लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को इस बात का श्रेय तो दिया ही जाना चाहिए कि कोरोना जैसी भयंकर महामारी के बावजूद उन्होंने संसद के सत्र नियमित रूप से और यथासंभव तरीके से आयोजित कराने की कोशिश जरूर की। साल 2020 के शुरू होते ही जब चीन के रास्ते इस महामारी का दुनिया के तमाम देशों में फैलाव हुआ था तब भारत भी इससे बचा नहीं रह सका था।
तब भारतीय संसद का बजट सत्र शुरू हो चुका था जो अब पिछले करीब पांच साल से बदली समय सारिणी के हिसाब से आम तौर पर जनवरी महीने के अंतिम दिन से शुरू होता है और अप्रैल महीने के मध्य तक चलता है। 20 मार्च 2020 के बाद से जब देश भर में कोरोना के मामलों में बड़ी तेजी से इजाफा होने लगा था तब सरकार को लॉकडाउन के हथियार का इस्तेमाल करते हुए कोरोना से बचाव के उपाय करने पड़े थे। इन्हीं उपायों के चलते साल 2020 का बजट सत्र भी सालाना बजट पास लारने के बाद अधबीच स्थगित करना पड़ा था। उसके बाद पिछले साल संसद के मानसून और शीतकालीन सत्र भी आधे अधूरे तरीके से ही आयोजित हो सके थे।
संसद के सत्र हुए तो जरूर थे लेकिन कई तरह की पाबंदियों के साथ होने की वजह से पिछले साल संसदीय कामकाज एक तरह से रस्म अदायगी ही होकर रह गया था, पर कुछ भी कहें संसद के सत्र तो आयोजित हुए ही चाहे कम अवधि के ही क्यों न हुए हों। इसी कड़ी में इस साल यानी 2021 में संक्षिप्त अवधि के लिए ही सही संसद का बजट सत्र भी आयोजित किया गया था ।
दो सत्र में चली साल 2021 के बजट सत्र की कारवाई का पहला चरण 29 जनवरी से 28 फरवरी तक और दूसरा चरण 8 मार्च से 8 अप्रैल तक संपन्न हुआ था। संसद का पिछला सत्र राजनीतिक दृष्टि से भी इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि संसद के इसी सत्र के कुछ ही दिन बाद देश के असम , बंगाल , तमिलनाडु , केरल और पुदुचेरी विधान सभा के कई चरणों में चुनाव संपन्न हुए थे। इनमें असम को पुदुचेरी को छोड़ कर शेष तीनों राज्यों – केरल , बंगाल और तमिलनाडु में सत्तारूढ़ भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा था। इस पृष्ठभूमि में संसद का मानसून सत्र इस महीने की 19 तारीख से शुरू होने जा रहा है।
संसद का यह सत्र करीब एक महीने तक चलेगा। अभी घोषित किये गए कार्यक्रम के अनुसार संसद का मानसून सत्र 13 अगस्त तक चलना है लेकिन अंतिम समय में कुछ बदलाव भी हो सकते हैं। इस बीच जैसी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं अगर कोरोना की तीसरी लहरका प्रकोप बढ़ गया तो संसद सत्र की कारवाई समय पूर्व भी स्थगित की की जा सकती हैं। या फिर स्थितियां सामान्य बनी रहीं और संसदीय कामकाज को देखते हुए सत्र की कारवाई बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई तो कारवाई एक – दो दिन के लिए बढ़ाई भी जा सकती है। फिलहाल 19 जुलाई से 13 अगस्त के बीच होने वाले सत्र के पहले चरण के कामकाज में संसद की 19 बैठकें होंगी।
संसद के पिछले सत्र की तुलना में बजट सत्र के दौरान एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह किया गया है कि कोरोना प्रोटोकोल का पूरा ध्यान रखते हुए सामाजिक दूरी के नियमों का पूरी तरह के पालन करते हुए संसद के दोनों सदनों की बैठक एक ही समय पर आयोजित की जाएँगी। पिछले सत्र में संसद के दोनों सदनों की बैठकें अलग – अलग समय पर हुई थी। संसद के दोनों सचिवालयों की तरफ से भी इस बारे में विधिवत और आधिकारिक जानकारी दी गई हैं। संसद के दोनों सचिवालयों ने एक ही जानकारी को दो अलग – अलग और दिलचस्प अंदाज में प्रस्तुत किया है। गौरतलब है कि मानसून सत्र की जानकारी देते हुए जहां-
