दिल्ली/ कांग्रेस लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर है कोरोना से निपटने के उपायों को लेकर, साथ ही आम आदमी की जेब पर पड़ रही अनावश्यक टैक्स और बेरोजगारी की मार पर। कांग्रेस का कहना है 40 हजार करोड़ रुपये जो जनता की जेब से लूटे गये है उसे जनता के लिए खर्च किया जाए कोरोना संक्रमण के कारण जिनकी मृत्यु हुई है उन्हें 10 लाख का मुआवजा दिया जाना चाहिए।
कांग्रेस के प्रवक्ता और अर्थशास्त्री प्रोफेसर गौरव वल्लभ और अमन पवार ने आज इसी मुद्दों पर सरकार को घेरा
गौरव ने कहा हमारा देश पिछले 16 महीनों से घातक कोरोनावायरस से लड़ रहा है। अब तक 4 लाख के करीब लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 3 करोड़ से ज्यादा लोग इस जानलेवा वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। भारत का मध्यम वर्ग 3.2 करोड़ और 7.5 करोड़ लोगों द्वारा सिकुड़ गया 2020 में गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिया गया। सीएमआईई के अनुसार, पिछले वर्ष के दौरान लगभग 97% भारतीय गरीब हो गए। यह स्पष्ट है कि जीवन और आजीविका दोनों को बुरी तरह से नुकसान हुआ है। लेकिन बड़ा मुद्दा यह है कि बीजेपी सरकार ने इस लड़ाई में लोगों को अकेला छोड़ दिया है और इसकी कोई परवाह नहीं है।
COVID-19 एक आपदा है, महामारी है-
लेकिन केंद्र सरकार की दलील की ये आपदा नहीं है इसको साबित करने में बुरी तरह विफल रही है। मार्च 2020 में, गृह मंत्रालय ने कोविड -19 को “अधिसूचना के द्वारा आपदा घोषित किया है फिर कैसे सरकार ये कह सकती है ये आपदा नहीं है ?सरकार मुआवजा नहीं देना पड़े इसलिए ये नौटंकी कर रही है।क्योंकि अब सार्वजनिक रूप से मुआवजे की मांग की गई, तो मोदी सरकार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में यह कहकर यू-टर्न लिया कि इसे आपदा नहीं कहा जा सकता है और यह एक महामारी है। सरकार द्वारा दायर दिनांक 19.06.2021 का हलफनामा COVID-19 के खिलाफ हमारी लड़ाई के लिए एक झटका है।
सरकार अपने बचाव में बेवजह के तर्क देने में व्यस्त है।
सरकार के हिसाब से, इसकी पहचान नहीं है ये अचानक आई है, इसलिए मुआवजा नहीं दे सकते। ये क्या बात हुई “आपदा” में मूल रूप से विचार किया गया है, एक बार की घटना है या बाढ़, भूकंप, चक्रवात जैसे कुछ समय के लिए बार-बार होती है, विभिन्न प्रकार के “राहत के अंतरिम उपाय” प्रदान किए जाने हैं।
डिज़ास्टर मैनेजमेंट एक्ट में वितीय सहायता राशि देने का प्रावधान है ऐसे में आप मना किसे कर सकते है।
सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार का कहना है कि नागरिकों को ‘एक्स-ग्रेटिया’ मुआवजे का दावा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है !
सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया था की इसके लिए उसके पास पर्याप्त पैसा नहीं पर देखे सरकार ने 2020-21 में केवल उत्पाद शुल्क संग्रह के रूप में लगभग 3.90 लाख करोड़ रुपये एकत्र किए। वहां भी सरकार का तर्क है कि यह अत्यधिक वसूली आम आदमी के लिए राहत उपायों की ओर निर्देशित की जा रही है। यह जमीनी हकीकत के विपरीत है। 1 अप्रैल 2020 से लोगों ने अपने पीएफ खातों से करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये निकाले हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकार मध्यम वर्ग और निम्न-आय वर्ग के लोगों को किसी भी प्रकार की सहायता प्रदान करने में विफल रही है।
गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन नो 32-7/2014-NDM- में 8 अप्रैल 2015 में कहा गया है कि राहत कार्यों में शामिल या तैयारी गतिविधियों में शामिल लोगों सहित प्रति मृतक व्यक्ति को 4.00 लाख रुपये, उपयुक्त प्राधिकारी से मृत्यु के कारण के संबंध में प्रमाणीकरण के अधीन। दिया जायेगा।
यह 2015-2020 की अवधि के लिए लागू था ऐसे में इसी बीच था। COVID-19 आया। ऐसे में हम सरकार को मनमानी करने की छूट नहीं दे सकते। उन सभी लोगों को जिन्होंने कोविड -19 महामारी के बीच अपनी जान गंवाई है, उन्हें रु। आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत 4 लाख मुआवजा मिलना ही चाहिए।
हमारे पास सरकार के लिए तीन सवाल है –
1. जब संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे राष्ट्रों ने COVID-19 को प्राकृतिक आपदाओं के तहत वर्गीकृत किया है और प्राकृतिक आपदा की सभी शर्तें COVID-19 पर भी लागू होती हैं, तो मोदी सरकार को इसे प्राकृतिक आपदा मानने से क्या रोक रहा है?
2. सरकार ने अब तक मृतकों के परिवारों को क्या सहायता प्रदान की है और सरकार मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने से क्यों हिचक रही है?
3. पेट्रोल और डीजल पर सरकार जो अत्यधिक उत्पाद शुल्क वसूलती है वह जनता का पैसा है। यदि सरकार मृतक के परिवारों पर इसका 10% (40,000 करोड़ रुपये) खर्च नहीं कर सकती है, तो इस पैसे का क्या उपयोग है?
राहुल गांधी ने बार-बार प्रस्ताव दिया है कि सरकार एक COVID मुआवजा कोष स्थापित करे और मृतकों के परिवारों को 10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करे। यह न केवल एक संवैधानिक दायित्व है बल्कि एक नैतिक भी है। कांग्रेस पार्टी की मांग है कि सरकार अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तरह COVID-19 को भी शामिल करे और मृतकों के परिवारों को 10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करे। यह मृतकों के परिवारों के प्रति हमारा कृतज्ञता का ऋणी है। यह उन अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं का अपमान है जिन्होंने सबसे आगे लड़ते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। जो सरकार मृतकों के परिवारों को 10 लाख रुपये नहीं दे सकती, उसे शासन करने का कोई अधिकार नहीं है।