सरकार ने शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्रियों चौधरी चरण सिंह और पीवी नरसिम्हा राव और साथ ही भारत की ‘हरित क्रांति’ में अग्रणी भूमिका के लिए जाने जाने वाले कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की। इससे पहले जनवरी में सरकार ने वरिष्ठ भाजपा राजनेता लालकृष्ण आडवाणी और समाजवादी प्रतीक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न की घोषणा की थी।
पीवी नरसिम्हा राव के पोते एनवी सुभाष ने कहा कि पूर्व पीएम के योगदान को लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया। एनवी सुभाष ने कहा, “मैं वास्तव में बहुत खुश हूं कि नरसिम्हा राव जी को भारत रत्न मिला है। मैं बहुत खुश हूं और पीएम मोदी का आभारी हूं। उनके योगदान को मान्यता दी गई है।”
डब्ल्यूएचओ में पूर्व मुख्य वैज्ञानिक और पूर्व उप महानिदेशक और एमएस स्वामीनाथन की बेटी डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, “मुझे यकीन है कि अगर यह खबर उनके जीवनकाल के दौरान आती तो उन्हें भी खुशी होती। लेकिन वह कभी ऐसे व्यक्ति नहीं थे जिन्होंने इसके लिए काम किया हो। उन्होनें पुरस्कार या मान्यता की प्रतीक्षा कभी नहीं की। उन्होंने ज़मीन पर जो किया उसके परिणामों से वे अधिक प्रेरित हुए।”
RLD नेता जयंत चौधरी ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा पर पोस्ट कर कहा, “दिल जीत लिया!”
देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा खुद प्रधानमंत्री ने तीन अलग अलग सोशल मीडिया पोस्ट में की।
पीएम मोदी ने पोस्ट कर कहा कि हमारी सरकार का यह सौभाग्य है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है। यह सम्मान देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है। उन्होंने किसानों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या देश के गृहमंत्री और यहां तक कि एक विधायक के रूप में भी, चौधरी चरण सिंह ने हमेशा राष्ट्र निर्माण को गति प्रदान की। वे आपातकाल के विरोध में भी डटकर खड़े रहे। हमारे किसान भाई-बहनों के लिए उनका समर्पण भाव और इमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र के लिए उनकी प्रतिबद्धता पूरे देश को प्रेरित करने वाली है।
प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का ऐलान करते हुए कहा कि यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव गरू को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। एक प्रतिष्ठित स्कॉलर और राजनेता के रूप में नरसिम्हा राव गरू ने तमाम क्षमताओं में भारत की बड़े पैमाने पर सेवा की। उन्हें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और कई वर्षों तक संसद और विधानसभा सदस्य के रूप में किए गए कार्यों के लिए समान रूप से याद किया जाता है। उनका दूरदर्शी नेतृत्व भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने, देश की समृद्धि और विकास के लिए एक ठोस नींव रखने में सहायक था। पीएम ने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हा राव का कार्यकाल महत्वपूर्ण कदमों द्वारा चिह्नित किया गया था, जिसने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया, जिससे आर्थिक विकास के एक नए युग को बढ़ावा मिला। इसके अलावा, भारत की विदेश नीति, भाषा और शिक्षा क्षेत्रों में उनका योगदान उनकी बहुमुखी विरासत को रेखांकित करता है। उन्होंने न केवल महत्वपूर्ण परिवर्तनों के माध्यम से भारत को आगे बढ़ाया बल्कि इसकी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को भी समृद्ध किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह बेहद खुशी की बात है कि भारत सरकार कृषि और किसानों के कल्याण में हमारे देश में उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ. एमएस स्वामीनाथन जी को भारत रत्न से सम्मानित कर रही है। उन्होंने चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में उत्कृष्ट प्रयास किए। पीएम ने कहा कि हम एक इनोवेटर और मेंटोर के रूप में, कई छात्रों के बीच सीखने और रिसर्च को प्रोत्साहित करने वाले उनके अमूल्य काम को भी पहचानते हैं। डॉ. स्वामीनाथन के दूरदर्शी नेतृत्व ने न केवल भारतीय कृषि को बदल दिया है बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और समृद्धि भी सुनिश्चित की है। वह ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें मैं करीब से जानता था और मैं हमेशा उनकी अंतर्दृष्टि और इनपुट को महत्व देता था।
चौधरी चरण सिंह: किसानों के चैंपियन
देश के पांचवें प्रधान मंत्री के रूप में कार्य करने वाले चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न पुरस्कार को लोकसभा चुनाव से पहले जाट समुदाय और किसानों तक भाजपा की पहुंच के रूप में देखा जा रहा है। चरण सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे और उन्हें “किसानों के चैंपियन” के रूप में याद किया जाता है।
चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। कानून में प्रशिक्षित चरण ने गाजियाबाद से अपने पेशे की शुरुआत की। वे 1929 में मेरठ आ गये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन औऱ उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके।
चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखी जिसमें ‘जमींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑ डिवीन ऑ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रे’ आदि प्रमुख हैं।
एमएस स्वामीनाथन: हरित क्रांति के जनक