लोकसभा सचिवालय की तरफ से जारी आदेश में कहा गया है, ‘17वीं लोकसभा का छठा सत्र 19 जुलाई (सोमवार) को आरंभ होगा। सत्र का समापन 13 अगस्त (शुक्रवार) को हो सकता है।वहीं, राज्यसभा के आधिकारिक आदेश में कहा गया है, ‘राष्ट्रपति ने राज्यसभा की बैठक को 19 जुलाई को आहूत किया है। सत्र का समापन 13 अगस्त को होना है।आधिकारिक जानकारी के मुताबिक,संसद के मौजूदा मानसून सत्र की तारीखों का एलान करने की तिथि तक लोकसभा के 444 और राज्यसभा के 218 सदस्यों को वैक्सीन की कम से कम एक खुराक दी जा चुकी थी। इस बार संसद के मॉनसून सत्र के हंगामेदार रहने के आसार हैं। विपक्ष की ओर से कई मुद्दे उठाए जा सकते हैं, जिनका भाजपा सही तरीके से बचाव करने की रणनीति पर बीजेपी काम कर रही है। पार्टी सांसदों से कहा गया है कि वे संभावित मुद्दों पर विपक्ष के सवालों का जवाब देने और सरकार का बचाव करने के लिए पूरी तरह से तैयार रहें।अगले साल 2021 के शुरुआती महीनों मेंउत्तर प्रदेश , उत्तराखण्ड ,पंजाब, मणिपुर और गोवा समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से यह सत्र बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
इन राज्यों के चुनाव का मुद्दा बनने वाले विषय संसद के इस
सत्र में चर्चा के केंद्र में रह सकते हैं। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में जनसंख्या पर नियंत्रण को लेकर जो मुद्दा बहुत चर्चा
में है वो संसद के इस सत्र में चर्चा के लिए लाया जाएगा। इस बाबत राज्यसभा के मनोनीत भाजपा सांसद राकेश सिन्हा के साथ ही सत्तारूढ़ पार्टी के अलग – अलग सांसदों ने पिछले तीन साल के दौरान जनसँख्या नियंत्रण को लेकर जितने भी निजी विधेयक संसद के उपरी सदन राज्य सभा में प्रस्तुत किये हैं उन सभी पर एक साथ किसी दिन सदन में चर्चा हो सकती है। सत्तारूढ़ दल ने लोकसभा के अपने सांसदों से भी आबादी के मसले पर इसी तरह के निजी विधेयक लाने को कहा है।
जनसँख्या के साथ ही धर्मांतरण भी एक ऐसा ही मुद्दा है जो चुनाव का मुद्दा बन सकता है उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते दिनों धर्मांतरण के बड़े गिरोह का खुलासा करने के बाद इस मामले को लेकर भी सियासी सरगर्मी काफी बढ़ गई है ।भाजपा के गोरखपुर से सांसद रवि किशन इस मुद्दे को संसद में उठाने की बात कह ही चुके हैं। इसके अलावा बंगाल हिंसा, कोरोना, किसान आंदोलन जैसे मुद्दे भी संसद में उठने के उम्मीद है।इन मुद्दों के साथ ही महंगाई , सीमा विवाद , राफेल खरीद घोटाला , कश्मीर में 370 की वापसी जैसे कई और मुद्दे भी विपक्ष की चिंता का सबब बन सकते हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा वापस दिए जाने की वकालत सार्वजनिक तौर पर कर ही चुकी हैं। विधायी कामकाज के लिहाज से संसद के दोनों सदनों में में 40 विधेयक और पांच अध्यादेश संसद से पारित होने के इन्तजार में हैं। अगर संसद का सत्र कामकाज बेरोक टोक संपन्न हुआ तभी यह काम पूरा हो पायेगा।