सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) द्वारा संगठन पर प्रतिबंध और सरकार द्वारा यूएपीए के तहत इसे ‘गैरकानूनी’ संगठन के रूप में नामित किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की दो-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि पीएफआई के लिए यह उचित होगा कि वह पहले ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाए, जिसने पीएफआई और आठ अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें नामित करने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा था।
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इससे पहले मार्च महीने में दिल्ली हाई कोर्ट ट्रिब्यूनल ने केंद्र सरकार द्वारा PFI पर भारत में लगाए बैन के फैसले को बरकरार रखा था।
पीएफआई की ओर से पेश वकील श्याम दीवान ने सुप्रीम कोर्ट के इस विचार से सहमति जताई कि संगठन को पहले उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए था और फिर शीर्ष अदालत में आना चाहिए था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल के आदेश को पहले हाईकोर्ट में चुनौती देनी चाहिए थी लेकिन आप सीधे सुप्रीम कोर्ट चले आए, इसीलिए आप हाईकोर्ट जाइए। PFI ने UAPA ट्रिब्यूनल द्वारा प्रतिबंध बरकरार रखने के फैसले को सीधे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
UAPA के तहत गठित एक ट्रिब्यूनल ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को गैर कानूनी संगठन घोषित करने वाले केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया था।
मालूम हो कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 27 सितंबर 2022 को लोगों के बीच सांप्रदायिक नफरत फैलाने और देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए हानिकारक ‘गैरकानूनी गतिविधियों’ में शामिल होने के लिए पीएफआई और आठ अन्य संगठनों पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार ने पीएफआई और अन्य जिन संगठनों पर रोक लगाई थी उनमें, जिसमें रेहाब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यमून राइट्स ऑर्गनाइज़ेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल वूमंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, इम्पावर इंडिया फाइंडेशन और रेहाब फाउंडेशन, केरल शामिल थे।