अस्थिरता का दंश झेलता रहा है। यही वजह है कि इस राज्य की पहली सरकार भी पहले चुनाव से चार – पांच महीने पहले ही राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो गई और सत्तारूढ़ भाजपा को अंतिम समय में अपना मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। नित्यानंद स्वामी के स्थान पर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन उनके नेतृत्व में पार्टी राज्य विधानसभा का पहला चुनाव नहीं जीत सकी।
पहले चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी सारी मेहनत हरीश रावत ने की लेकिन मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया पृथक उत्तराखंड राज्य के धुर विरोधी रहे नारायण दत्त तिवारी को। तिवारी सरकार ने पांच साल तो पूरे किये लेकिन दूसरी विधानसभा का चुनाव आते – आते कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में इतने फाड़ हो गए कि कांग्रेस चुनाव हार गई और दूसरी विधानसभा के चुनाव में भाजपा की जीत के साथ ही भुवन चन्द्र खंडूरी राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। कांग्रेस की तरह भाजपा में भी अंतर कलह चरम पर आ गई थी, और भुवन चन्द्र खंडूरी की सरकार अधबीच बदल दी गई। उनके स्थान पर डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन दूसरी विधानसभा के चुनाव से कुछ महीने पहले ही उनके स्थान पर फिर से भुवन चन्द्र खंडूरी मुख्यमंत्री बना दिए गए। पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बदले जाने का असर यह हुआ कि भाजपा तीसरी विधानसभा का चुनाव हार गई।
2012 में तीसरी विधानसभा का चुनाव तो कांग्रेस ने जीता लेकिन कौन बनेगा मुख्यमंत्री इसको लेकर हरीश रावत और विजय बहुगुणा के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी। एक बार फिर चुनाव में पार्टी की जीत के लिए मेहनत करने वाले कांग्रेस के नेता हरीश रावत के स्थान पर पार्टी आला कमान ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया। रावत बनाम बहुगुणा के बीच खाई इतनी गहरी हो गई कि पार्टी आला कमान को विजय बहुगुणा के स्थान पर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाना पड़ गया। इसके बाद 2017 में चौथी विधानसभा का चुनाव होने से पहले तक हरीश रावत मुख्यमंत्री तो जरूर रहे लेकिन पार्टी रसातल में चली गई। पार्टी के हालात इतने खराब हो गए कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के साथ ही पूर्व विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य , एनडी तिवारी और हरीश रावत के मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुके कई पूर्व केन्द्रीय जिनमें हरक सिंह रावत , सतपाल महाराज , उनकी पत्नी अनीता रावत जैसे कई नाम शामिल हैं कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए थे।
कांग्रेस पार्टी में इतने बड़े पैमाने पर हुई बगावत का असर यह हुआ कि राज्य की चौथी विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस इतनी बुरी तरह हार गई कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी एक जगह से नहीं बल्कि दो जगह से चुनाव लड़ने के बावजूद विधानसभा में नहीं पहुँच सके। इस कड़ी में उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा के लिए आगले साल की शुरुआत में होने वाला यह चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है। वैसे इस बार बारी के हिसाब से जीतना तो कांग्रेस को चाहिए लेकिन हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि इस बार उत्तराखंड में केरल जैसी स्थिति बन रही है । जिस तरह केरल में 2021 के विधानसभा चुनाव में बारी – बारी के हिसाब से वाममोर्चे के स्थान पर कांग्रेस की सरकार बननी चाहिए थी। लेकिन वाममोर्चा फिर सत्ता में वापस आ गया उसी तरह जब उत्तराखंड में मायावती ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया और आम आदमी पार्टी ने भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है उसका सीधा असर यही होगा कि राज्य में भाजपा विरोधी मतों के आपसी टकराव से भाजपा को ही फायदा होगा।
आप और बसपा कांग्रेस के वोट पर ही सेंध लगायेंगे इससे फायदे में तो भाजपा ही रहेगी । चुनाव की तिथियों की घोषणा होने तक अगर इस हालात में कोई बदलाव नहीं होता है तो कांग्रेस का नुकसान होना तय है।