कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मई में मणिपुर में हुई जातीय झड़पों का जिक्र करते हुए बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की आलोचना की और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे समय राज्य को छोड़ दिया जब उनके हस्तक्षेप की सबसे ज्यादा जरूरत थी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री संकट को पूरी तरह से नजरअंदाज करके जवाबदेही और जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।
रमेश ने कहा, “मणिपुर और पूरे पूर्वोत्तर के लोग करीब से देख रहे हैं कि कैसे प्रधानमंत्री ने ऐसे समय में मणिपुर राज्य को छोड़ दिया है जब उनके हस्तक्षेप और पहुंच की सबसे ज्यादा जरूरत थी।”
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रमेश न पोस्ट कर कहा, मणिपुर में हिंसा भड़कने और राज्य में सामाजिक सद्भाव बिगड़ने का आज 175वां दिन है। लेकिन मणिपुर की जनता और उन सभी लोगों के पांच सवाल अभी भी हैं, जो राज्य में शांति और विश्वास निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
रमेश ने कई सवाल भी उठाए:
1. प्रधानमंत्री ने मणिपुर के मुख्यमंत्री और राज्य के विधायकों से मुलाक़ात क्यों नहीं की, जिनमें से अधिकांश उनकी अपनी ही पार्टी के हैं या उनकी पार्टी के सहयोगी हैं?
2. लोकसभा में मणिपुर (आंतरिक) का प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री प्रधानमंत्री से क्यों नहीं मिल पाए हैं?
3. सभी विषयों पर प्रवचन देने वाले प्रधानमंत्री ने मणिपुर पर सार्वजनिक रूप से 4-5 मिनट से अधिक बोलना क्यों उचित नहीं समझा? वह बोले भी तो विपक्ष के भारी दबाव के बाद सिर्फ़ औपचारिकता निभाने के लिए।
4. जिस प्रधानमंत्री को कहीं भी दौरा करना पसंद है, उन्होंने मणिपुर को लेकर अपनी सहानुभूति या चिंता प्रदर्शित करने के लिए राज्य में कुछ घंटे भी बिताना उचित क्यों नहीं समझा?
5. जो मुख्यमंत्री मणिपुर के समाज के सभी वर्गों में इतनी बुरी तरह से बदनाम हो चुका है, उसे अभी भी पद पर बने रहने की इजाज़त क्यों दी जा रही है?
मणिपुर और पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोग देख रहे हैं कि कैसे प्रधान मंत्री ने मणिपुर राज्य को ऐसे समय में उसके हाल पर छोड़ दिया है जब उनके दखल और सहारे की सबसे अधिक आवश्यकता थी। इस संकट को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करके वह अपनी जवाबदेही और ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकते।
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मालूम हो कि कांग्रेस लगातार मणिपुर संकट से निपटने के मोदी सरकार के तरीके की आलोचना कर रही है और स्थिति को नियंत्रित करने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को बर्खास्त करने की मांग कर रही है।
अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद मणिपुर में हिंसा भड़क उठी थी। संघर्ष के परिणामस्वरूप कम से कम 175 लोगों की मौत हो गई और 1,100 से अधिक लोग घायल हो गए।