22 दिसंबर को समाप्त होने वाले मौजूदा शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिए अब तक कुल 92 संसद सदस्यों को निलंबित कर दिया गया है। 13 दिसंबर को संसद सुरक्षा उल्लंघन की घटना के बाद से संसद में लगातार हंगामा हो रहा है और विपक्षी सांसदों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बयान की मांग की है। सोमवार को ही 78 विपक्षी सांसदों को संसद से निलंबित कर दिया गया, जो राज्यसभा और लोकसभा से निलंबन की सबसे अधिक संख्या है। इस कदम पर कांग्रेस और अन्य दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर “विपक्ष-विहीन” संसद में प्रमुख कानूनों को विफल करने की कोशिश करने का आरोप लगाया।
सोमवार को कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी समेत 33 सांसदों को लोकसभा से निलंबित कर दिया गया। तो वहीं राज्यसभा में भी संसद की कार्यवाही बाधित करने के आरोप में कांग्रेस सांसद जयराम रमेश, रणदीप सुरजेवाला और केसी वेणुगोपाल सहित 45 विपक्षी सदस्यों को सदन से निलंबित कर दिया गया। जबकि 34 सदस्यों को शेष शीतकालीन सत्र के लिए राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया, 11 अन्य सांसदों को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट लंबित होने तक निलंबित कर दिया गया।
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सोमवार की कार्रवाई से इस मुद्दे पर पिछले गुरुवार से दोनों सदनों से निलंबित विपक्षी सांसदों की कुल संख्या 92 हो गई है।
इससे पहले बीते गुरुवार को लोकसभा ने संसद सुरक्षा उल्लंघन मुद्दे पर तख्तियां लहराने और कार्यवाही में बाधा डालने के लिए शीतकालीन सत्र के शेष भाग के लिए 13 सदस्यों को निलंबित कर दिया था। उसी दिन तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन को भी “अनियंत्रित आचरण” का हवाला देते हुए शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिए राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था।
लोकसभा में विपक्ष की दो बड़ी पार्टियों कांग्रेस और डीएमके के नेताओं सहित 33 सदस्यों को अनियंत्रित व्यवहार के लिए सोमवार को निलंबित कर दिया गया। जबकि लोकसभा में 30 सदस्यों को शेष शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया तो वहीं विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट लंबित होने तक तीन सदस्यों को निलंबित कर दिया गया।
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तीन सांसद – के जयकुमार, विजय वसंत और अब्दुल खालिक – नारे लगाने के लिए अध्यक्ष के आसन पर चढ़ गए थे।
इस निलंबन के कारण राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है और विपक्षी सदस्यों ने इस कार्रवाई को “लोकतंत्र की हत्या” करार दिया। भाजपा सांसद और राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने दावा किया कि यह कार्रवाई आवश्यक थी क्योंकि विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति का अपमान किया था।
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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार पर “विपक्ष-विहीन” संसद में महत्वपूर्ण मसौदा कानून को विफल करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। खड़गे ने कहा, “विपक्ष-विहीन संसद के साथ, मोदी सरकार अब महत्वपूर्ण लंबित कानूनों को कुचल सकती है। किसी भी असहमति को बिना किसी बहस के कुचल सकती है।”
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सरकार ने संसद में विचार और पारित करने के लिए औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानून की जगह लेने वाले तीन विधेयकों को सूचीबद्ध किया है। इसके अलावा मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक तंत्र प्रदान करने के लिए मसौदा कानून लोकसभा से पारित होने के लिए लंबित है।
मालूम हो कि 1989 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की जांच करने वाली न्यायमूर्ति ठक्कर समिति की रिपोर्ट को पेश करने के मुद्दे पर लोकसभा के 63 सदस्यों को सप्ताह के शेष भाग के लिए 15 मार्च को निलंबित कर दिया गया था।