बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2018 एल्गार परिषद माओवादी लिंक मामले में कार्यकर्ता गौतम नवलखा को जमानत दे दी है। नवलखा को 2020 में गिरफ्तार किया गया था। जमानत की शर्तें नवलखा के सह-अभियुक्त प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे और महेश राउत की तरह ही हैं, जिन्हें दिसंबर 2017 में पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, जिसके अगले दिन भीमा कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी।
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हालाँकि उच्च न्यायालय ने आदेश पर 3 सप्ताह की रोक भी लगा दी ताकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील कर सके।
दरअसल नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने अदालत से अनुरोध किया कि ज़मानत के फ़ैसले पर छह हफ़्ते के लिए स्टे ऑर्डर दिया जाए ताकि इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की जा सके। कोर्ट ने एनआईए के अनुरोध को ध्यान में रखते हुए अपने आदेश पर तीन हफ़्ते के लिए स्थगनादेश दे दिया।
इस साल अप्रैल में, एक विशेष अदालत ने यह कहते हुए नवलखा को जमानत देने से इनकार कर दिया था कि प्रथम दृष्टया यह दिखाने के सबूत हैं कि कार्यकर्ता प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) का सक्रिय सदस्य था। एनआईए का आरोप है कि एल्गार परिषद कार्यक्रम भारत सरकार के खिलाफ एक बड़ी माओवादी साजिश का हिस्सा था।
नवलखा ने विशेष अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्हें अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और तलोजा सेंट्रल जेल में रखा गया था। नवंबर, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा को उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण घर में नजरबंद करने की अनुमति दी थी।
उनकी पिछली जमानत याचिका का विरोध करते हुए, एनआईए ने दावा किया था कि नवलखा को संभावित भर्ती के लिए पाकिस्तानी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) जनरल से मिलवाया गया था, जो संगठन के साथ उनके संबंध का संकेत देता है।
गिरफ्तार किए गए 16 कार्यकर्ताओं में से नवलखा जमानत पाने वाले सातवें आरोपी हैं।
प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे, कवि वरवरा राव, वकील सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फेरिरा और महेश राउत नियमित जमानत पर बाहर हैं। वरवरा राव फिलहाल स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर बाहर हैं।