ज्ञानेन्द्र पाण्डेय : कोरोना सवा साल का हो गया और लॉक डाउन एक साल का। पैदा होते ही ये दोनों इतनी तेजी से आगे बढ़े कि किसी को पता ही नहीं चला और इन दोनों के पहले जन्म दिन के दो मौके भी आ गए। इस एक साल के बच्चे का पढ़ाई में तो मन बिलकुल नहीं लगता, शादी – ब्याह से भी इसे दूर रखा जाता है लेकिन बाजार घूमने में इसे बड़ा मजा आता है। हिन्दू मंदिरों में तिलक लगा कर भीड़ बढ़ाने की इसकी आदत पैदाइशी है। कुम्भ के मेले की भीड़ तो इसे बहुत पसंद है, और भीड़ को पसंद करने की इसकी इसी आदत का ख्याल रखते हुए ही कोरोना को चुनाव में भी खेला खेलने में बड़ा आनंद आता है। गौरतलब है कि कोरोना महामारी नाम का यह बीज साल 2020 में भारत की एक महिला के साथ सफ़र करते हुए चीन के वूहान प्रांत से केरल होता हुआ,अपने देश में पहुंचा था। इस रोग को रोकने के लिए किये गए इंतजाम के तहत तालाबंदी यानी लॉक डाउन की प्रक्रिया साल 2020 में 22 मार्च को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक के लिए लगाए गए एक दिनी जनता कर्फ्यू से शुरू हुई थी। 24 मार्च से इसी एक दिनी जनता कर्फ्यू को अंतहीन समय तक चलने वाली सरकारी तालाबंदी में बदल दिया गया था। इस लिहाज से कोरोना सवा साल से तीन महीने और लॉक डाउन एक साल से कुछ दिन बड़ा हो गया है।
इस अवधि में कोरोना बेतहाशा तेजी से बड़ा करोड़ों लोग संक्रमित हुए लाखों का इलाज हुआ दो तिहाई लोग अस्पताल से इलाज करा कर घर भी आ गए। कई बदकिस्मत जिन्दगी से ही हाथ धो बैठे। बीच – बीच में हालात सुधरे भी और लगा जल्द ही कोरोना अतीत का बुरा स्वप्न बन कर रह जाएगा , लेकिन ऐसा हुआ नहीं वैसे भी इंसान जो सोचता है वो होता नहीं है इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। कोरोना की एक नई लहर आई है।पहले वाली कोरोना लहर चीन से आयी थी , उसकी वो लहर पड़ोसी देश से आयी थी उसकी मारक क्षमता कम होनी चाहिए थी लेकिन रोग के बारे में जानकारी और अनुभव के अभाव में कोरोना की पहली लहर में कुछ ज्यादा ही लोग चपेट में आ गए। कोरोना की दूसरी लहर यूरोप और अमेरिका से आयी है . इसे ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है लेकिन दुनिया के चिकित्सकों , राजनेताओं और दूसरे विशेषज्ञों को कोरोना की समझ को लेकर एक साल से ज्यादा का अनुभव हो गया है इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पर जल्दी ही काबू पा लिया जाएगा।
ताजा जानकारी के मुताबिक 24 मार्च 2021 तक हमारे देश में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या 1 करोड़ 16 लाख 86 हजार 796 थी। इनमें से उस तारीख तक एक करोड़ 11 लाख 81 हजार 253 ठीक होकर अस्पतालों से घर वापस आ गए थे। इनमें सक्रिय केस 3 लाख 45 हजार 377 थे।कोरोना के सभी मरीज ठीक नहीं हो सके थे ऐसे 3 लाख 86 हजार 166 कोरोना रोगी दुर्भाग्यवश ठीक नहीं हो सके और मौत का शिकार हो गए। इस एक साल की अवधि में कोरोना से लड़ने के भी कई तरह के पुख्ता इंतजाम किये जा चुके हैं। इन्हीं इंतजामों में एक इंतजाम कोरोना के टीके की खोज भी है और कोरोना टीका कारन की प्रक्रिया भी बड़ी तेजी से शुरू हो चुकी है। एक अनुमान के मुताबिक़ अब तक ( 24 मार्च 2021 ) 4 करोड़ 84 लाख 94 हजार 594 लोगों का कोरोना टीकाकरण हो चुका है। कोरोना के कारण साल 2020 सभी के लिए परेशानी भरा रहा। आम हो या खास किसी न किसी तरह सभी इसके शिकार हुए। वहीं, कोरोना से बचाव को लेकर सरकार ने काफी दिनों तक लॉकडाउन भी लगाया और ये दिन था आज का यानी 24 मार्च। 