एमएस स्वामीनाथन ने देश में खाने की कमी न होने के उद्देश्य से कृषि की पढ़ाई की थी। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था, जिसने उन्हें झकझोर कर रख दिया। इसे देखते हुए उन्होंने 1944 में मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। 1947 में वह आनुवंशिकी और पादप प्रजनन की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) आ गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपना शोध आलू पर किया था।
एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है। वह पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की। इसके कारण भारत में गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हुई।
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथ का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी में साल 1925 में हुआ था। स्वामीनाथन 11 साल के ही थे जब उनके पिता की मौत हो गई। उनके बड़े भाई ने उन्हें पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया। उनके परिजन उन्हें मेडिकल की पढ़ाई कराना चाहते थे लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत प्राणि विज्ञान से की। देश को अकाल से उबारने और किसानों को मजबूत बनाने वाली नीति बनाने में उन्होंने अहम योगदान निभाया था। उनकी अध्यक्षता में आयोग भी बनाया गया था जिसने किसानों की जिंदगी को सुधारने के लिए कई अहम सिफारिशें की थीं।
स्वामीनाथन को उनके काम के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें पद्मश्री (1967), पद्मभूषण (1972), पद्मविभूषण (1989), मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) महत्वपूर्ण हैं। पिछले साल 28 सितंबर को एमएस स्वामीनाथन का चेन्नई में निधन हो गया था।
नरसिम्हा राव: आर्थिक विकास के नए युग को बढ़ावा दिया
नरसिम्हा राव लगातार आठ बार चुनाव जीते और कांग्रेस पार्टी में 50 साल से ज्यादा समय गुजारने के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने। वो आठ बच्चों के पिता थे, 10 भाषाओं में बात कर सकते थे और अनुवाद के भी उस्ताद थे। नरसिम्हा राव 20 जून, 1991 से 16 मई, 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। जब उन्होंने पहली बार विदेश की यात्रा की तो उनकी उम्र 53 साल थी। उन्होंने दो कंप्यूटर लैंग्वेज में मास्टर्स किया और 60 साल की उम्र पार करने के बाद कंप्यूटर कोड बनाया था। लेकिन उनकी यह दास्तां यहीं खत्म नहीं होती। पी रंगा राव के पुत्र स्व पी.वी. नरसिंह राव का जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में हुआ था। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की थी। पीवी नरसिंह राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं।
पीवी नरसिम्हा राव भारतीय राजनीति में एक प्रभावशाली व्यक्ति थे, जो 1991 से 1996 तक भारत के 9वें प्रधान मंत्री के रूप में कार्यरत थे। 28 जून, 1921 को आंध्र प्रदेश के वंगारा में जन्मे राव का कार्यकाल महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों और सामाजिक चुनौतियों से भरा था।
वह गैर-हिंदी भाषी दक्षिण भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, जो अपनी विद्वता और भाषाई क्षमताओं के लिए जाने जाते थे। राव के प्रशासन ने 1991 के आर्थिक सुधार, बाबरी मस्जिद विध्वंस और 1993 के लातूर भूकंप सहित ऐतिहासिक घटनाओं की निगरानी की।
वह नेहरू-गांधी परिवार के बाहर पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने कार्यालय में पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। उनकी राजनीतिक यात्रा आंध्र प्रदेश में शुरू हुई, जहां उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा और नेतृत्व कौशल का प्रदर्शन करते हुए कई महत्वपूर्ण मंत्री पद संभाले।
प्रधान मंत्री के रूप में नरसिम्हा राव का कार्यकाल महत्वपूर्ण परिवर्तन का काल था, जिससे उन्हें ‘भारतीय आर्थिक सुधारों के जनक’ की उपाधि मिली। उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान 1991 का आर्थिक सुधार था, जिसने भारत के लाइसेंस राज को खत्म कर दिया, जिससे देश एक बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गया।
वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर राव की नीतियों ने भारत को आर्थिक पतन से बचाया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोल दिया। उनकी साहसिक नीतियों ने बाद के दशकों में भारत की आर्थिक वृद्धि की नींव रखी, जिससे देश के विकास पथ पर स्थायी प्रभाव पड़ा।
नरसिम्हा राव बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे, जो अपनी विद्वतापूर्ण गतिविधियों और भाषाई क्षमताओं के लिए जाने जाते थे। वह कई भाषाओं में पारंगत थे और एक विपुल लेखक और अनुवादक थे। उनकी बौद्धिक गहराई और समझ ने उन्हें “विद्वान प्रधानमंत्री” के रूप में ख्याति दिलाई, जो उनके शैक्षणिक कौशल और राजनीतिक चतुराई के अद्वितीय मिश्रण को दर्शाता है।
भारत के आर्थिक परिवर्तन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, राव की विरासत पर पार्टी के अंदर की राजनीति का ग्रहण लग गया है। आर्थिक सुधारों में उनका योगदान, जिसका श्रेय अक्सर मनमोहन सिंह को दिया जाता है, बहस और विवाद का विषय रहा है। राव के निर्णायक नेतृत्व और भारत के उत्थान को आकार देने में उनकी भूमिका को कुछ लोगों ने स्वीकार किया है, जबकि अन्य ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान सामाजिक सुरक्षा को संभालने की उनकी आलोचना की है।