24 मार्च को संपूर्ण भारत में लॉकडाउन लग गया था, जिसके कारण सभी अपने घरों में कैद हो गए थे। लॉकडाउन लगने के बाद सड़कें खाली और दुकानें बंद थीं। सभी व्यावसायिक गतिविधियों पर विराम लग गया था। कोरोना का खौफ इतना था कि फिल्मों की शूटिंग भी पूरी तरह से बंद कर दी गई थी। इस दौरान 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू लगाने के बाद 25 मार्च से पहला लॉक डाउन शुरू हो गया था. 15 अप्रैल से दूसरा लॉकडाउन शुरू हुआ जो 4 मई तक चला था। 4 मई से तीसरा लॉक डाउन शुरू हुआ जो 18 मई तक चला था और 18 मई 18 मई से चौथा लॉकडाउन लागू किया गया था। इसके बाद 01 जून से शुरू हुआ अनलॉक का सिलसिला जो आज भी किसी न किसी रूप में जारी है।
इस लॉक डाउन में कई बातें ऐसी हुई जो इंसान की जिन्दगी में पहली बार हुईं। मसलन ऑनलाइन पढ़ाई .लॉक डाउन लागू होने से पहले जो माँ बाप अपने छोटे बच्चों को लैपटॉप और स्मार्ट फ़ोन देने से कतराते थे वही माँ बाप लॉक डाउन के दिनों में बच्चों की पढ़ाई के लिए ये सामान जुटाते हुए दिखाई देने लगे हैं। आज यही सब मोबाइल, लैपटॉप ऑनलाइन पढ़ाई के लिए जरूरी बन गया। शुरूआत में परेशानी आईं, लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों से लेकर बीटेक तक के विद्यार्थियों को रास आई। पहली बार शहर के बच्चों ने ऑनलाइन परीक्षा दी। लॉक डाउन के चलते रोजगार के अनेक संस्थान हमेशा के लिए बंद हो गए इन संस्थानों में कार्यरत लोगों को वैकल्पिक रोजगार तलाशने की नौबत आ गई। किसी कि मिला , किसी को नहीं मिला तो उन्होंने दो समय की रोटी का इंतजाम करने के लिए दूसरे काम करना शुरू कर दिए। वैकल्पिक रोजगार तलाशने वालों में अनेक बंद हो गए स्कूलों के अध्यापक भी थे लॉकडाउन में जब स्कूल, कॉलेज बंद हुए तो निजी स्कूल में प्रधानाचार्य पद पर रहे अवनीश और अपर्णा भट्ट ने नौकरी छोड़ गुजराती व्यंजन बेचने का कारोबार शुरू किया।
इसी तरह लगभग एक दशक से एंकरिंग कर रही ज्योति शर्मा ने लॉकडाउन के दौरान रेशम के धागे को लपेटकर आकर्षक चूड़ियां बनाकर बेचना शुरू कर दिया तो मनीष जैसे युवाओं ने रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला अचार बेचना शुरू किया। उन्होंने 38 तरह के अचार बनाए।देश दुनिया के वो करोड़ों भाग्यशाली लोग जो ऑफिस बंद होने के बाद भी पपनी नौकरियों में बने हुए हैं वो घर से ही ऑनलाइन काम कर रहे हैं ये भी एक नया अनुभव है किसी को पसंद आ रहा है किसी को नहीं। सबसे बड़ी बात कि इस दौरान करोड़ों मजदूरों को काम के अभाव में शहरों से अपने घरों को लौटना पड़ा था इन मजदूरों में से ज्यादातर की जिन्दगी पटरी पर वापस नहीं आ आई।
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ समेत समेत देश के कई राज्यों के एक-डेढ़ करोड़ लोगों ने लॉकडाउन की अवधि में ऐसा दंश झेला है, जिसे वे कभी भूल नहीं पाएंगे। अकेले उत्तर प्रदेश से लगभग 33 लाख कामगार बेरोजगार हुए थे ।